Hisar e Ana chapter 8 part 1: The Siege of Ego by Elif Rose

0
Hisar e Ana chapter 8

Hisar e Ana chapter 8

उसने बालों में कंघा कर के शीशे में दिखते अपने अक्स पर एक तायराना नज़र डाली, फिर कुछ दूर रखे बेड पर से परफ्यूम उठा कर अच्छे से ख़ुद पर स्प्रे किया। एक बार फिर जा कर शीशे के सामने आ कर दाएं बाएं के एंगल से ख़ुद को देखते हुए अपनी मूंछ पर हाथ फेरा, फिर मुतमईन सा मुस्कुराया। अब वह तैयार था।

छोटे से हॉल में लगे सोफों पर से खिलौने और किताबें उठाते हुए मुनीबा मुसलसल अपने बेटे पर चिल्ला रहीं थीं।
“बासित अगर दोबारा तुमने यहां फैलावा किया, तो देखना मैं तुम्हारे साथ क्या करती हूं।”
“क्या है अम्मी, सुबह से डांटे जा रही हैं आप। “
“बात नहीं सुनी तो मार भी पड़ेगी और सुनो राहेमीन और उसकी अम्मी के सामने तमीज़ से रहना, जिस तरह उनके घर पर थे, समझ आ रही है ना?”
“हां, ठीक है।” उसके जवाब पर उन्हें सुकून हुआ। “जाओ अच्छा अभी कमरे में पढ़ाई करो।”
आज उनके बहुत इसरार करने पर वह मां बेटी यहां आने वाले थे। वह उन्हें मुतास्सिर करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थीं।

Hisar e Ana chapter 8

कमरे से निकल कर आते दानियाल को देख उनके चहरे पर वालिहाना मुस्कुराहट खिली।
“वाह, मेरा भाई तो आज किसी हीरो से कम नहीं लग रहा।”
“सच?” दानियाल ने इश्तियाक से पुछा।
“हां तो और क्या?…. बस एक बार उन मां बेटी पर अच्छा इंप्रेशन बन जाए तुम्हारा…. फिर रास्ता आसान हो जाएगा।”
“वह तो ठीक है आपा, लेकिन इतने अमीर लोग…. क्या मान जाएंगे?” वह कुछ कन्फ्यूज़ था।
“लो भला, तुम्हारे में क्या कमी है आख़िर, ख़ैर से अच्छे भले हो दिखने में ऊपर से सरकारी नौकरी… बहुत पूछ है आजकल सरकारी नौकरी वालों की। बस अभी हमें धीरे धीरे उन्हें अपना असीर करना है, फिर देखना चिट भी अपनी होगी और पट भी….” एक तरंग में बोलती वह बाहर से आती हॉर्न की आवाज़ पर रुकी थीं।

Hisar e Ana chapter 8

दानियाल ने जल्दी से अपनी शर्ट का कॉलर सही किया, वहीं मुनीबा ने एहतियात सी नज़र घर पर दौड़ाई।
यह तक़रीबन डेढ़ सौ गज के एरिया में बना 3 कमरों का घर था जिसे उन दोनों भाई बहन के मां बाप पांच साल पहले एक एक्सिडेंट से मरने के बाद छोड़ गए थे।
मुनीबा के शौहर सऊदी अरब में नौकरी करते थे जो दो साल में मुश्किल से एक बार ही भारत आ पाते थे।
ससुराल में मुनीबा की शुरू से ही किसी से बनी नहीं, इसलिए उनसे लड़ झगड़ कर मां बाप की ज़िन्दगी से ही मुस्तकिल मायके में आ कर रहने लगीं थीं।

दानियाल के लिए राहेमीन उन्हें पहले दिन ही पसंद आ गई थी। वजह उसकी खूबसूरती से ज़्यादा अमीर घर की बेटी होना थी।
इतने अमीर लोग से ताल्लुक बढ़ने को वह बहुत बड़ी ख़ुश किस्मती समझ रहीं थी।
यहां दानियाल की शादी होने पर फ़ायदा ही फ़ायदा दिख रहा था।
वरना इससे पहले के तय किए चार रिश्ते उन्होंने इसी वजह से तोड़ दिए थे कि लड़की वाले उनकी मर्ज़ी का दहेज नहीं दे रहे थे।

