Hisar e Ana chapter 3 : The Siege of Ego chapter 3 by Elif Rose

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hisar e ana chapter 3

Hisar e Ana chapter 3

“What?” अली जी भर कर हैरान होता आगे बड़ा।
“तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है? फाइनल एग्जाम को दिन ही कितने बचे हैं और तुम जा रहे हो।” असफन्द ने एक लम्हे को रुक कर उसे देखा।
“बोल तो ऐसे रहे हो जैसे मैं हमेशा के लिए जा रहा हूं। यह देखो।” किताबें उठा कर उसे दिखाई। “इन्हें साथ ले जा रहा हूं। आ जाऊंगा यार एग्जाम से पहले।”
“लेकिन यार ऐसी भी क्या जल्दी है?” अली ने झुंझला कर उसे देखा जो सफेद टी शर्ट और गहरे नीले रंग के लोवर में मसरूफ सा पैकिंग कर रहा था लेकिन आंखों में एक उलझन सी थी।
“बस मेरा दिल नहीं लग रहा फिलहाल यहां।” अली ने उसे घूरा।
“तुम एक ख्वाब के पीछे अपना दिमाग़ खराब किये बैठे हो और कुछ नहीं।”
“What ever” उसने कंधे उचकाये।

Hisar e Ana chapter 3

अली दाएं हाथ से अपना माथा मसलते हुए बेड पर असफन्द के सफरी बैग के पास ही बैठ गया।
“मैंने लैला-मजनू, हीर-रांझा की कहानियां सुन रखी हैं, ये इश्क़ मोहब्बत में इंसान को कुछ हासिल नहीं होता, बर्बाद हो कर रह जाता है।
इसलिए मेरी मानो, सारा फोकस पढ़ाई पर लगाओ अपनी। मत भूलो आर्किटेक बनना बचपन की ख्वाहिश है तुम्हारी, दिन रात मेहनत की है तुमने यहां एडमिशन के लिए।
अब जब कि मंज़िल तुम्हारे इतने करीब है, तो तुम महज़ एक ख़्वाब से परेशान हो कर उसे छोड़ रहे हो।” वह सच में परेशान था।
असफन्द उसके सामने कुर्सी खींच कर बैठा।
“ये दिल के मामले हैं मेरे यार, तुम नहीं समझोगे। वैसे भी मैं कुछ नहीं छोड़ रहा, बस कुछ दिन की बात है फिर देखना इस बार भी तुम्हें टफ कम्प्टीशन दूंगा।” उसे तसल्ली दी।
अली ने मुंह बनाया “बस रहने दो, मुझे नहीं लगता कि अब तुम वापस आ पाओगे”

असफन्द ने जवाब में उस ‘रूठी हसीना’ को घूरा। “कसम से, कभी-कभी पूरी अम्मा लगते हो मेरी।”
अली न चाहते हुए भी हंस दिया। फिर पास ही साइड टेबल पर रखी राहेमीन की फोटो पर एक नज़र डाली।
“पता नहीं, तुम्हारी किस्मत में यह प्यारी लड़की लिखी भी है या नहीं।”
जवाब में असफन्द ने वह फोटो उठाई। कुछ लम्हे बस यूं ही देखता रहा फिर गहरी सांस लेकर वह भी बैग में डाली और अली की तरफ मुड़ा।
“लैला मजनू, हीर रांझा को भले ही मोहब्बत में नाकामी मिली हो, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं होगा अली। क्योंकि तुम्हारा दोस्त इस बात पर यकीन रखता है कि मोहब्बत और जंग में सब जायज़ है।”

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मेडिकल की मोटी मोटी किताबें राहेमीन को हमेशा अपना मज़ाक उड़ाती महसूस होती थीं। मजाल थी जो कुछ भी आसानी से समझ आता हो।
ऐसा नहीं था कि वह पढ़ना नहीं चाहती थी, वह तो खूब मेहनत करती थी। या यह कह लें कि गम ए ज़िन्दगी से फरार को यह किताबें ही तो सहारा होती थीं।
बात दर-असल यह थी कि उसकी दिलचस्पी ही दूसरी चीज़ों में थी। कुकिंग, गार्डेनिंग और बच्चों के साथ खेलना।
इन सब कामों के लिए वह हर वक़्त तैयार रहती थी।
होते है न कुछ लोग, जो सादा रहन-सहन ही पसंद करते हैं। वह भी ऐसी ही थी। लेकिन सबीहा ने उसे मेडिकल की पढ़ाई में लगा दिया।

