Hisar e Ana chapter 6 : The Siege of Ego chapter 6 by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 6

काले रंग का कुर्ता पजामा पहने आस्तीन कोहनियों तक मोड़े आंखों में मोहब्बत का एक जहां आबाद किए वह उसे ही देख रहा था।
राहेमीन दोबारा रुख़ मोड़ कर फूलों को पानी देने लगी।
उस दिन के मुकाबले आज वो काफी composed थी।
“क्या यह मुमकिन है, कभी मुझे भी इतनी तवज्जाह मिले?” असफन्द की आवाज़ उसके कानों पड़ी जिसे कमाल महारत से नज़र अंदाज़ किया।
“राहेमीन।…”
इस बार भी उसके जवाब न देने पर वह उसके दाएं जानिब खड़ा हुआ।
“यह नाराज़गी कब तक चलेगी?” सवाल पर वह तल्खी से हंसी।
“नाराज़ भी लोग अपनों से होते हैं, जबकि आप मेरे लिए कुछ मायने नहीं रखते।”

असफन्द ने बेबसी से एक लम्हे को आंखें बंद करके दोबारा खोलीं।
“इतनी संगदिल मत बनो।”
वो वाटर पॉट ज़मीन पर रख कर उसकी तरफ मुड़ी। “अपने बारे में क्या खयाल है?”
“गलत judge कर रही हो तुम मुझे। नहीं जानती मोहब्बत कितना बेबस कर देती है।”
“जानने की ख्वाहिश भी नहीं है मुझे।” कह कर उससे दूर हुई और कुछ दूरी पर रखी कुर्सी पर बैठ कर थके हारे अंदाज़ में कुर्सी से टेक लगा कर आंखें बंद कीं। जूड़े से निकलती कुछ लटें उसके साफ़ शफ़्फ़ाफ़ चहरे पर आ कर उसके हुस्न में मज़ीद इज़ाफ़ा कर रहीं थीं।
एक लम्हे को असफन्द को वह कोई मोमी मुजस्सिमा लगी जिसके ज़रा से हाथ लगाने से भी टूटने का डर हो।
एक सहर के ज़र ए असर वह आ कर उसके सामने बैठा।
यह कैसा जज़्बा था जो उसके सामने वह दुनिया भूल जाता था।

Hisar e Ana chapter 6

“मैं औरों की तरह मज़बूत हरगिज़ नहीं हूं।” राहेमीन की सरगोश सी आवाज़ पर वह चौंका।
“हालात का सामना करने की हिम्मत खुद में नहीं पाती।
आप मोहब्बत का दावा करते हैं ना? तो फिर मुश्किल आसान कर दें मेरी।”
“मुझे कुछ वक़्त दरकार है। फिर सब ठीक कर दूंगा।” वह सच में उसकी हर परेशानी दूर करना चाहता था।
“अब कुछ ठीक नहीं हो सकता।” उसने आंखें खोली। “बस कफारा कर सकते हैं।”
“कहना क्या चाहती हो?” वो उलझा।
“आप बख़ूबी समझ रहे हैं…… मैं क्या कहना चाहती हूं।”

Hisar e Ana chapter 6

असफन्द कुछ देर नासमझी से उसे देखता रहा फिर उसके चहरे के तस्सुरात अचानक सख्त हुए थे।
“मैं अगर नर्मी और सुलह पर मायल हूं तो इसे बरकरार रहने दो। मजबूत मत करो कि कोई सख्त क़दम उठा लूं।” उसके लहज़े में नर्मी थी लेकिन अल्फ़ाज़ की सख्ती पर राहेमीन गुस्से से खड़ी हुई।
“एक चीज़ होती है फितरत, वो कभी नहीं बदलती। आपके साथ भी यही मसला है।”
असफन्द ने सुकून से उस को देखा।
“जो समझना है समझो, मगर आगे से ऐसा फिज़ूल मुतालबा करने की कोशिश भी मत करना।”
“आप इंतेहाई घटिया इंसान हैं।” वह दबी आवाज़ में चीखी।
“और कुछ?” भौंवे उचकाई।
“मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी।” बेबसी से कहते हुए वह अंदर की तरफ चल दी।
असफन्द ने फीकी मुस्कुराहट से उसे जाते देखा।
“महबूब पर जचता है, ज़ालिम होना।”

