Hisar e Ana chapter 5 : The Siege of Ego chapter 5 by Elif Rose

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HIsar e Ana chapter 5

“बिना बताए इतने अचानक?।” सबीहा हैरान थीं। असफन्द मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा और दोनों को सलाम करने के साथ ही इलयास मीर की तरफ मुतावाज्जह हुआ जो अब खामोशी से खड़े उसे एक-टुक देख रहे थे।
Illusion का गुमान तो बस कुछ सेकंड ही था वरना दिल तो चीख चीख कर गवाही दे रहा था कि सामने वाक़ई उनका लख्त ए जिगर खड़ा है।
असफन्द ने आगे बढ़कर उन्हें गले लगाया, ” I missed you a lot dad.”
इलयास की आंखें नम हुईं। “I missed you too my son.What a pleasant surprise you have given to me.
उन्होंने उसके माथे पर बोसा दिया।
“तुम कब आए?”
“2 घंटे हो रहे…”
वह उसे साथ लिए डायनिंग टेबल की तरफ बढ़ गए।

Hisar e Ana chapter 5

माहौल कुछ ही देर में खुशगवार हो गया था। वह तीनों अब कुर्सियों पर बैठे थे। रफाकत कई तरह की डिशेज़ मेज़ पर लगा रही थीं।
इलयास ने असफन्द के आने की इत्तेला उन्हें ना देने पर हल्की सी नाराज़गी जताई।
“मैंने मना किया था इन्हें।” असफन्द ने चाय पीते हुए हिमायत की।” नज़रें इधर उधर राहेमीन को ढूंढ रही थीं।
“तुम्हें पहले बताना चाहिए था, एयरपोर्ट आ जाते लेने।” इलयास उस पर भी गुस्सा हुए।
“पहले बता देता तो आपका वो रिएक्शन मिस कर देता। सच बताएं मेरी याद में इल्यूजन दिखते हैं आपको?” मुस्कुराते हुए छेड़ा।
“बहुत ही फ़िज़ूल लड़के हो तुम।” इलयास साहब ने मुंह बनाया।
सबीहा मीर जो खामोशी से बाप बेटे की नोक झोंक देख रहीं थीं, अचानक खयाल आने पर रफाकत से बोलीं “जाओ देखो राहेमीन अभी तक क्यूं नहीं आयी ?” असफन्द का लबों को जाता हाथ में पकड़ा कप एक लम्हे को रुका था और उसके इस एक पल के ‘रुकने’ को इलयास मीर ने बखूबी नोटिस किया, साथ ही पहलू बदलते इग्नोर भी कर दिया।

Hisar e Ana chapter 5

“राहेमीन बीबी को तो बहुत तेज़ बुखार है।”
असफन्द ने झटके से सर उठा कर रफाकत को देखा जो राहेमीन के कमरे से आयीं थीं।
सबीहा और इलयास फिक्रमन्दी से खड़े हुए।
“तुम नाश्ता करो बेटा, हम देखते हैं उसे।” कहते हुए वह लोग रफाकत के साथ चले गए।
नाश्ता क्या होना था अब। वह भी उठकर उनके पीछे गया।

नफासत से सजे कमरे में राहेमीन बेड पर बेसुध लेटी थी। खूबसूरत चेहरा बुखार की शिद्दत से तप रहा था।
सबीहा उसका हाथ पकड़ पास ही बैठ गईं। इलयास डॉक्टर को कॉल कर रहे थे। वह वहीं सोफे पर बैठ गया। दिल में एक हूक सी उठी थी उसका यह हाल देख कर।
डॉक्टर ने आ कर राहेमीन का चेकअप किया, “उन्होंने किसी चीज़ का स्ट्रेस लिया है, यह दवाएं मैंने लिख दी हैं आप ले आइएगा।” इलयास को पर्चा पकड़ाते वो बोले थे।
“लाएं डैड, मैं ले आता हूं।” इलयास साहब से कहते और उनसे पर्ची लेते वह वहां से निकला था।
जो लोग हमें अज़ीज़ हों, उन्हें तकलीफ़ में देखना…. वो भी अपनी वजह से….. बहुत मुश्किल होता है।
कार ड्राइव करते असफन्द मीर का ज़हन माज़ी में उलझा हुआ था।