इन्हीं सोचों में गुम वह सड़क पर चल रही थी। किसी वजह से ड्राइवर नहीं आया था और कोई रिक्शा भी नहीं मिला इसलिए पैदल ही चलना पड़ रहा था।
अभी वह चल ही रही थी कि पैर पर एक ज़ोरदार टक्कर लगने से कराहती हुई ज़मीन पर बैठी। तकलीफ से उसकी आंखों में आंसू आ गए।
“Ohh sorry-sorry!” आवाज़ पर उसने सर उठा कर देखा। वह एक करीब 9 साल का लड़का था जो अपनी साइकिल लिए फिक्रमंदी से बोला था। उसी की साइकिल से उसके पैर में टक्कर लगी थी।
दर्द तो बहुत ज़्यादा था लेकिन अब बच्चे पर क्या गुस्सा करती।

“It’s ok.” कहते हुए वह उठने लगी कि कराहते हुए फिर बैठ गई। उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था।
बेबसी से अपने आस-पास देखा। आते जाते राहगीर एक नज़र उसे देख तो रहे थे लेकिन मदद को कोई आगे नहीं आया था।
राहेमीन का दिल चाहा वहीं बैठ कर रोना शुरु कर दे।
वह लड़का कुछ देर ऐसे ही राहेमीन को खड़े होने की कोशिश करते देखता रहा फिर बोला, “रुकिए में अपनी ममा को बुला कर लाता हूं।”
राहेमीन ‘अरे-अरे’ करती रह गई लेकिन वह लड़का अपनी साइकिल वहीं छोड़ भागते हुए एक गली में घुस गया।
राहेमीन ने बिना उसका इंतज़ार किए बैग से मोबाइल निकाला और इलयास मीर को कॉल करने लगी लेकिन उनका नम्बर बंद जा रहा था।

Hisar e Ana chapter 3

थोड़ी देर में ही वह लड़का एक औरत का हाथ पकड़ते हुए आता दिखाई दिया। वह उसकी मां थी। पीला सलवार सूट पहने, तीखे नकूश वाली औरत उसके पास आते ही नॉन-स्टॉप बोलना शुरू हुई।
“हां भाई, तुम लड़कियां आंखें घर पर छोड़ कर चलती हो क्या? देख कर चला नहीं जाता?” एक हाथ कमर पर रखे दूसरे हाथ हिला-हिला कर बोल रही थीं। राहेमीन बौखला गई।
“ज़रा आगे पीछे देख कर चला जाए तो कोई मुसीबत ही ना हो। अब मेरा बेटा मुझे यहां खींच कर ले आया वर्ना मेरी बला से, पड़ी रहती यहीं रात भर।………. अरे-अरे रोना तो बंद करो।” उनकी ज़बरदस्ती की दांट पर वह सच में रोने लग गई थी।

“उफ़!” वह औरत बदमज़ा हुई, फ़िर एक नज़र आते जाते लोगों को पर डाल कर अपने बेटे को देखा जो नाराज़गी से उन्हें ही घूर रहा था।
“तुम यह साइकिल लेकर घर जाओ। मैं इस लड़की को इसके घर छोड़ कर आती हूं।”
“नहीं।” अपना पैर पकड़े रोते हुए राहेमीन ने इनकार किया। “आप मुझे बस रिक्शा करा दीजिए, मैं चली….”
“ओ बीबी! नखरा दिखाने की ज़रूरत नहीं है। इस वक़्त रिक्शा मिलना होता तो अभी तक यहां ना पड़ी होती तुम।” फिर झुक कर सहारा देते हुए उसे उठने में मदद की।
“कहां रहती हो?” उनके पूछने पर राहेमीन ने पता बताया तो वह औरत बुरी तरह चौंकी। वह एक VIP इलाका था।