Hisar e Ana chapter 6

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यह Canada के एक अच्छे इलाके में 4BHK का प्यारा सा घर था। जहां एक अच्छी मल्टी-नेशनल कंपनी में जॉब करने वाले सिकंदर शाह अपनी टर्किश बीवी इसरा और तीन बच्चों सनेम (महक), डेनिज़ और एलिज़ा के साथ रहते थे।
दोनों मियां बीवी ने अपने घर का माहौल काफ़ी हद तक देसी ही रखा था।
क्यूंकि सिकंदर का ताल्लुक भारत से और इसरा का तुर्की से था, इसलिए उनके यहां दो तीन लैंग्वेज बोली जाती थीं।
अली के इस फैमिली के साथ अच्छे ताल्लुकात थे।
दरअसल असफन्द के साथ फ़्लैट शेयर करने से पहले वो यहीं इनके यहां paying guest के तौर पर रहता था। इसी दौरान महक से उसकी दोस्ती भी हुई थी जो तमाम नोक झोंक के बावजूद वक़्त के साथ गहरी होती गई।
लेकिन इस बार वह कुछ ज़्यादा ही नाराज़ हो गया था और महक का मसला यह था कि उसे मनाना नहीं आता।

3-4 दिन इसी में गुज़र गए। कॉलेज की पढ़ाई पूरी हो गई थी। अब बस फेयरवेल पार्टी बची थी जो कि कल ही थी और उसके बाद पेपर।
इस वक़्त वह अपने कमरे में बेड पर किताबें फैलाए पड़ने में मसरूफ थी। बीच बीच में रुक कर मोबाइल को भी घूरती। ( इस अली के बच्चे के नखरे पता नहीं कब खत्म होंगे।) बस सोच के रह जाती।
कुछ ही देर हुई थी कि बाहर से आती आवाज़ पर चौंक कर उठी।
“हैं…???”
सिल्की बालों को क्लैचर में कैद किए दरवाज़े तक आ कर उसने झांका।
मोहतरम अली एवान साहब अन्ने और पापा के साथ बातें करते हुए अन्दर आ रहे थे।
वो मुंह बना कर वापस आ कर बेड पर बैठ गई।

Hisar e Ana chapter 6

उधर मिसेज़ इसरा अली के हाथ से बुके पकड़ते हुए नाराज़गी जता रही थीं।
“कहां गायब रहते हो, पता ही नहीं चलता तुम्हारा कुछ।”
जेब से चॉकलेट्स निकालकर 15 साला एलिज़ा को देते वह मुस्कुराया।
“बस अन्ने, कुछ बिज़ी था।” सबकी तरह वह भी उन्हें यही पुकारता था।
“बस रहने दो, मैं आज भी कॉल ना करता तो ना आते तुम।” सिकंदर साहब ने भी बातचीत में हिस्सा लिया।
वह हंसा “अच्छा, गुस्ताख़ी मुआफ।”
और कुछ दूर खड़े 18 साला डेनिज़ को देखा।
“और भाई डेनिज़, क्या हाल है?”
“ठीक।” इतना सा जवाब देकर डेनिज़ ने जैसे एहसान किया। उसकी कम ही पटती थी अली से। बस मजबूरन उन लोगों के साथ वहां बैठ गया।

नाश्ते के साथ साथ हल्की फुल्की बात चीत के बाद मिसेज़ इसरा किचन में खाना बनाने चली गईं।
जाने से पहले वो महक के कमरे में अली के आने का बताने गईं थीं।
लेकिन उसके सोने का नाटक करने की वजह से वापस जाना पड़ा।
सिकंदर के मोबाइल पर कॉल आई तो वह अली से एक्सक्यूज़ करके वहां से उठे।
उनके जाते ही एलिज़ा अली के सोफे पर आ बैठी।
“अली भाई मुझे आपको कुछ बताना है।” अंदाज़ सरगोशी लिए हुए था।
अली ने उसे और सामने ही सीरियस बैठे डेनिज़ को नासमझी से देखा।
“क्या?”

