Hisar e Ana chapter 8 part 2: The Siege of Ego by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 8 part 2

Hisar e Ana chapter 8 part 2

कॉलेज आ कर भी राहेमीन का दिमाग़ उलझन का शिकार था।
उस शख्स को उसकी बात समझ क्यूं नहीं आती थी। किस मिट्टी का बना था वह?
लैब के बाहर बेंच पर बैठी आते जाते स्टूडेंट्स से बेपरवाह दोनों हाथों में सर दिए वह अपनी किस्मत को कोस रही थी जब मोबाइल पर मैसेज टोन बजने पर बैग से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन देखा।
अनजान नंबर था। उसने मैसेज बॉक्स खोला।

“खाने पर गुस्सा निकालना कहां की अक्लमंदी है?”
उसे एक लम्हा भी ना लगा पहचानने में। बेहद गुस्से से उसने टाइप किया।
“आप जैसा ढीठ इंसान मैंने आज तक नहीं देखा। आख़िर आपको मेरी बात समझ क्यूं नहीं आती?”
जवाब दो मिनट बाद आया था।
“I can give up my dream but not you. So let me settle things.
वह खाली खाली नज़रों से स्क्रीन को देखती रह गई।

Hisar e Ana chapter 8 part 2

उसने जब से होश संभाला था, ख़ुद को ‘मीर मेंशन’ में ही पाया।
सबीहा की मोहब्बत और इलयास की शफ़कत तले बचपन बहुत खुश गवार गुज़रता अगर असफन्द उसका जीना दूभर ना करता।
उसने सबीहा को घर का फर्द तो मान लिया था लेकिन राहेमीन से खुदसाख्ता बैर बांध लिया था।
उसके लिए अपनी नापसंदीदगी का वह खुल के इज़हार करता था।
वह बचपन में बहुत जॉली नेचर की लड़की हुआ करती थी।

असफन्द की घूरियों के बावजूद पूरे घर में उछल फांद मचाए रखती।
इलयास मीर के ऑफिस से आने के बाद उनके आगे पीछे फिरती। नित नई चीज़ों की फरमाइश करती।
इलयास मीर असफन्द के साथ साथ उसके खिलौने भी लाते।
यह अलग बात की अगले ही दिन राहेमीन को वह खिलौने टूटे पड़े मिलते।
अक्सर अपने कमरे में मिलते कॉकरोच देख कर वह डर जाया करती थी।
अपने गाल पर पड़ा थप्पड़ उसे आज भी याद था जो असफन्द ने उसे इलयास मीर को ‘पापा’ पुकारने पर यह कहते हुए मारा था कि “मेरे डैड पर अपना हक़ जताना बंद करो।”

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यह वह दौर था जब सबीहा को अपना इस शादी का फैसला ग़लत लगने लगा था। राहेमीन के लिए असफन्द की दिन बा दिन बढ़ती नफ़रत उन्हें असफन्द के साथ साथ इलयास मीर की तरफ से भी बदगुमान करती जा रही थी।
तंग आकर एक दिन उन्होंने कह दिया था, “मैं आपको बता रही हूं इलयास, अगर असफन्द का यही रवैया रहा राहेमीन के साथ तो मैं यह घर छोड़ कर चली जाऊंगी।”
इलयास मीर दोराहे पर आ गए थे। असफन्द में उनकी जान बसती थी लेकिन इन गुज़रे कुछ सालों में सबीहा और राहेमीन भी उन्हें बहुत अज़ीज़ हो गईं थीं।
उन्हें समझ नहीं आता था कि वह अपने ज़रूरत से ज़्यादा पॉज़ेसिव बच्चे को किस तरह समझाएं।

हालात इसी तरह चल रहे थे जब असफन्द की वह सब हरकतें एक वक़्त पर आ कर न जाने क्यूं रुक गईं। जिस पर सब ने सुख़ का सांस लिया था।
हालांकि दोनों में दोस्ती तब भी नहीं हुई थी, बस उसने राहेमीन को तंग करना छोड़ दिया था।
वह बहुत रिज़र्व्ड रहा करता था।
ना जाने कब नज़र बदली और वह मोहब्बत का दावेदार बन कर राहेमीन के सामने आ गया। यह जानते हुए कि वह वहाज के साथ मंसूब है।
वहाज, एक कामयाब डॉक्टर, लेकिन अजीब अनापरस्त इंसान।
लेकिन वह उसकी मां(सबीहा) की पसंद था और राहेमीन उनके लिए जान भी दे सकती थी। यह तो उसके आगे मामूली बात थी।
लेकिन
उससे एक गलती हो गई थी।
और उस गलती को कैसे सुधारे, यह सवाल सालों से उसे परेशान किए हुए था।

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एक महीना कैसे गुज़रा पता ही नहीं चला।
महक और अली के पेपर ख़त्म हो गए थे।
“थैंक गॉड, फाइनली जान छूटी।” यूनिवर्सिटी से बाहर आते ही महक के मुंह से निकला।
“अगर ढंग से पढ़ाई कर लेती तो इतना मर मर के पेपर ना देना पड़ता।” बाइक स्टार्ट करते अली की ज़ुबान में खुजली हुई।
“अगर आज मेरा मूड इतना अच्छा ना होता, तो बाल नोच लेती तुम्हारे।” महक ने गोया अहसान किया।
“हुंह ख़ुशफहमी की इंतेहा। ख़ैर, मैं तो चला….”

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“अरे एक मिनट सुनो, काम है तुमसे।”
अली के कान खड़े हुए। “कैसा काम?”
“हम एक हफ़्ते बाद बर्थडे सेलिब्रेट करने….”
“यार यह कितना बर्थडे मनाते हो तुम लोग।” वह बदमज़ा हुआ। “अभी दो महीने पहले ही तो तुम्हारा बर्थडे भुगताया था।”
महक ने दांत किचकिचाए।
“कंजूस इंसान,….. दफा हो, मैं बुला ही नहीं रही तुम्हें।” गुस्से से कहते हुए वह पलटी।
अली बाइक से उतर कर हंसा।
“रुको यार, मज़ाक भी नहीं समझती तुम।”
ज़बरदस्त घूरी से नवाज़ा इस बार महक ने उसे।
“बहुत ही कोई ख़बीस….”
“मेरी तारीफ़ बाद में करना, पहले काम बताओ।”
वह ठंडी हुई। “एक हफ़्ते बाद पापा का बर्थडे आ रहा है। हम एक छोटी सी सरप्राइज पार्टी प्लान कर रहे हैं, उसी की अरेंजमेंट के लिए तुम्हारी हेल्प चाहिए।”
महक का जोश देखने लायक था। अली ने सर हिलाया।
“ओके, हो जाएगा…. अभी चलता हूं, बाकी डिटेल मोबाइल पर दे देना।”

to be continued…

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