Hisar e Ana chapter 8 part 3: The Siege of Ego by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 8 part 3

Hisar e Ana chapter 8 part 3

गुज़रा एक महीना असफन्द के लिए बहुत मुश्किल था ।
उसने बिज़नेस ज्वॉइन कर लिया था।
हां, इस फील्ड का ना होने की वजह से शुरू में मुश्किल हुई थी लेकिन धीरे धीरे उसने सब संभाल लिया।
इलयास मीर तो अब संजीदगी से पूरी तरह बिज़नेस उसे सौंपने का सोच रहे थे।
उनकी ख्वाहिश जान कर असफन्द के दिल में एक कसक उठी थी। ख़्वाब को छोड़कर मूव ऑन कर जाना आसान तो नहीं होता।
अली ने कई बार उसे दोबारा पेपर के लिए एप्लिकेशन देने को कहा था। लेकिन इस सब में बहुत वक़्त लग जाता।
और वक़्त ही उसके पास बहुत कम था क्यूंकि राहेमीन के दिए झटके ने उसे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था।

Hisar e Ana chapter 8 part 3

सुबह के वक़्त वह पार्क में ट्रैक सूट पहने जॉगिंग करते हुए उसी के बारे में सोच रहा था। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थी।
आख़िर वह कब तक भागेगी उससे?
उसकी मोहब्बत से?
वह तो सिरे से उसके जज़बों पर यकीन ही नहीं करती थी।
इतनी बदगुमानियों में घिरी थी कि उसके लाख कोशिशों के बावजूद कुछ असर नहीं होता था।
वह वहीं किनारे बेंच पर बैठ गया और इधर उधर दौड़ते चलते लोगों को यूं ही बेमक़सद देखने लगा।
दिल बहुत बेचैन रहने लगा था आजकल।
मुनीबा आपा का उनके घर आना जाना बंद नहीं हुआ था। उसने सबीहा को उनकी रेपुटेशन के बारे खबरदार किया था लेकिन वह इस बात को अफ़वाह समझ रही थीं। वह पहले ही मुनीबा के अखलाक से मुतास्सिर हो चुकी थीं। सुनी सुनाई बात पर क्या भरोसा करती।

Hisar e Ana chapter 8 part 3

कंधे पर किसी के हाथ रखने पर उसने चौंक कर दाईं तरफ देखा।
शाहज़र चहरे पर मुस्कुराहट सजाए उसे देख रहा था।
उसने एक गहरी सांस ली। “तुम कब आए?”
“जब तुम सामने खड़ी उन दो लड़कियों की ताड़ने में मगन थे।”
उसकी बात पर असफन्द ने नासमझी से सामने देखा। वहां सच में दो लड़कियां खड़ी थीं।
“व्हाट रबिश।” वह हंस दिया। शुक्र था कि उन लड़कियों का ध्यान उसकी तरफ नहीं गया था।

“और बताओ, अंकल कैसे हैं अब?”
“ठीक हैं… माशा अल्लाह। जल्दी रीकवर कर रहे हैं।”
“हम्म।” वह कुछ दूरी पर लगे पेड़ पर बैठती चिड़ियों को देखने लगा।
शाहज़र ने उसके वजूद पर छाई संजीदगी को शिद्दत से महसूस किया।
“आगे क्या सोचा है तुमने,असफन्द?”
“आगे?” एक लम्हे को रुका। “बहुत कुछ सोचा है….. इंतज़ार है तो सिर्फ एक हां का।… कम से कम इस बार तो मैं सिर्फ अपनी मर्ज़ी नहीं चलाना चाहता।” आहिस्ता से गोया हुआ।

“अगर वह ना मानी तो?”
“इस बारे में नहीं सोचना चाहता मैं।” उसने नहीं में सर हिलाया। “मुझे पूरी उम्मीद है कि एक दिन….एक दिन ज़रूर वह मुझ पर ऐतबार करेगी। मेरा साथ क़ुबूल करेगी।
अगर मैं उम्मीद का दामन ना थामूं, तो क्या करूं फिर?”
शाहज़र उस दीवाने को देखता रह गया।
पूछा तो सिर्फ इतना।
“तुम्हें राहेमीन से मोहब्बत कब हुई?”
जवाब में असफन्द कुछ याद करके दिल से मुस्कुराया।
मोहब्बत की पहली दस्तक बहुत अचानक हुई थी उसके दिल पर।