“पापा और अन्ने महक आपी की शादी का सोच रहे हैं।”
“हैं?.. सच में?” उसे खुशी हुई।
“हां… उन्होंने लड़का भी देख लिया है।”
“Wow” दिलचस्पी से बोला।
उसके इतमीनान पर एलिज़ा और डेनिज़ ने एक दूसरे को देखा।
“आपको ज़रा दुख नहीं हुआ?”
“मुझे क्यूं दुख होगा?” उसे समझ नहीं आया।
जिस पर डेनिज़ ने टर्किश में अपनी बहन से कुछ कहा।
अली को कुछ खटका।
“क्या खिचड़ी पक रही तुम दोनों में?” कहते हुए पानी का ग्लास उठा कर मुंह को लगाया।
“Don’t you both love each other?”
अली को एक बारगी खांसी आई। पानी गले में अटक गया था।

“क्या हुआ?” आवाज़ पर मिसेज़ इसरा ने किचन से पूछा।
“कुछ नहीं अन्ने….पानी अटक गया।”
“ओह…. ध्यान से बेटा।”
“जी।” कह कर उसने उन दोनों को घूरा।
“यह क्या मज़ाक है?”
“मज़ाक नहीं।” एलिज़ा ने एहतिजाज किया। “हमें लगा था आप शादी करेंगे उनसे।”
“मेरी तौबा जो उस आफत को अपने सर थोपूं। हम सिर्फ दोस्त…..”
“Oh please” डेनिज़ ने उसकी बात काटी। “don’t make us fool. एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते।”
अली ने दांत पीसे। “कौन सी मूवी देख कर आए हो?”
“मैं मूवीज़ नहीं देखता।” डेनिज़ नाक भौं चढ़ाई और ‘हुंह्’ करते हुए उठकर कमरे में चला गया।

अली ने अपने बगल में बैठी एलिज़ा को देखा। वह भी कुछ नाराज़गी से उसे देख रही थी।
“मैंने क्या किया है… अजीब नमूने भाई बहन हो तुम लोग।”
“अगर हम गलत हैं तो महक आपी क्यूं मना कर रहीं शादी से।”
“मुझे क्या प….” झुंझलाते हुए वह कह ही रहा था कि इतने में तब फन करती महक आ कर सामने बैठी।
वह दोनों ही उसे देख खामोश हुए।

“कब तक मुंह फुला कर रखने का इरादा है?” महक के सवाल वह अनजान बना।
“सॉरी…. आप कौन?” वाह भई, उसके ही घर में बैठ कर इतनी धिटाई।
महक ने दांत पीसे।
“This is too much, मरो तुम यहीं….. खबरदार जो अब मुझसे बात की।”
अली ने , “As if I care” के अंदाज़ में कंधे उचकाए।
जिस पर वह कुशन उसके ऊपर फेंकते उठकर किचन में चली गई।
उसके होंठ शरारती सी मुस्कुराहट में ढले थे लेकिन बगल में बैठी एलिज़ा की मशकूक नज़रों पर फिर संजीदा होना पड़ा।
“तुम लोग को गलत फहमी हुई है, तुम्हारी आपी सिर्फ अच्छी दोस्त है मेरी।”

जवाब में इससे पहले कि वह कुछ कहती, सिकंदर साहब आ गए।
अली ने भी इस बेवजह की पूछताछ से जान छूटने पर सुख का सांस लिया।
लंच पर उन तीनों को नज़र अंदाज़ कर इसरा के हाथ की बनी बिरयानी खूब तारीफ कर कर के खाई।
क़रीब शाम के वक़्त वह वहां से जाने के लिए उठा था। सिकंदर और इसरा ने उसे और रोकना चाहा लेकिन उसे देर हो रही थी।
“नहीं अंकल, देर हो रही है अब… पढ़ाई भी करनी है, पेपर होने वाले हैं।” सहूलयत से इंकार करते उन तीनों पर नज़र डाली जो माथे पर बल डाले उसे घूर रहे थे।
(अल्लाह बचाए इन नमूनों से) सोचते हुए वह सलाम करके वहां से निकला था।
फ़्लैट में आ कर कुछ देर असफन्द से वीडियो कॉल की, फिर पढ़ने बैठ गया।
“Don’t you both love each other?” अचानक डेनिज़ का कहा गया जुमला याद आते ही बेइख्तियार हंसा।
“इन लोग भी ना…”
कुछ भी था, यह फैमिली उसे बहुत पसंद थी।

Hisar e Ana chapter 6

उधर उसके जाने के बाद से ही सिकंदर और इसरा ने अपने बच्चों की क्लास लेनी शुरू कर दी।
“क्या हो गया था तुम तीनों को आज?” तीनों का रवय्या उन दोनों ने नोटिस कर लिया था।
“ऐसे करता है कोई घर आए मेहमान के साथ?……. ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे उसने तुम लोग की कोई चीज़ चुरा ली हो।”
“अच्छा ना अन्ने…” एलिज़ा मिनमिनाई। “मत डांटे, आगे से ऐसा नहीं होगा।”
डेनिज़ ने भी शर्मिंदगी से सर हिलाया। “सॉरी।”