“तुम वहां रहती हो?” पूछते हुए सर से पैर तक उसे देखने लगीं।
बेबी पिंक कलर का अनारकली सूट पहने बज़ाहिर वह सादा से लुक में थी लेकिन शख्सियत का एक ख़ास वक़ार उसके वाक़ई किसी बड़े घर से होने की चुगली कर रहा था। दुपट्टे के हाले में दमकता चहरा, रोई-रोई सी आंखें, मासूम हुस्न।
राहेमीन को उनकी नज़रों से उलझन सी होने लगी। लेकिन मजबूरी थी। वह उनके सहारे ही खड़ी थी।
उस औरत का रवाय्या अचानक ही नर्म हुआ। अपने लड़के से ज़मीन पर गिरे राहेमीन के कॉलेज बैग को उठवाया। ( वह अभी तक वहीं खड़ा था।) फिर उसे घर जाने की हिदायत देती वह राहेमीन को सहारा देकर चलने लगीं थीं।

अब वह उससे हल्की फुल्की बातें भी कर रहीं थीं।
दो तीन गली मुड़ कर उसका घर आ गया था। उसे वहां छोड़ कर और एक नज़र उस खूबसरत घर पर डाल कर वह जाने लगीं।
राहेमीन ने उन्हें अंदर आने की दावत दी लेकिन वह फ़िर कभी आने का कह कर वहां से चली गईं। पीछे राहेमीन जो गेट का सहारा लिए खड़ी थी, उसने अंदर जाने के लिए बेल बजा दी।
बज़ाहिर आज के वाक्ये में कोई खास बात नहीं थी। लेकिन बाज़ दफा जिन चीज़ों को या जिन लोगों को हम गैर ज़रूरी समझ लेते हैं, वह आगे चल कर बहुत अहम साबित होते हैं।

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Flash back
हाशिर ने शादी कर ली। इस खबर ने सबीहा को अंदर तक तोड़ के रख दिया था।
वह जो दिल को हल्की सी भी उम्मीद थी कि वह पलट आएगा, टूट गई।
“तो साबित हुआ, मोहब्बत नामी चीज़ हम इंसानों में पाई ही नहीं जाती।”
उसे तकलीफ हुई थी…. बहुत तकलीफ़ हुई थी।
4 साल उनकी मंगनी चली थी। हालांकि फ़ैसला उसका अपना था लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था।

मां- बाप तो सबीहा के पहले ही गुज़र चुके थे। भाई भाभी के अपने भी बच्चे थे।
ऐसे में बिन मां बाप की बच्ची को वह दूसरों के भरोसे छोड़ कर अपनी खुशियों का कैसे सोचती।
वह भी तब जब राहेमीन से खुद वो भी हद से ज़्यादा अटैच हो गई थी।
ऐसा नहीं था कि वह हाशिर पर किसी तरह का माली दबाव डालना चाहती थी।
वह खुद पड़ी लिखी थी, कर सकती थी उसकी परवरिश।
लेकिन वह इंसान तो उस मासूम को अपने घर में बर्दाश्त तक नहीं करना चाहता था।
उसके सारे वादे, कसमें मिट्टी का ढेर साबित हुए। यहां से इनकार पर बहुत जल्दी घर बसा लिया।

Hisar e Ana chapter 3

वक़्त तेज़ी से गुज़र रहा था। कुछ महीने बाद सबीहा ने भाई के मना करने के बावजूद एक स्कूल में जॉब कर ली।
स्कूल से आकर उसका सारा वक़्त अपनी बेटी के लिए होता था।
हां…. वह प्यारी, मासूम सी गुड़िया उन्हें अपनी सगी बेटी ही लगने लगी थी।
अपनी आंखें पटपटा कर जब वह उसे ‘ अम्मी’ कहती, तो उसे अपनी दिन भर की थकावट दूर होती महसूस होती।
वह खूबसूरत थी। रिश्ते अब भी आते थे।
लेकिन राहेमीन को कोई भी क़ुबूल नहीं करना चाहता था।
सच कहें तो सबीहा को परवाह भी नहीं थी अब।
दिल पर लगा एक ज़ख्म ही बहुत था।
ज़िन्दगी ऐसे ही गुज़र रही थी जब दो साल बाद इलयास मीर उनकी ज़िन्दगी में आए।
Flash back end

