Hisar e Ana chapter 11 part 3
घड़ी रात के 11 बजा रही थी।
अपने कमरे की बालकनी में असफन्द इधर से उधर चक्कर काट रहा था।
वह लोग अभी तक नहीं आए थे और हर गुज़रते वक़्त के साथ उसका इज़्तेराब भी बढ़ता जा रहा था।
और बढ़ता भी क्यों न?
जब बात ज़िन्दगी की हो
तो अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ा देती है।
सर पर हाथ फेरते हुए वह चौंका था। फिर दोनों हाथ रेलिंग पर टिकाए नीचे लॉन में देखा जहां काले रंग की कार गेट के अन्दर दाख़िल हो रही थी।
होंठ भींचे उसने सबीहा मीर के साथ राहेमीन को गाड़ी से उतरकर अन्दर जाते देखा। वह दोनों ही उसकी तरफ मुतवज्जाह नहीं थी, होतीं भी तो क्या फर्क पड़ना था?
कार पार्क करके इलयास मीर भी अन्दर की तरफ बढ़ने लगे थे कि नादानिस्तगी में नज़र ऊपर उठी थी। उसे वहां बालकनी में देख वह ठिठके थे। फिर नज़र चुराते हुए अन्दर चले गए।
असफन्द उनका जान से अज़ीज़ बेटा,
उनका लख्त ए जिगर,
दुनिया की हर ख़ुशी वह उसके कदमों में लुटा देना चाहते थे।
लेकिन इस मामले में बेबस थे।
वह कुछ नहीं कर सकते थे।
दिल में उठती कसक को उन्होंने बेदर्दी से दबाया था।
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कमरे में आते ही राहेमीन ने तैश के आलम में मोबाइल बेड पर फेंका था। हाथों में पहनी चूड़ियों और घड़ी को भी उतार कर फेंका। बेबसी से सोफे पर बैठ कर दोनों हाथों की उंगलियों को बालों में फंसाया।
आज वहाज के घर का मंज़र आंखों के सामने लहराया था।
हमेशा की तरह उसे वहां ख़ास प्रोटोकॉल दिया गया था। मोहब्बत निछावर की जा रही थी।
वहाज की दोनों बहनें हिबा और हिना भी उसके आगे पीछे लगी हुई थीं।
इतनी मोहब्बत, इतनी तवज्जाह उसे पहले से भी ज़्यादा शर्मिंदा कर रही थी।
वह कहना चाहती थी कि मत करें निछावर उस पर इतनी मोहब्बत।
वह नहीं है लायक़ उनके खुलूस की।
वह सबीहा से पूछना चाहती थी कि क्यों वह उसकी आंखों में छिपे बेबसी के रंग को नहीं पहचान पा रहीं?
क्या चीज़ उन्हें उससे किसी भी तरह का सवाल करने से रोक रही है?
उसे अपने अन्दर की डरपोक लड़की से भी शदीद शिकायत हो रही थी।
वह क्यों इतनी बुज़दिल हो गई थी?
क्यों इतनी कमज़ोर पड़ गई कि कठपुतली की तरह किसी के पागलपन का शिकार हो गई?
घड़ी पर रात के 12 बजने वाले थे जब वह किसी सोच के तहत सोफे पर से उठी थी और कमरे से निकल कर ऊपर जाने के लिए सीढ़ी की तरफ बढ़ने लगी।