“ऐसे कैसे सॉरी…. मैं_” इसरा कुछ और भी डांटने के मूड में थीं कि सिकंदर ने बच्चों पर तरस खा कर उन्हें रोक दिया।
एलिज़ा और डेनिज़ तो फौरन वहां से भागे लेकिन महक को जाने से सिकंदर ने रोक लिया।
“जी पापा।” वापस सोफे पर बैठते वह बोली।
“तुम्हारा तो दोस्त है ना अली?”
“जी।”
“फिर?…..कोई नाराज़गी चल रही है क्या तुम दोनों की?” सरसरी से अंदाज़ में पूछा, जबकि इसरा जांचती नज़रों से उसे देख रहीं थीं।
महक गड़बड़ाई।
“हां बस कुछ, बहस हो गई थी कॉलेज में हमारी।” अब अपनी की गई हरकत बता कर शामत थोड़ी बुलवानी थी।

“हम्मम…. चलो खैर…. और बताओ। कुछ सोचा तुमने उस रिश्ते के बारे में?” अबकी बार इसरा ने पूछा।
महक ने मुंह बनाया। “अन्ने पहले सुकून से पेपर तो दे लूं, फिर इस बारे में भी सोच लूंगी।”
“ठीक है…… लेकिन कम से कम लड़का तो देख लो।”
“इतनी भी क्या जल्दी है अन्ने…. आप प्लीज़ इस मामले को फिलहाल बंद कर दें। मुझे अभी शादी नहीं करनी।”
“तो क्या बुढापे में करनी है।” इसरा का पारा फिर चढ़ा।
महक ने मिस्कीन सूरत बना कर सिकंदर को देखा जिस पर उन्हें तरस आ गया।
“ठीक है….तुम आराम से पेपर दो, इस बारे में बाद में बात करेंगे।”
महक का चहरा पल में खिला।

“You are the best Papa in the world.”
सिकंदर हंसे थे जबकि इसरा नाराज़ हुईं।
“आप ही ने सर चढ़ा कर बिगाड़ा है बच्चों को।”
महक ने उठ कर पीछे से इसरा के गले में बाहें डाली।
“Öfkeyle çok güzel görünüyorsun”
(आप गुस्से में बहुत खूबसूरत दिखती हैं।)
इसरा का गुस्सा पल में झाग हुआ।
उन्होंने मुढ़ कर उसके माथे पर बोसा दिया।

Hisar e Ana chapter 6

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Flash back
8 साला असफन्द लाउंज में सोफे के पास ज़मीन पर बैठे मेज़ पर कॉपी रखे अपने स्कूल का होमवर्क करने में मसरूफ था कि किसी के अपने बगल में बैठने पर चौंका।
छोटे बालों की दो चोटी बनाए, सफेद फ्रॉक पहने, चमकती आंखों में शौक लिए राहेमीन उसकी कॉपी – किताब देख रही थी।
“मुजे बी पलना ए।”
उसने नागवारी से लब भींचे। “दूर हटो यहां से।”
“नईई… में बी पलूंदी।” कहते साथ ही अपने नन्हे हाथों से उसकी किताब उठाई।
“वापस करो।” ज़हर लग रही थी यह लड़की उसे।
“ये मेली ए अब।” राहेमीन ने दाएं बाएं गर्दन हिलाई।
“तुम्हें सुनाई नहीं दिया मैंने क्या कहा।” असफन्द ने उसके हाथ से किताब छीन ली।

राहेमीन ने पहले तो मुंह बनाया। फिर दूसरी बुक उठा ली। इतना करना था कि उसके अंदर गुस्से की एक तेज़ लहर दौड़ी।
“एक बार में समझ नहीं आता तुम्हें कुछ?”
तैश में आकर उसने राहेमीन को पीछे की ओर धक्का दिया। पीठ पर सोफे की ठोकर ज़ोर से लगी।
राहेमीन चीख चीख कर रोने लगी।
आवाज़ पर सबीहा कमरे से भागते हुए बाहर आईं। राहेमीन को रोते देख गोया उनकी जान पर बन गई।
“क्या हुआ मेरा बच्चा?” उसके पास आकर गोद में लेते हुए परेशानी से पूछा।
“इचने दक्का दिया।” हिचकी लेते हुए असफन्द की तरफ इशारा किया।
सबीहा ने सदमे के आलम में उस बच्चे को देखा जो बग़ैर शर्मिंदा हुए अपनी किताबें समेट कर वहां से जा रहा था।

