Hisar e Ana chapter 11 part 4
मौसम ने अंगड़ाई ली थी और तेज़ हवा के साथ बिजली ने भी चमकना शुरू कर दिया।
असफन्द मीर अब तक बालकनी में उसी पोज़िशन खड़ा था जब कोई कमरे का दरवाज़ा झटके से खोलता अन्दर आया।
बग़ैर पलटे वह जानता था कि आने वाली हस्ती कौन है।
तो क्या आज मामला आर या पार होने वाला था?
उसने एक नज़र आसमान पर बिगड़ते मौसम पर डाली। फ़िर मुढ़ कर चलता हुआ बालकनी से अटैच अपने कमरे में आया।
Hisar e Ana chapter 11 part 4
रात के इस वक़्त आज वह फिर से सवाली बनी खड़ी थी। जामुनी रंग का घेरदार प्लाज़ो कुर्ती पहने, बालों को क्लैचर में कैद किए। दोनों हाथों की मुट्ठी बंद किए जैसे ज़ब्त की आख़री सीढ़ी पर खड़ी थी।
“मुबारक हो असफन्द मीर, अगले महीने के पहले जुमे को मेरी बर्बादी की तारीख तय हो गई है।” लरज़ती आवाज़ में कहते हुए उसने जैसे असफन्द के सर पर कोई बम फोड़ा था।
to be continued……
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