Hisar e Ana chapter 7 part 2: The Siege of Ego by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 7 part 2

Hisar e Ana chapter 7 part 2

शर्मिंदगी से राहेमीन को अपना वजूद ज़मीन में धंसता महसूस हुआ। वह बग़ैर इलयास से नज़रें मिलाए कमरे से अटैच स्टडी रूम में चली गई।
असफन्द ने सुर्ख आंखों से स्टडी रूम के बंद दरवाज़े को देखा।
इलयास साहब के चहरे पर सख़्ती लिए आगे बढ़े। “क्या कर रहे थे तुम यहां?”
उन्हें धचका लगा था उसे यहां देख कर।
असफन्द ने गहरी सांस ले कर ख़ुद को कंपोज़ किया।
“कुछ नहीं डैड, बस बात करनी थी कुछ।”
“रात के इस वक़्त?” बेड पर पड़े फैलावे पर इलयास की नज़र नहीं पड़ी थी।

Hisar e Ana chapter 7 part 2

वह एक लम्हें को ख़ामोश हुआ। जानता था बदगुमान हो रहे थे वह उससे।
“ज़रूरी बात थी।” टालना चाहा।
“ऐसी कौन सी ज़रूरी बात थी जो तुम सुबह तक इंतज़ार नहीं कर सके?” उनका लहज़ा बरहम था। असफन्द ने ज़ख्मी निग़ाहों से बाप को देखा।
“फ़िलहाल मैं आपको नहीं बता सकता।”
उसने जाने के लिए क़दम बढ़ाए थे जब इलयास मीर की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
“राहेमीन अमानत है वहाज की। ज़हन नशीन कर लो यह बात। क्यूंकि आज तो तुम्हारी यह कोताही मैं दरगुज़र कर रहा हूं। उसके बाद हरगिज़ नहीं करूंगा।” बहुत कुछ जता दिया था उन्होंने।
असफन्द बग़ैर पीछे मुड़े तल्खी से मुस्कुराया और वहां से निकलता चला गया।

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आज पहला दिन था पेपर का।
यूनिवर्सिटी खचाखच स्टूडेंट्स से भरी पड़ी थी।
काली जींस के साथ सफ़ेद शर्ट पहने अली ग्राउंड में बेचैनी से इधर से उधर टहल रहा था जब दूर से आती महक को देख रुका।
हल्के नीले रंग की कुर्ती-पैंट में मलबूस वह परेशान सी उसके पास आई।

“क्या हुआ? बात हुई असफन्द से?”
अली ने बेचारगी से “नहीं” में सर हिलाया।
“पता नहीं क्या बात है, कॉल ही रिसीव नहीं कर रहा।”
महक ने अपनी कलाई में बंधी घड़ी देखी।
“अब तक तो आ जाना चाहिए था, आखरी बार कब बात हुई थी तुम्हारी?”
“3 दिन हो रहे।….टिकट्स बुक होने के बारे में बताया था उसने। अल्लाह जाने क्यूं नहीं आया। फिक्र हो रही है मुझे उसकी।”

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“परेशान मत हो। ठीक होगा वह इंशा अल्लाह ।…. हो सकता है कोई फैमिली प्रॉब्लम हो गई हो।”
उसकी तसल्ली पर अली लाचारी से बालों में हाथ फेर कर रह गया।
वह दोनों ही परेशान थे। असफन्द क्रेज़ी था M.Arch को लेकर। उसकी दिन रात की मेहनत उनसे छुपी नहीं थी। फिर ना जाने क्या हुआ।
“ख़ैर….यह बताओ, अन्ने कैसी हैं?” भला वह कोई बात उससे छुपाती थी?
“बेहतर हैं अब……. लेकिन पापा और वह ना जाने क्या बातें करते रहते हैं आजकल, मुझे देखते ही ख़ामोश हो जाते हैं।” उसके खफा खफा से लहज़े पर अली हंसा।
“मुझे तो लगता है, पेपर बाद वह तुम्हें रुखसत कर के ही दम लेंगे।”
“बकवास मत करो।” उसे घूरते हुए बैग से किताबें निकाल कर जल्दी जल्दी रिवाइज़ करने लगी क्यूंकि पेपर शुरू होने में कुछ ही देर बाकी थी।