अपने कमरे में आकर असफन्द ने किताबें पटखने के से अंदाज़ में बेड पर रखी।
उसका ज़हन इस स्टेज पर था कि सब अपने दुश्मन नज़र आ रहे थें। ख़ासकर वह लड़की।
इन पिछले दो हफ़्तों में उस लड़की को अपने डैड के आस पास फिरते देखा था। उसकी शिद्दत पसंद तबीयत यह चीज़ बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
वह डर गया था कि कहीं वह उसके डैड को छीन ना ले।
सबीहा ने उससे कुछ नहीं कहा था। लेकिन रात को ऑफिस से आने पर जब रोज़ की तरह इलयास मीर उसके कमरे में आए थे तो नर्मी से उसके राहेमीन के साथ किए बुरे सुलूक के बारे में भी पूछा था।
और उनका यह पूछना ही उसे और बदगुमान कर गया।
उसी दिन से उसने राहेमीन के साथ अपनी ख़ुद-साख्ता दुश्मनी का आगाज़ कर दिया था।
Flash back end

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आज फेयरवेल पार्टी थी। महक ने सी ग्रीन कलर का फुल स्लीव डिसेंट सा गाउन पहन रखा था, बाल खुले छोड़ दिए थे। कतार में लगी कुर्सियों में से एक पर बैठी ना दानिस्ता तौर पर अली के आने का इंतजार कर रही थी।
मोबाइल पर तो बात आजकल होती नहीं थी।
कुछ ही देर में ब्लैक कलर का टू पीस सूट पहने फ्रेश सा अली आता दिखाई दिया। वह फौरन नज़रें फेर कर दूसरी तरफ देखने लगी।
( बड़ा आया, नखरे बाज़।)

वह उसके बगल वाली ही कुर्सी पर बैठा।
“महक।” पुकारने पर वह मुढ़ी। मुस्कुराहट दबाए वह उसे देख रहा था ।
महक ने भौं सिकोड़ी “आप मुझसे मुखातिब हैं?”
“यस मैडम।”
“क्यूं…. याददाश्त वापस आ गई क्या?”
वह हंसा। “हां…. बिल्कुल अभी अभी अाई है।”
महक को तप चढ़ी।
“बहुत बुरे हो तुम।”
“तुमसे कम।” उसके छेड़ने पर महक ने मुंह बनाया।
“बस रहने दो, ऐसा गुस्सा पहली बार देखा तुम्हारा, 5 दिन…. पूरे 5 दिन नाराज़ रहे मुझसे।”
“नहीं यार, नाराज़गी तो कब की खत्म हो गई थी, बस तंग कर रहा था तुम्हें।…. अच्छा सॉरी बाबा, घूरो तो मत। आज आखिरी दिन है, इंजॉय करते हैं।” उसके सुलह करने पर वह ठंडी हुई।
“कितनी जल्दी गुज़र गया ना वक़्त…. पता ही नहीं चला।”

फेयरवेल पार्टी बहुत अच्छी गुज़री।
अब वह दोनों ग्राउंड में कुर्सी पर आमने सामने बैठे गुज़रे सालों की यादें ताज़ा कर रहे थे जब अली ने अचानक पूछा।
“यह शादी वाला क्या मसला है?”
“तुम्हें किसने बताया?” वह चौंकी।
“तुम्हारे जासूस भाई बहन ने।”
हवा से उड़ते बालों को कान के पीछे करती वह हंसी।

“टाल दिया है मैंने इस बात को…. अन्ने-पापा मजबूर नहीं करेंगे मुझे।”
“मगर तुम्हें क्यूं ऐतराज़ है, जहां तक मैं जानता हूं, 2-3 साल तक जॉब का इरादा नहीं है तुम्हारा।” उसे हैरत हुई।
“हां…..लेकिन मैं बस अभी लाइफ इंजॉय करना चाहती हूं। शादी के लिए तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है।”
महक के लापरवाह अंदाज़ पर अली ने बग़ौर उसे देखा।
“अगर तुम्हारे इनकार की वजह असफन्द है तो बेवकूफी मत करो। उसने आगे भी लिफ्ट नहीं करानी तुम्हें।”
उसकी बात पर वह कुछ देर ख़ामोश रही।
“पता नहीं उसकी या किसी और वजह से………. बस मेरा दिल इस रिश्ते पर राज़ी नहीं हो रहा। घबराहट सी होती है इस बारे में सोचती हूं तो।”
यूं ही देर तक बातें करने के बाद वह दोनों वहां से रवाना हुए।