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यह एक रेस्टोरेंट का मंज़र था। मेज़ के एक तरफ नीली पैंट- सफेद शर्ट पहने बेज़ार सा अली तो दूसरी तरफ रोते हुए सूं सूं करती महक।
ब्लैक जींस- ग्रीन टॉप पहने,डार्क ब्राउन घुंघराले कंधों से ज़रा नीचे तक आते बाल खुले थे।
“बात सुनो अगर तुम्हें इसी तरह रो कर मुझे लोगों की नज़र में मशकूक करना है ना तो बैठी रहो मैं तो चला।” वह झल्लाते हुए उठा।
“उसे रोक लो अली।” महक ने जैसे उसकी सुनी ही नहीं।
अली को ज़रा तरस आया। फिर दोबारा बैठ कर मेज़ पर रखा टिशू उसे पकड़ाया।
“मैंने अपनी कोशिश कर ली है। वह नहीं रुकेगा।” यहां असफन्द की बात हो रही थी।
“लेकिन तुम परेशान मत हो, जल्द ही वापस भी आ जाएगा।” उसे तसल्ली दी और मेज़ पर रखा बर्गर उठाया।
महक ने टिशू से आंसू के साथ साथ बहने वाली नाक भी पोंछी।

“लेकिन वह जा ही क्यूं रहा है।” उफ़… अली को अब पछतावा हो रहा था उसे बता कर।
“क्यूंकि दिल नहीं लग रहा उसका यहां।” बर्गर खाते हुए बोला।
“वहां किसी में interested है क्या वह?” महक ने शक्की होते हुए उसे देखा।
“Intrested? ओ मैडम वो साहब तो मोहब्बत के समुंदर में पूरी तरह डूबे हुए हैं।” उसके कहने पर महक का चेहरा बुझ सा गया।
“तभी मुझे इग्नोर करता है।” जवाब में अली ने यूं कंधे उचकाए जैसे कह रहा हो ‘मैं क्या कह सकता हूं।’

Hisar e Ana chapter 3

वह दुख से यूं ही हाथ में पकड़े टिशू को देखती रही। अली ने बर्गर ख़तम करके उसे देखा।
“वैसे।” गला खंखार कर मेज़ पर ज़रा आगे को झुका।
तुम क्यूं उसके पीछे अपना वक़्त बर्बाद कर रही हो। भई और भी लड़के हैं ज़माने में असफन्द के सिवा।”
“हां लेकिन कोई उस जैसा तो नहीं न।” वह अब भी ग़म में थी।
“न करो यार। लगता है तुम्हारी पास की नज़र कमज़ोर है।”

उसकी बात पर महक ने सर उठा कर कुछ उलझ कर उसे देखा।
मुस्कुराहट दबाए, आंखों में शरारत लिए वह उसी की तरफ़ मुतवज्जाह था।
एक हाथ से अपने कॉलर को ठीक करते वह बस हंस देने को था।
महक को उसका इशारा जैसे ही समझ आया, उसके नकूश गुस्से से तन गए।
” इडियट, डफर!” उठते हुए हाथ में पकड़ा टिशू उसके मुंह पर दे मारा। और वहां से निकल ली।
पीछे अली हक्का बक्का उस टिशू को हाथ में लिए गोया सदमें में आ चुका था।
“गंदी लड़की!” दबी आवाज़ में चीखते वह उठा लेकिन महक तब तक जा चुकी थी।
to be continued…..

Hisar e Ana chapter 3

Assalam o Alaikum everyone,
How’re you all?
Sorry for late update of Hisar e Ana chapter 3 .
Next chapter will be post within 3 to 4 days Insha Allah.
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