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Flash back
इलयास मीर का सारा सुकून तब गारत हुआ जब असफन्द ने उनकी शादी को मानने से ही इनकार कर दिया।
वह सबीहा को मां तो क्या मानता, घर का फर्द मानने से ही इनकारी था।
“मेरी एक ही मम्मी थी डैड… और वह अल्लाह पाक के पास चली गई हैं। यह आप किन्हें ले आए हैं। वापस छोड़ आएं इन्हें।” हाथ में पकड़े ग्लास को ज़मीन पर फेंकते हुए वह इतनी ज़ोर से चीखा था कि सबीहा की गोद में बैठी नन्ही राहेमीन डर के रोने लगी।
जबकि वह किसी की भी परवाह किए बगैर अपने कमरे में चला गया।
इतने शदीद रद्दे अमल पर जहां सबीहा हैरान- परेशान हुई थी वहीं इलयास सर पकड़ के बैठ गए।
इसकी तो उन्हें उम्मीद भी नहीं थी।
यह सब तो उन्होंने असफन्द के लिए ही किया था।

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उधर 8 साला असफन्द बाप से सख्त बदगुमान हो गया। अपनी मम्मी की जगह किसी और को देखना उसे बिल्कुल गवारा नहीं था।
उसने फिर खुद को अपने कमरे तक महदूद कर लिया। इलयास ने बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार न था।
वह आज अपनी मां का तकिया सीने से लगाए लेटा था। आंखों से आंसू बह रहे थे।
अपनी मां से वो हमेशा से अटैच था।
स्कूल से आ कर उसका सारा वक़्त मां के साथ गुज़रता था।
इलयास मीर बिज़नेस की वजह से मसरूफ रहते थे।
वही उसके साथ खेलती थीं और वही उसे पढ़ाती थीं। वह उसकी पहली दोस्त थीं।
उनके जाने के बाद तो उसे ये सारी दुनिया ही अजनबी लगने लगी थी।

Hisar e Ana chapter 5

आहट की आवाज़ पर उसने रुख़ मोड़ कर देखा।
सबीहा हाथ में खाने की ट्रे लिए अंदर आ रहीं थीं।
वह होंठ भींचे उठ कर बैठ गया।
जबकि वह उसके सामने ट्रे रख कर बैठ गईं।
“देखो मैं आपके लिए बिरयानी बना कर लाई हूं। ……. आपके डैड ने बताया था, यह फेवरेट डिश है आपकी।” नर्म मुस्कुराहट के साथ वह बोली। असफन्द ने कोई जवाब नहीं दिया।
सबीहा ने खाना निकाल कर प्लेट उसके सामने की।
“कितनी अच्छी खुशबू आ रही है न?”

“आप चली जाइए यहां से।”
“पहले खा तो लो, चली जाऊंगी फिर तुम्हारे कमरे से।”
“मेरे कमरे से नहीं, मेरे घर से चली जाईए।” वह तड़ख कर बोला।
सबीहा की मुस्कुराहट फीकी पड़ी।
“क्यूं चाहते हो मैं चली जाऊं?” इस बार उनका लहज़ा संजीदा था। प्लेट बगल में बेड पर रखी।
“क्यूंकि मैंने सुना है, दूसरी मम्मी अच्छी नहीं होती। बहुत मारती हैं।” उसने मुंह बनाया।
“मुझे आए 3 दिन हो गए, क्या मैंने आपको मारा?”
वह लाजवाब हुआ इस सवाल पर।
सबीहा के चहरे पर फिर हलकी सी मुस्कुराहट आयी।
“चलो दोस्ती कर लेते हैं। मैं आपको अच्छी वाली मम्मी बन कर दिखाऊंगी।” उनके फुसला कर कहने पर वह कुछ देर मशकूक नज़रों से उन्हें देखता रहा।