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आज मुनीबा आपा अपने बेटे बासित के साथ आई थीं। ( जिन्होंने चोट लगने पर राहेमीन को घर तक छोड़ा था।) सबीहा और इलयास ने उनकी बहुत अच्छी खातिर दारी की।
काफ़ी देर उनके साथ बैठने के बाद जब राहेमीन उठ कर जाने लगी तो बासित ने उसे पुकारा।
“अप्पी मुझे अपना पूरा घर तो दिखाइए।”
वह मुस्कुराई। “चलिए, दिखाती हूं।”
वह उसे घर दिखाने लगी। साथ ही हल्की फुल्की बातें भी हो रही थी। नीचे का पोर्शन दिखाने के बाद वह उसे लिए ऊपर आ गई।
आंखों में सताइश लिए घर को देखते वह तारीफें कर रहा था। उसे सब दिखाते जब वह असफन्द के कमरे के पास पहुंची तो रुक गई।
“बस, अब नीचे चलते हैं।”
“ठीक है।” कहकर बासित तो जाने लगा लेकिन राहेमीन के क़दम कमरे के अंदर से आती असफन्द की आवाज़ से रुके जो शायद मोबाइल कॉल पर कह रहा था।

” हां यार अली, टिकट बुक करा लिया है वापसी का।”
वह बेइख्तियार दरवाज़े के पास खड़ी हुई।
जबकि असफन्द उससे अनजान खिड़की की तरफ मुंह किए मोबाइल कान से लगाए बातों में मसरूफ था।
“हां जानता हूं तीन दिन बाद से पेपर हैं, मुझे शर्मिंदा मत करो, पूरी तैयारी है मेरी बस वहां पहुंचने की देर…।”
किसी अहसास के तहत वह पीछे मुड़ा।
“मैं तुमसे बाद में बात करता हूं।” कहकर कॉल काट कर मोबाइल जेब में डाला और आंखों में खुशगवार हैरत लिए उसकी तरफ बड़ा।

“यह मेरा वहम है या वाकई तुम यहां का रास्ता भूल गई?”
“आप वापस जा रहे हैं?” उसकी बात नजरअंदाज किए राहेमीन ने पूछा, अंदाज़ कुछ परेशान सा था।
असफन्द ने एक गहरी सांस ली।
“हां….. दिल तो नहीं कर रहा… लेकिन ज़रूरी है बहुत। पहले ही इतनी देर….”
“आप इस तरह कैसे जा सकते हैं?” वह दबी आवाज़ में चीखी। “म..मैं नहीं जाने दूंगी आपको।”
असफन्द मुस्कुराया।
“एक महीने की बात है, थोड़ा और इंतजार कर…..” अचानक चुप हुआ क्यूंकि रफाकत बी उसे पुकारते हुए आ रहीं थीं।

Hisar e Ana chapter 6

“असफन्द बेटा, आपके दोस्त शाहज़र आए हैं नीचे।”
“जी अच्छा मैं आता हूं।” उन्हें भेज कर वापस उसे देखा जो रफाकत बी के आने पर भी यहीं खड़ी थी।
ना जाने क्या चल रहा था उसके दिमाग़ में।
“अपने ज़हन पर इतना बोझ मत डालो, शाहज़र से मिल लूं। फिर आ कर बात करता हूं।” दाएं हाथ से उसके सर पर हल्की सी चपत लगा कर वहां से चला गया जबकि राहेमीन अब भी शल सी वहीं खड़ी रही।
फिर एक बारगी उसके अंदर गुस्से का उबाल उठा था।

“नहीं असफन्द मीर, इस बार आपकी नहीं चलेगी।” नफ़रत से कहते वह उसके कमरे में आ गई।
सफेद और आसमानी रंग का नफासत से सजा यह कमरा बहुत खूबसूरत था।
वह इधर उधर चीज़े कर के जुनूनी अंदाज़ में कुछ ढूंढने लगी।
ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी।
टिकट और पासपोर्ट बेड साइड टेबल के ड्रावर(दराज़) में रखा मिल गया। उसने निकाल कर चेक किया, परसों रात की बुकिंग थी।
राहेमीन आंखों में सर्द पन उतरा।
“बहुत गुमान है ना आपको खुद पर, कि जब जो चाहा कर लेंगे।” तैश के आलम में ना सिर्फ टिकट के बल्कि पासपोर्ट के भी टुकड़े टुकड़े कर के वहीं उछाल दिए।
“अब कर के दिखाइए।”
.
to be continued…

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