Hisar e Ana chapter 11 part 2
असफन्द मीर ने यह सफ़र किस तरह काटा था यह वह ही जानता था।
ना उसे प्रोजेक्ट खोने की परवाह थी और ना ही किसी दूसरी चीज़ की।
परवाह थी तो बस राहेमीन की।
डर था तो बस उसे खोने का।
उसे बहुत सी बातें करनी थी उससे
बहुत कुछ समझाना था
क्लीयर करना था।
वह किसी भी सूरत यह बाज़ी हारना नहीं चाहता था।
कोई भी क़दम बढ़ाने के लिए राहेमीन का उसके साथ होना बहुत ज़रूरी था।
घर आते ही उसकी निग़ाहों ने राहेमीन को तलाशा था।
लेकिन वह तो क्या,
इलयास और सबीहा भी नहीं दिखे।
घर में सन्नाटा था।
रफाकत बी से पूछा तो पता चला कि वह तीनों वहाज के घर गए हैं, शादी की डेट फ़िक्स करने।
उसके चौदह तबक रौशन हुए थे।
अपने डैड और सबीहा आंटी दोनों का उसे इन्फॉर्म न करना उसे अच्छे से समझ आया था। वह होंठ भींच कर रह गया।
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Flash back
वक़्त गुज़रता गया और अब असफन्द ग्रेजुएशन के बाद दो साल से Canada में M.Arch के लिए एडमिशन की संजीदगी से तैयारी कर रहा था।
अब तो वहां उसका एडमिशन भी हो गया था।
एक महीने से भी पहले उसे Canada के लिए निकलना था।
वह बचपन का सपना,
वह ब्लॉक्स से बिल्डिंग बनाना,
अब उस ख्वाब(सपने) को पूरा करना मुश्किल ना था।
इलयास मीर उससे नाराज़ थे।
वह इतने अरसे के लिए उसे ख़ुद से दूर नहीं कर सकते थे। दूसरे वह यह भी चाहते थे कि असफन्द उनका बिज़नेस संभाले। लेकिन उसने उन्हें मना लिया था।
Hisar e Ana chapter 11 part 2
राहेमीन भी 18 साल की हो गई थी।
उसका नौखेज़ हुस्न कई लोगों को एक के बाद दूसरी नज़र डालने पर मजबूर कर देता था।
सादा मिजाज़, मासूम सी राहेमीन जब कभी अपनी कांच सी आंखें उठा कर बात करती तो असफन्द मीर को अपने दिल के बहुत करीब लगती। गुज़रे वक्तों में वह बख़ूबी उसके लिए अपने जज़्बात समझ चुका था।
हां, वह जान गया था कि उसके दिल को अरसा पहले राहेमीन रियाज़ क़ैद कर चुकी है।
लेकिन इसके बावजूद अपने जज़्बात की उसने किसी को भनक तक नहीं लगने दी। राहेमीन से भी एक फासला बरक़रार रखा था कि कहीं बे इख्तियारी में वह उस पर अयां ना हो जाए।
अपनी मोहब्बत वक़्त से पहले ज़ाहिर कर के वह बेमोल नहीं कर सकता था। उसे सही वक़्त का इंतज़ार था। शायद वह मुतमईन था कि राहेमीन रियाज़ उसी के लिए है।
लेकिन
उसकी यह खुशफहमी
जल्द ही टूट गई।
जब एक दिन उसने मीर मेंशन के ही लिविंग रूम में राहेमीन की मुमानी(मामी) को उसे अंगूठी पहनाते देखा।
“मेरे वहाज की दुल्हन अब तुम्हारे पास अमानत है सबीहा।” राहेमीन के शर्म से गुलाबी पड़ते गालों को चूमते हुए वह कह रहीं थीं।
और असफन्द मीर को अपने पैरों के नीचे से ज़मीन सरकती महसूस हुई।
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