Hisar e Ana chapter 4 : The Siege of Ego chapter 4 by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 4

सबीहा राहेमीन की हालत देखते ही घबरा गई थीं।
क्या हुआ तुम्हारे पैर में?” उसे सहारा देते हुए अंदर ले जा रहीं थीं।
“साइकिल से टक्कर लग गई। आप परेशान मत हों मामूली चोट है अंदरूनी।” तकलीफ दबाते हुए उन्हें तसल्ली दी।
“घर तक कैसे आयी तुम?” वह फिक्रमंद थी।
“एक औरत छोड़ कर गई हैं।”
“अल्लाह भला करे उनका।” कहते हुए उसे लाउंज में सोफे पर बैठाया।
फिर जा कर फर्स्ट ऐड बॉक्स ला कर उसके पैरों में दवा लगाई।
ऑफिस से आने पर इलयास मीर भी परेशान हो गए थे।
दोनों उसे अस्पताल के जाना चाहते थे लेकिन राहेमीन ने जाने से इनकार कर दिया।
दोनों देर रात तक उसके पास बैठे रहे थे।
इतनी मोहब्बतें पाकर वह अक्सर शर्मिंदा हो जाती थी। एक गिल्ट सा उसे परेशान किए देता था।

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“You are such a stupid girl mahak…. कोई कॉल बार-बार काट रहा हो तो self respect के तहत इंसान को दोबारा कॉल नहीं करनी चाहिए।” किचन में एक हाथ से मोबाइल कान से लगाए दूसरे से कॉफी के मग में चम्मच चलाते अली झुंझलाया सा बोला था। असफन्द इस वक़्त किसी काम से बाहर था।
“Self respect का मुज़ाहिरा लोग इज्ज़तदार लोगों के सामने करते हैं जो कि तुम हो नहीं।” दूसरी तरफ से महक की शरारती आवाज़ सुनाई दी।
“बहुत अच्छे, रखो कॉल। मैं पहली फुर्सत में तुम्हें ब्लॉक करने जा रहा हूं।” अली के माथे पर बल पड़े।
“अरे रुको-रुको।” वह बौखलाई।
“अब क्या है?” कोफ्त से कहते हुए चम्मच से कॉफी चखी। ज़ायका अच्छा था।
“तुमसे बात करनी है कुछ।” वह ज़रा मिनमिनाई।
“जल्दी बोलो।”

Hisar e Ana chapter 4

“वह म… आ.. म्म…।”
“यह क्या बकरी की तरह मैं मैं लगा रखी है।” वह झल्लाया।
“तुमसे तमीज़ से बात नहीं होती क्या?” वह गुस्से से चीखी।
“तमीज़ तो इज्ज़तदार लोगों में होती है ना?” थोड़ी देर पहले का बदला चुकाया। वह ठंडी हुई।
“अच्छा सुनो, यह बताओ असफन्द कब जा रहा?”
“पता था…. पता था मुझे की तुम अपने मतलब से ही कॉल करोगी। माफी मांगना तो मैडम को याद ही ना होगा।”
“कैसी माफी?” वह अनजान बनी।
“वह जो उस दिन अपने full mannered और mature होने का सबूत दिया था।”
“तुमने बात ही ऐसी की थी… मैं मासूम और क्या करती फिर?”
“वाह-वाह, सदके जाऊं इस मासूमियत के।” अली ने दांत पीसे।
“अच्छा बताओ ना…. कब जा रहा असफन्द?”
“पहले sorry बोलो।” कहते हुए कॉफी का सिप लिया।
उधर वह भड़क ही गई।
“तुमसे sorry बोलती है मेरी जूती।”
“तो तुम्हे भी असफन्द का info देती है मेरी जूती… मतलब जूता, हुंह।” कहकर कॉल काट दी।

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यह सुबह 7 बजे का वक़्त था। इलयास और सबीहा फज़िर की नमाज़ के बाद अपने कमरे में आराम कर रहे थे।
दो दिन मुकम्मल आराम के बाद आज राहेमीन के पैर का दर्द कुछ बेहतर हुआ तो वह लॉन में चली आयी।
सुबह का वक़्त, मौसम अच्छा था। ठंडी हवाएं चल रही थीं।
गहरे नीले रंग का प्लेन प्लाज़ो कुर्ती पहने दुपट्टा कंधों पर फैलाए काले लम्बे सिल्की बाल खुले छोड़े वह नंगे पैर घास पर चल रही थी।
अभी कुछ देर ही गुज़री थी जब गेट पर बेल हुई।
उसे लगा चपरासी खोल देगा लेकिन जब दोबारा बेल हुई तो देखा चपरासी बाबा तो गेट के पास थे ही नहीं।
इसलिए वह खुद गेट खोलने के लिए आगे बढ़ी।
लोहे का बड़ा सा गेट खोलते ही जैसे उसने सामने देखा तो साकित सी रह गई।
आंखों में हज़न सा उतर आया।