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महक, डेनिज़ और एलिज़ा लिविंग रूम में मेज़ के इर्द गिर्द ज़मीन पर बैठे थे।
डेनिज़ मोबाइल पर पैसों का हिसाब किताब कर रहा था और महक हाथ में नोटबुक लिए उस पर बनी लिस्ट पर एक एक करके निशान लगा रही थी।
“यह हो गया… यह भी हो गया।”
सिकंदर को ज़्यादा भीड़ भाड़ नहीं भाती थी इसलिए उनकी पसंद को देखते हुए कुछ लोगों को ही इन्वाइट किया था।
वह तीनों अपनी पॉकेट मनी और कई महीने की सेविंग से यह बर्थडे प्लान कर रहे थे।

“क्या कर रहे हो तुम लोग सुबह से यहां बैठे?” मिसेज़ इसरा ने किचन से आवाज़ लगाई।
“सीक्रेट अन्ने सीक्रेट।” डेनिज़ ने यहीं से जवाब दिया।
“आपी…” एलिज़ा ने महक को पुकारा। आवाज़ धीमी थी।
“हां, बोलो।” नोटबुक पर ही झुके मसरूफ़ सी वह बोली।
“अन्ने को तो बताने दीजिए सेलिब्रेशन का।”
“Don’t even think about it.” डेनिज़ ने टोका।
“अन्ने कुछ भी पापा से छुपाए बग़ैर नहीं रह सकती। सारा सरप्राइज़ पानी में बह जाएगा।”
“हां एलिज़ा, बस आज सब्र कर लो, कल तो बर्थडे है ही।” महक ने भी समझाया।
एलिज़ा मुंह बना कर रह गई।

Hisar e Ana chapter 8 part 3

“यह मेरे बच्चों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है?” सिकंदर भी कमरे से बाहर आ कर हैरत से बोले। महक ने फ़ौरन नोट बुक अपने पीछे छुपाई और शरारत से बोली।
“जिस तरह आप और अन्ने हमें कुछ नहीं बताते, हम भी आपको कुछ नहीं बताएंगे।”
“यस पापा।” डेनिज़ ने हां में हां मिलाई।

सिकंदर हंसते हुए कुछ दूरी पर लगे डायनिंग मेज़ की कुर्सी पर जा बैठे। उन्हें पता था एलिज़ा जल्द या देर सब उगल देगी। उससे कोई बात हज़म नहीं होती थी।

इतने में इसरा किचन से उनके लिए एप्पल टी लेकर आ गईं।
“Thanks Ruh Eşim.” कप पकड़ते हुए सिकंदर ने बीवी को छेड़ा। वह धीरे से मुस्कुरा कर उनके साथ वाली कुर्सी पर बैठ गईं।

अब सिकंदर एक हाथ से चाय के सिप लेते, दूसरे हाथ में इसरा का दायां हाथ पकड़े उनके साथ सामने ही कुछ दूरी पर बैठे अपने बच्चों को बहुत मोहब्बत से देख रहे थे।

किसी एहसास के तहत महक ने सर उठा कर सामने देखा।
वह दोनों इधर ही मुतवज्जाह थे।
ना जाने क्यूं उसका दिल मचला था उनके पास जाने को।

Hisar e Ana chapter 8 part 3

“अब बस, अल्मोस्ट सारी तैयारी हो गई है, बाकी अली संभाल लेगा।” धीरे से भाई-बहन से कहते हुए उसने नोट बुक बंद की। लेकिन इससे पहले कि खड़ी होती, छनाके की आवाज़ पर चौंक कर डायनिंग टेबल की तरफ देखा।

दिल धक से रह गया।
नोट बुक हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिरी थी।

“Papaaaaa” वह तीनों भागते हुए उधर गए।
ज़मीन पर कप के टूटे टुकड़ों पर पैर रखने से महक को उतनी तकलीफ़ नहीं हुई थी जितनी अपने बाप को ज़मीन पर बेहोश पड़े देख कर हो रही थी।
सिकंदर की नाक से खून बह रहा था। इसरा उनका सर गोद में रखे रो रहीं थीं।
एलिज़ा और डेनिज़ भी रोने लगे।

महक ने ज़मीन पर बैठ कर बदहवासी से सिकंदर का चहरा थपथपाया।
“पापा…. उठिए पापा.. अन्ने क्या हुआ पापा को?”
लेकिन इसरा सिर्फ रो रहीं थीं, उनसे कुछ बोला नहीं जा रहा था।

महक ने खौफ से बंद होते दिल के साथ जल्दी से बाप की नब्ज़ चेक की।
उसे लगा वह अगला सांस नहीं ले पाएगी।
“क….कॉल द एम्बुलेंस डेनिज़।” वह चीखी थी।

to be continued…

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Hisar e Ana chapter 1

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