Hisar e Ana chapter 10 part 4
असफन्द एक अहम प्रोजेक्ट के सिलसिले में कल से मुंबई की ब्रांच में आया था। अभी-अभी मीटिंग से फारिग हो कर केबिन में आया था जब उसका सेक्रेट्री मोबाइल ले कर आया जो साइलेंट पर लगाकर उसने सेक्रेट्ररी को दिया था क्यूंकि मीटिंग बहुत अहम थी।
“सर, इस पर कॉल आ रही है बार-बार।”
ग्रे थ्री पीस का कोट उतारकर उसने कुर्सी की बैक पर लटकाया। फ़िर सेक्रेट्ररी के हाथ से मोबाइल ले कर उसे जाने का इशारा किया।
आज बहुत थकाई हो गई थी। सुस्ती से कुर्सी पर बैठ कर टेक लगाया और मोबाइल की स्क्रीन ऑन की।
राहेमीन की मिस्ड कॉल?
वह तेज़ी से सीधा हुआ।
दिल ज़ोर से धड़का था।
उसने उसे 11 बार पुकारा था बदकिस्मती यह कि वह ‘बिज़ी’ था?
“तुफ है तुम पर असफन्द मीर!” ज़ेर ए लब बड़बड़ाते हुए उसने उंगलियां स्क्रीन पर फेरी जैसे यकीन करना चाह रहा हो कि वाक़ई उसकी कॉल आई थी।
Hisar e Ana chapter 10 part 4
अभी वह उसे कॉल बैक करने ही वाला था कि एक बार फिर उसकी कॉल आ गई।
असफन्द ने तेज़ी से कॉल रिसीव कर मोबाइल कान से लगाया।
“अस्सालामु अलैकुम!”
“मुझे कब तक सूली पर लटकाने का इरादा है आपका?” बग़ैर सलाम का जवाब दिए वह उस पर बरसी थी जबकि असफन्द उसकी आवाज़ की भर्राहट से चौंका।
“राहेमीन?…. क्या हुआ?… तुम रो….”
“मेरी बात सुनिए असफन्द।” राहेमीन ने उसकी बात काटी।
“आज जल्दी घर आइएगा, मुझे ज़रूरी बात करनी है।”
“लेकिन बताओ तो हुआ क्या है? क्यों रो रही हो?” वह बेहद परेशान था। कुर्सी से उठकर बेचैनी से टहलने लगा था। “और इतनी जल्दी मैं मुम्बई से कैसे आ सकता हूं?”
“क्या मतलब?” राहेमीन चौंकी। “मुम्बई कब गए आप?”
असफन्द को अफसोस हुआ। भला वह कब उसकी खबर रखती थी।
“कल आया हूं लेकिन यह छोड़ो। तुम बताओ क्या परेशानी है?”
राहेमीन कुछ देर ख़ामोश रही, फिर बोली तो आवाज़ लरज़ती हुई सी थी। “अम्मी को शक हो गया है।” और कॉल काट दी।
असफन्द मीर वहीं खड़ा रह गया।
तो क्या वक़्त आ गया था?
कितने ही लम्हें यूं गुज़रे।
फिर वह आहिस्ता से चलते हुए खिड़की के पास आया और ऊपर आसमान को तकने लगा।
“मेरे अल्लाह , मुझे नामुराद मत करना।”
उसे जल्द से जल्द दिल्ली जाना था।। ।
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to be continued…