Hisar e Ana chapter 5

कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि इतने में कोई “अम्मी-अम्मी” करता कमरे आया था।
बालों में दो छोटी छोटी क्लिफ लगाए। गुलाबी फूलदार फ्रॉक पहने, एक हाथ में लॉली पॉप पकड़े, 3 साला राहेमीन सबीहा को ढूंढते हुए अंदर आयी थी।
असफन्द का ध्यान आज पहली बार उस पर गया।
उसने देखा सबीहा की तवज्जाह उस पर से हट कर उस लड़की पर चली गई थी जो आंखें पटपताते हुए तोतली ज़ुबान में पूछ रही थी, “आप तआं तली दई ती? में आपतो धून लई ती।”
“कहीं नहीं मेरी जान, आपकी अम्मी को कुछ काम था बस यहां।” वह बेड से उठकर ज़मीन पर राहेमीन के सामने घुटनों के बल बैठ गईं।
असफन्द का चहरा गुस्से से लाल हुआ।
वह उठकर सबीहा के पास आया था।
“आप मेरी मम्मी कभी नहीं बन सकती। मेरी मम्मी सिर्फ मेरे अकेले की मम्मी थीं। सिर्फ मेरी दोस्त थीं वह।” कह कर वह वहां रुका नहीं था।
पीछे राहेमीन पूछ रही थी।, “यह तौन ए अम्मी?”
Flash back end

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महक ने क्लास में क़दम रखते ही अली को ढूंढा।
वह डेस्क पर किताब खोले बाकी दूसरे स्टूडेंट्स की तरह पढ़ाई में मसरूफ था। उसके सामने आ कर उसने किताब छीनने के अंदाज़ में उठाई।
अली ने सर उठा का उस गुस्से से लाल पीली होती बला को घूरा।
“यह क्या हरकत है, वापस करो।”
“नहीं कर रही वापस, कर लो जो कर सकते हो।” अपने पीछे बुक करते वह बोली।
क्लास में मौजूद दूसरे स्टूडेंट्स ने उन दोनों को अनजान ज़ुबान में बात करते मुंह बनाया। यह रोज़ का मामूल था।

उधर अली तिलमिलाया।, “मसला क्या है तुम्हारे साथ?”
“मसला? मेरा मसला यह है कि तुम जैसे निकम्मे से दोस्ती की। एक काम नहीं हुआ मेरा तुमसे।”
“कौन सा काम?” वह अनजान बना।
“इतनी मिन्नत की कि अपने उस चहीते लाडले दोस्त के जाने का बता दो, लेकिन मजाल थी जो तुम्हारे मुंह से कुछ फूटता।…. चला गया न वह।”
अली ने दांत किचकिचाए।
“बेटा इंतज़ार करो…. न मैंने आज तुम्हारी “अन्ने” से डंडे पड़वाए तो मेरा नाम भी अली एवान नहीं।….. नहीं एक बात बताओ, कॉलेज पड़ने आती हो या मेरा सर खाने।”
महक की मां तुर्की की रहने वाली थीं और खुद को ‘अन्ने’ कहलाती थीं।

Hisar e Ana chapter 5

महक जवाब में इससे पहले कुछ कहती , क्लास में मिस ग्रेस के आने से जल्दी से अली के बगल में बैठी।
अली ने भी मौका देखते उससे अपनी किताब छीन ली।
मिस ग्रेस अहम टॉपिक्स पर लेक्चर दे रही थीं।
वह गौर से उन्हें सुन रहा था कि महक की धीमी आवाज़ पर चौंका।
“सुनो तुम अन्ने से कुछ नहीं कहोगे।”
अली ने उसे घूरा।
“तुम्हारी टांग अभी भी वहीं अटकी हुई है।”
“बस मैंने कहा दिया…. तुम असफन्द के बारे में कुछ भी नहीं कहोगे अन्ने से।
“क्यूं भई, प्यार किया तो डरना क्या।” उसने छेड़ा।
“Mr. Ali Awan .” मिस ग्रेस की आवाज़ पर वह हड़बड़ा कर खड़ा हुआ।
“Yes mam.”
Any problem?” मोटा सा चश्मा लगाए वह उसे घूर रहीं थीं।
N..no.”
“Concentrate then.”
“OK…mam.”
बैठ कर वह फिर लैक्चर सुनने लगा।