Hisar e Ana chapter 8

यह लालच भी क्या बुरी चीज़ है, और से और की ख्वाहिश कभी सुकून से नहीं रहने देती।
दरवाज़ा खोल कर उनके चहरे पर छाए ख़ुशी कुछ मांद सी पड़ी। “राहेमीन नहीं आई?”
सिर्फ सबीहा को देख उन्हें मायूसी हुई।
“उसके प्रैक्टिकल चल रहे थे, इसलिए नहीं आ पाई।” बताते हुए सबीहा ने हाथ में पकड़ा गिफ्ट का शॉपर उन्हें थमाया।
“अरे, इसकी क्या ज़रूरत..” ललचाई नज़रों से देखते मुनीबा ने फॉर्मेलिटी की।
“ले लीजिए, दिल से लिया है मैंने।”
“अच्छा… आइए.. अंदर आइए।” वह सबीहा को साथ लिए अंदर की तरफ बढ़ी।

दानियाल ने कीमती लिबास और ग्रेसफुल लुक में अंदर आती उस खातून को देखा। उनकी शख्सियत में एक वकार सा था। वह जी भर कर मुतास्सिर हुआ।
जबकि उस पर नज़र पड़ने पर साबीहा कन्फ्यूज़ हुईं।
“यह मेरा छोटा भाई दानियाल है।” मुनीबा ने बताया।
दानियाल ने आगे बढ़कर बहुत अदब से उन्हें सलाम किया। जवाब देते हुए सबीहा ने मुस्कुरा कर रसमन पूछा।
“क्या करते हो बेटा आप?”
“टीचिंग करता हूं गवर्नमेंट।”
“बहुत ही लायक है दानियाल।” मुनीबा ने लगे हाथ तारीफ के पुल बांधने शुरू किए। “आजकल के आवारा लड़कों जैसी तो कोई बात ही नहीं।”
सबीहा मीर ने समझते हुए सर हिलाया।
“यह तो बहुत अच्छी बात है। हमारी सोसाइटी को इसी तरह की ज़िम्मेदार नौजवानों की ज़रूरत है।”
दानियाल का जैसे ढेरों खून बढ़ गया इस बात पर।

Hisar e Ana chapter 8

उन दोनों ने सबीहा को बहुत अच्छी कंपनी दी।
अच्छी खातिरदारी की। लेकिन जब खाने की बारी आई तो सबीहा ने सहूलत से मना कर दिया।
“नहीं, फ़िर कभी टाइम निकाल कर आऊंगी किसी दिन।” वह जाने के लिए खड़ी हुईं।
“अभी मेरा ड्राइवर इंतज़ार कर रहा होगा बाहर। वहाज के यहां भी जाना है मुझे।”
यह कहते हुए उन्होंने पास खड़े बासित के हाथ में कुछ रूपए पकड़ाए और दरवाज़े की तरफ मुड़ी।

“वहाज कौन?” मुनीबा ने यूं ही पूछ लिया।
“अरे।” सबीहा ने हलका सा हंसते हुए अपने सर पर हाथ मारा।
“वहाज मेरा भांजा है….. मेरी राहेमीन का मंगेतर।”
उन दोनों भाई बहन की मुस्कुराहट पल में फीकी पड़ी थी जिससे अनजान सबीहा अलविदाई कलमात कहती बाहर निकल गईं थीं।
दानियाल ने चुभती निग़ाहों से बड़ी सी गाड़ी पर उन्हें बैठ कर जाते देखा। हाथों की मुट्ठियां भिंच चुकीं थीं।
“कुछ भी करिए आपा, कुछ भी…. लेकिन यह रिश्ता हाथ से फिसलना नहीं चाहिए।”
“तुम फ़िक्र मत करो।” मुनीबा ने उसे तसल्ली दी।

##########

वह तीनों बैठे नाश्ता करने बैठे थे जब असफन्द मीर ने वहां क़दम रखा।
सफ़ेद शर्ट के साथ काले रंग का टू पीस सूट पहने, बालों को नफासत से सेट किए कहीं जाने के लिए तैयार लग रहा था।
पूरे ऐतमाद से चलता वह खुद से बेनियाज़ अपनी प्लेट में चम्मच चलाती राहेमीन के सामने वाली कुर्सी पर बैठा और दांया हाथ बढ़ाकर प्लेट में सैंडविच रखी।
ख़ामोशी से उसका जायज़ा लेते इलयास मीर उन दोनों के बीच तनाव को महसूस कर गए थे।