Hisar e Ana chapter 4

(ग़ज़ल को फिर सजा के सूरत ए महबूब लाया हूं,
. सुनो अहले सुखन! मैं फिर नया अस्लूब लाया हूं।)

“कैसी हो?” अपनी सहर ज़दा आंखें उस पर जमाए वह लंबा चौड़ा शख़्स उससे पूछ रहा था।
राहेमीन को अपना वजूद बेजान होता महसूस हुआ।

(कहो, दस्ते मोहब्बत से, हर एक दर पर यह दस्तक क्यूं,
.कहा, सबके लिए में प्यार का मकतूब लाया हूं।)

“अ… आप।” उसे अपनी सांस अटकती हुई लगी जबकि असफन्द मीर को सालों बाद उसे अपने सामने देख सुकून सा अपने अंदर उतरता महसूस हुआ। वह कुछ देर यूँ ही उसे देखे गया।

(कहो, क्या दास्तान लाए हो दिल वालों की बस्ती से,
.कहा, एक वाक्या मैं आपसे मंसूब लाया हूं।)

“Trust me…. मेरी दिली ख्वाहिश थी कि यहां आकर सबसे पहले तुम्हें देखूं। वैसे सच बताओ तुम्हें इलहाम हुआ था क्या?” मुस्कुराहट दबाए सामने वाले की हैरानी से बेपरवाह वह आगे बढ़ा। राहेमीन बेसाख्ता दो कदम पीछे हुई।

(कहो,यह जिस्म किसका, जान किसकी, रूह किसकी है,
.कहा, तेरे लिए सब कुछ मेरे महबूब लाया हूं।)

असफन्द ने फिर आगे बढ़कर नर्मी से उसकी दोनों कलाई थामी। “पता नहीं तुमने मुझे याद किया या नहीं। लेकिन मैं बताऊं?” वह अपनी ही धुन में था।

(कहो, कैसे मिटा डालूं अना, मैं इल्तिज़ा करके,
.कहा, मैं भी तो लब पर अर्ज़े ना मतलूब लाया हूं।)

“मेरा तो एक लम्हा भी तुम्हारी याद से खाली नहीं गुज़रा। जादू सा कर दिया है तुमने मुझ पर…” उसकी खूबसूरत आंखों में झांका जहां अब हल्की सी नमी आ गई थी। असफन्द को तकलीफ हुई।

(कहो, टूटे हुए शीशे पर शबनम की नमी कैसी,
.कहा कल्बे शिकास्ता दीदाह ए मर्तूब लाया हूं।)

poetry credit: Adeem Hashmi

इससे पहले कि हाथ से उन कातिल आंखों को छूता, राहेमीन खौफ से अपनी दोनों कलाई उससे छुड़ा कर जाने के लिए पलटी थी और तेज़ी से भागते हुए अंदर की तरफ चली गई।
इससे बेपरवाह कि उसका नीला दुपट्टा वहीं घास पर गिरा रह गया।
असफन्द की नज़रों ने दूर तक उसका पीछा किया। दिल में एक दर्द सा जागा था। वह कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहा।
फिर गहरी सांस लेकर उसके दुपट्टे को उठा कर अपने बैग में डाला।
इतने में सर्वेंट क़्वार्टर से चपरासी आता दिखाई दिया।

Hisar e Ana chapter 4

“अरे असफन्द बाबा आप? …इतने अचानक?”
असफन्द ने जवाब देने के बजाए सलाम करके उनका हाल चाल पूछा। चपरासी इतनी तवज्जाह पर ही खिल सा गया।
वह और उसकी बीवी कई सालों से इस घर में काम करते थे।
“बस मुआफ़ करना बाबा मैं ज़रा अंदर पानी पीने चला गया था।” अब चपरासी अपने गेट के पास मौजूद ना होने की सफाई दे रहा था।
“कोई बात नहीं चाचा। बस आगे ध्यान रखिएगा।” कहकर वह बैग लिए अंदर की तरफ बढ़ गया।
लाउंज में इस वक़्त सन्नाटा था। वह हैरान नहीं हुआ क्यूंकि यह हमेशा की रूटीन थी। फजिर की नमाज़ के बाद इलयास और सबीहा आराम करते थे कुछ वक़्त।
किचन में रफाकत (नौकरानी) नाश्ते की तैयारी कर रही थीं।।
उनसे मिल कर वह सीधे ऊपर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गया। अपने बेडरूम की एक चाबी अब भी उसके पास थी।