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कमरे में अंधेरा किए वह रॉकिंग चेयर पर बैठा था।
वह अब तक शॉक्ड था। राहेमीन ने बहुत गहरी चोट पहुंचाई थी।
उसके लफ़्ज़ों में छुपी नफ़रत अब भी शदीद तकलीफ़ पहुंचा रही थी।
यह तीन चार दिन नए पासपोर्ट और टिकेट्स के लिए भागदौड़ में ही गुज़र गए थे।
लेकिन भला यह सब काम इतनी जल्दी कभी हुए हैं?
वह थक हार कर बैठ गया। इतने सालों की मेहनत पर पानी फिर चुका था।
उधर इलयास और सबीहा उसके Canada वापस ना जाने पर सख़्त हैरत में मुब्तिला थे।
ज़ाहिर है, उन्हें कुछ नहीं पता था इस बारे में।
मोबाइल पर बजती बेल पर वह उठ कर बेड तक आया।
स्क्रीन पर अली का नाम चमक रहा था।

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उसने एक थकी हुई सांस ख़ारिज की और कॉल रिसीव करके सलाम किया।
उधर अली जवाब देते ही नॉन स्टॉप शुरू हुआ।
“क्या बात है,कॉल क्यूं रिसीव नहीं कर रहे थे? तुम ठीक तो हो? पता है कितना परेशान था मैं? “
असफन्द उदास मुस्कुराहट के साथ बेड पर लेटा। सर दर्द से फट रहा था।
“ठीक हूं मैं… अपना बताओ, पेपर कैसा हुआ?”
“मुझे टालो मत असफन्द…. क्या वजह है जो तुमने अपनी इतने सालों की मेहनत पर पानी फेर दिया?”
उसने आंखें बंद की। “कुछ नहीं, बस इमरजेंसी हो गई थी कोई।”
“क्या हुआ, अंकल आंटी ठीक है ना।?”
“हां यार, परेशान मत हो तुम।” दूसरे हाथ से अपना दुखता माथा मसला।
अली कुछ देर ख़ामोश हुआ, फिर मशकूक सा बोला।
“तुम्हारे ना आने की वजह कहीं राहेमीन तो नहीं।”

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असफन्द ने आंखें खोली। बोला तो, लहज़ा सरसरी रखा।
“नहीं यार, तुम क्या क्या सोचते रहते हो?”
लेकिन अली को इत्मिनान नहीं हुआ। “तुम्हें मेरी कसम है, सच सच बताओ क्या बात हुई है।”
“अब ये क्या बचपना है?” वह झल्ला कर उठ बैठा।
“बचपना ही सही, बताओ मुझे।”
मजबूरन असफन्द को असल बात बतानी पड़ी।

उधर गम ओ गुस्से से अली का दिमाग़ जैसे आउट हुआ।
“मैं कहता था ना तुम्हें, यह इश्क़ मोहब्बत में इंसान को कुछ हासिल नहीं होता। बस देख लो क्या नतीजा निकला, इतनी ख्वारी के बाद भी अगर तुम इस राह पर चले तो तुम से बड़ा बेवकूफ़ और कोई नहीं।”
“अब तुम मत शुरू हो जाओ।” उसने टोका लेकिन अली ने बोलना जारी रखा।
“आख़िर राहेमीन चाहती क्या है? जहां तक मुझे पता है, वो इंगेज्ड है और तुम्हें पसंद भी नहीं करती। फिर क्यूं उसने तुम्हें आने नहीं दिया? यह क्या बात हुई?”
“छोड़ो इस बात को।” उसने बात बदलनी चाही।

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“क्यूं छोड़ दूं? इतना बड़ा नुक़सान कर दिया उसने तुम्हारा।”
“अली।” अबकी नागवारी से टोका।
“मैं बता रहा हूं असफन्द ,ये लड़की तुम्हारे साथ डबल गेम खेल रही….”
“Enough.” वह गुस्से से चीख उठा। माथे की रगें तन गईं थीं। ख़बरदार जो उसके खिलाफ एक लफ्ज़ भी बोला। “
अली एक पल को ख़ामोश हुआ। फिर जब बोला तो लहज़ा चुभता हुआ सा था।
Sorry to say Asfand Mir, लेकिन ऐसी भी क्या मोहब्बत… जो इंसान को अक्ल का अंधा बनने पर मजबूर कर दे।”

असफन्द ने एक गहरी सांस ली। वह जानता अली उसके लिए परेशान है।
“वो सिर्फ मोहब्बत नहीं है मेरी।” आख़िरकार उसने उसे ‘सब’ बताने का फ़ैसला कर लिया।
यह कुछ देर बाद का मंज़र है, कनाडा के फ्लैट में अली अपने बेड पर दोनों हाथों से सर पकड़े बैठा था।
असफन्द ने आज उसे शॉक्ड कर दिया था।

to be continued…

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Hisar e Ana chapter 6

Hisar e Ana chapter 5

and Hisar e Ana chapter 4

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