अभी कुछ सेकेंड ही गुज़रे होंगे कि महक की ज़ुबान में फिर खुजली हुई।
“सुनो।”
“खबरदार जो दोबारा मुझे डिस्टर्ब किया।” अली ने दबी आवाज़ में उसे वार्न किया। देख सामने ही रहा था।
इतने में कोई नुकीली चीज़ उसके बाज़ू में चुभी।
“आह…….” वह बिलबिला ही तो गया “क्या मुसीबत है।”
इतनी तेज़ मुंह से निकला कि सब फिर उनकी तरफ मुतवज्जाह हुए।
“Get out….” मिस ग्रेस गुस्से से दहाड़ी।
“Mam वह…. अ..sorry mam.” वह गड़बड़ाया।
“I said get out from the class.” वह और ज़ोर से चीखी।
महक को शर्मिंदगी हुई।
अली बिना उसे देखे अपनी किताबें और बैग उठाने लगा।
“And you too miss Mahak Sikandar …leave my class.” मिस ग्रेस की आवाज़ पर वह भी हड़बड़ाई।
“Mam…”
“Leave.” वह कुछ ज़्यादा ही गुस्से में आ गई थीं।
लाचार वह भी अली के पीछे क्लास से बाहर निकली।

पीछे स्टूडेंट्स की दबी दबी हंसी की आवाज़ ने उसे अन्दर तक तपाया।
“इन लोगों को तो बाद में बताऊंगी।” बड़बड़ाते हुए वह अली के पीछे लपकी थी जो तेज़ क़दमों से मेन गेट की तरफ जा रहा था।
“अली रुको।” लेकिन वह उसे नज़र अंदाज़ करता अपनी बाइक स्टार्ट कर रहा था।
वह हांफते हुए उसके पास पहुंची।
“अजीब इंसान हो, सुनो तो स…”
“तुम्हारे इस सुनने सुनाने के चक्कर में किसी दिन मैंने इस दुनिया से ही कूच कर जाना है।” वह फट ही पड़ा।
“अरे मैं तो बस….” उसकी बात मुंह में ही रह गई क्यूंकि अली बगैर उसकी सुने बाइक स्टार्ट किए वहां से चला गया।

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काफी देर पढ़ाई करने के बाद असफन्द मीर बालकनी में ताज़ा हवा लेने की गरज़ से आया था कि नीचे लॉन में नज़र पड़ते ही एक बेसाख्ता मुस्कुराहट ने उसके लबों को छुआ।
गहरे हरे रंग का सलवार सूट पहने, बाल जुड़े में कैद किये, राहेमीन फूलों को पानी दे रही थी।
कितने ही लम्हे वह बस उसे देखे गया।
दिल एक खामोश सदा लगा रहा था।

मेरे यार यह धागा उलफत का

जो आगे बढ़ कर थाम लो तुम,

और दिल के सूने सहरा को,

खुशबू से जो महका दो तुम,

तो यार मेरे,

सुन यार मेरे,

वह धागा कभी ना टूटेगा,

वह सहरा हमेशा महकेगा,

यह दुनिया दिल की दुनिया है,

जो मन करे कभी आना तुम,

जो नगमे वहां मैं गाता हूं,

खामोश उन्हें बस सुनना तुम,

लेकिन तू सुन ले यार मेरे,

वह धागा तोड़ ना देना तुम,

वह खुशबू ना समेटना तुम,

वह नगमे ना बिखेरना तुम,

वह दुनिया छोड़ ना जाना तुम।

composed by Elif Rose

वह वहां से नीचे उसके पास लॉन में आ गया।
कदमों की आहट पर राहेमीन ने पीछे मुड़कर देखा था।
to be continued…

Assalam o Alaikum dear readers,
How was the chapter?
Guys, if you people are liking this novel, please share it to your friends and all contacts as I am doing so much hard work to write this novel.
Thanks.

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read Hisar e Ana chapter -1

Hisar e Ana chapter – 2

Hisar e Ana chapter – 3

and Hisar e Ana chapter – 4

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