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राहेमीन ने अपने कमरे आकर दरवाज़ा बंद किया और घबराहट में बेड पर आ कर बैठ गई।
सांस गले में अटकती महसूस हो रही थी।
दाहिने हाथ से माथे पर आए पसीने को पूछा।
आंखों से आंसू न जाने कब से बहने शुरू हो गए थे।
बेचैनी से उठकर बाथरूम जा कर पानी से मुंह धुला।
बेसिन के ऊपर लगे शीशे को देखा तो बिखरा हुआ अपना ही अक्स मज़ाक उड़ाता महसूस हुआ।
राहेमीन ने बेबसी से अपने गुलाबी लब भींचे लिए।
उसे समझ आ गया था कि कबूतर की तरह आंखें बंद कर लेने से मसला खत्म नहीं हो जाता, वह वहीं का वहीं रहता है।
वह उल्टे क़दम पीछे हटकर ज़मीन पर बैठती चली गई।

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Flash back ——– इलयास मीर ने सबीहा का ज़िक्र अपने एक रिश्तेदार के मुंह से सुना था जो सबीहा के पड़ोस में रहते थे। वह सबीहा के एक बच्ची की मोहब्बत में अपनी 4 साल की मंगनी से मुंह मोड़ लेने से काफ़ी मुतासिर हुए।
इधर वह अपनी बीवी के कुछ महीने पहले गुज़र जाने की वजह से अपने 8 साला बेटे असफन्द के लिए कई दिन से परेशान थे।
वह बहुत हस्सास बच्चा था। मां की मौत से धीरे धीरे डिप्रेशन में जा रहा था। ना इलयास और ना ही कोई ‘आया’ उसे संभाल पा रहे थे।
परिवार में और कोई दूसरा था नहीं। ऐसे में उनके एक दोस्त ने दूसरी शादी की सलाह दी। दोस्त का कहना था कि असफन्द को ‘आया’ की नहीं बल्कि मां की ज़रूरत है।
इलयास मीर सोच में पड़ गए थे।
ऐसे में उन्हें जब सबीहा का पता चला तो रिश्ता भेजवा दिया।

Hisar e Ana chapter 4

इधर इस बार घरवालों ने सबीहा की एक न चलने दी क्यूंकि इलयास राहेमीन को भी बेटी के तौर पर क़ुबूल करने को तैयार थे।
सबीहा एक हकीकत पसंद लड़की थी।
इस शादी में उसे राहेमीन का मुस्तकबिल रौशन नज़र आ रहा था। इसलिए वह मान गई
शादी से पहले उन्होंने एक बार बाकायदा इलयास से मुलाक़ात ज़रूर की थी और उन्हें जता दिया था कि वह यह शादी सिर्फ राहेमीन के लिए कर रही है।

जिस पर इलयास मीर ने उनसे वादा किया, “राहेमीन मेरे घर में बेटी की तरह रहेगी। मैं उसे हर मुमकिन तहफ्फुज़ दूंगा। बस आप भी मेरे बेटे की मां की कमी दूर कर दीजिए। उसे संभाल लीजिएगा।” जवाब में सबीहा ने हां में सर हिला दिया था।
इस तरह उन दोनों ने अपने बच्चों की खातिर सादगी से शादी कर ली।
दोनों अंदर से पुरसुकून थे कि सारी मुश्किलें हल हो गईं।
अपना फैसला सही लग रहा था।
लेकिन उनकी यह गलत फहमी बहुत जल्द ही दूर हुई थी।
Flash back end

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“राहेमीन कहां है?” नाश्ते के वक़्त मेज़ पर राहेमीन को ना पा कर इलयास मीर ने बीवी से पूछा।
सबीहा मुस्कुराईं।
“कॉलेज के लिए तैयार हो रही होगी…. आप यह जूस लें ना।” ग्लास में जूस निकाल कर उन्हें पकड़ाया और फिर किचन कि तरफ रुख मोड़ा।
“रफाकत क्या बना रही हो भई आज? बड़ी खुशबू आ रही है।”
“बस बाजी, थोड़ी देर और रुकें।” रफ़ाकत ने भी वहीं से आवाज़ लगाई तो दोनों हंसे।
“अल्लाह जाने क्या हो गया इसे आज। इतनी देर से किचन में लगी हुई है।” सबीहा ने बताया।

इलयास मीर ने जूस पी कर ग्लास मेज़ पर रखते हुए सामने निगाह की तो एक पल को ठिठके।
फिर सर झटक कर बोले, पता नहीं असफन्द की पढ़ाई कब पूरी होगी, उसकी याद में तो मुझे अब उसके illusion भी दिखने लगे हैं।”
उनकी बात पर सबीहा ने कुछ उलझ कर उनकी नज़रों का तआकुब किया…. और फिर बेइख्तियार खड़ी हुईं।
“असफन्द।”
डाइनिंग की दहलीज़ पर खड़ा मुस्कुराते हुए वह उन दोनों को ही देख रहा था।
to be continued……

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