कुछ था जो उनका बेटा छुपा रहा था और राहेमीन से वह चाह कर भी पूछ नहीं सके थे।
उधर सबीहा ने शौहर के चहरे पर फैले इज़्तेराब पर हल्की नाराज़गी से असफन्द को देखा।
“कहां गायब रहते हो तुम, पता है डैड कितने परेशान हैं तुम्हारे अचानक पेपर छोड़ने पर।”
असफन्द ने हाथ रोक कर पहले सबीहा को फिर सरबराही कुर्सी पर बैठे इलयास मीर को देखा।
वह जानता था, इस बात ने उन्हें शॉक पहुंचाया है। लेकिन इतने दिन में वह एक नतीजे पर पहुंच चुका था।

Hisar e Ana chapter 8

“I am sorry dad..”
“Sorry?” इलयास मीर के माथे पर बल पड़े।
“आख़िर तुम्हारे दिमाग़ में चल क्या रहा है? इतनी लापरवाही कब से आ गई तुम में? बिना कोई वजह बताए पेपर छोड़ दिया… दिन भर गायब रहते हो।” वह सख़्त परेशान थे। “करना क्या चाहते हो, बताना पसंद करोगे?”
असफन्द ने एक बेतास्सुर नज़र किसी के हाथ में पहनी अंगूठी पर डाली, फिर अपने डैड की तरफ मुतवज्जाह हुआ।
“मैं आपका बिज़नेस ज्वॉइन करना चाहता हूं।” बहुत ठहरे हुए लहज़े में दिए जवाब पर राहेमीन ने सर उठा कर बेयकीनी से उसे देखा।
इलयास मीर कुर्सी पर आगे को हुए। “क्या कहा?”
सबीहा भी हैरानी से उसे देख रहीं थीं।
“डैड, मैं…. आज से… बिजनेस ज्वॉइन कर रहा हूं।” अबकी एक एक लफ्ज़ पर ज़ोर देते हुए उसने अपने फैसले की पुख्तगी यहां बैठे हर फर्द पर ज़ाहिर कर दी।

Hisar e Ana chapter 8

राहेमीन लब भींचे कुर्सी से उठी। उसकी भूक उड़ चुकी थी।
“तुम्हें क्या हुआ?” सबीहा के सवाल पर उसने अपने चहरे के तास्सुरात नॉर्मल करने की कोशिश की। इलयास भी उसे देखने लगे थे।
“मैं तैयार होने जा रही हूं, कॉलेज के लिए देर हो रही है।”
“”नाश्ता तो ठीक से कर लो।” सबीहा ने टोका।
“पेट भर गया अम्मी।”
आहिस्ता से कह कर वहां से चली गई।

सबीहा ने अफसोस से सर हिलाया। अपनी बेटी के दिन बा दिन संजीदा होते मिजाज़ ने कई दिन से उन्हें फ़िक्र में मुब्तिला कर रखा था।
ना जाने क्या होता जा रहा था उसे?
(शायद पढ़ाई का स्ट्रेस ज़्यादा ले लिया है।) ख़ुद को दिल में समझाते हुए वह इलयास की तरफ मुतवज्जाह हुईं जो असफन्द के इस फैसले पर हैरान से ज़्यादा ख़ुश नज़र आ रहे थें।
हमेशा से यही तो चाहते थे वह कि उनके इतने बड़े बिज़नेस को असफन्द संभाले। लेकिन उसके आर्किटेकचर की तरफ रुझान की वजह से उन्होंने ज़्यादा दबाव नहीं डाला था। अब तो मानों उनकी दिली मुराद पूरी हो गई थी।
सबीहा उनके चहरे पर छाई ख़ुशी को देख सुकून से मुस्कुरा दी थीं।

to be continued…

Read Hisar e Ana chapter 8 part 2

Hisar e Ana chapter 8 part 3

Hisar e Ana chapter 1

0 thoughts on “Hisar e Ana chapter 8 part 1: The Siege of Ego by Elif Rose

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *