Hisar e Ana chapter 13
Flash back
यह मीर मेंशन में बने स्टडी रूम का मंज़र था जहां इस वक़्त इलयास मीर शॉक्ड सी कैफियत में मेज़ के दूसरी तरफ़ बैठे अपने बेटे को देख रहे थे जिसकी लाल पड़ती आंखें रात भर जागने की चुगली खा रहीं थीं।
“तुम मुझसे मज़ाक करने आए हो यहां?” बहुत देर बाद वह कुछ कहने के काबिल हुए थे।
“यह मज़ाक नहीं है डैड….. मैं सच में राहेमीन से मोहब्बत करता हूं।” दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसाए असफन्द इज़्तेराब का शिकार था।
“बकवास मत करो।” उन्होंने झिड़का। “कल उसका रिश्ता तय हुआ और आज तुम मोहब्बत के दावेदार बन कर आ गए?” वह अब तक बेयकीन थे।
“आना ही था, यह मेरी ज़िन्दगी का सवाल है।” उसकी आंखों में शिकवा उतरा। “मुझे नहीं पता था कि आप लोग क्या सोच रहे हैं, वरना पहले ही रोक देता यह सब।”
इलयास साहब के माथे पर बल पड़े।
“तुम जो चाह रहे हो वह ना मुमकिन है असफन्द, सबीहा अपने भांजे से बहुत मोहब्बत करती है, वह कभी नहीं मानेगी।”
“आप उनसे बात करके तो देखिए।” उसने बहुत आस से इल्तेज़ा की।
“मैं नहीं करूंगा बात।” दाएं बाएं सर हिलाते वह बिल्कुल तैयार नहीं लग रहे थे।
असफन्द कुछ देर ख़ामोशी से उन्हें देखता रहा फिर उठा।
“ठीक है, मैं बात कर लेता हूं।”
“तुम्हारी कोशिश बेकार जाएगी। अलबत्ता यह हो सकता है कि तुम्हारे बात करने के नतीजे में सबीहा राहेमीन की शादी कल के बजाए आज कर दे।” इलयास मीर ने बेटे को आगाह करना ज़रूरी समझा।
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असफन्द ने अपने लब भींचे और ज़ब्त से आंखें बंद कर के दोबारा खोली।
“क्या असफन्द मीर इतना गया गुज़रा है कि उसका महज़ बात करना आंटी को यह करने पर मजबूर कर दे?”
उसके शिकवे पर इलयास मीर अफसुर्दगी से मुस्कुराए। यकीनन वह शानदार पर्सनैलिटी रखता था।
लेकिन यहां बात सबीहा की पसंद की थी। राहेमीन के लिए सेट किए उनके मेअयार की थी। उस रिश्ते की थी जो अब मंगनी की सूरत बंध चुका था।
रिश्ता तोड़ना आसान नहीं होता। वह भी तब जब खानदान में ही बात तय हुई हो। उससे बड़ कर यह कि राहेमीन की ज़िन्दगी के फैसले में उन्होंने हमेशा बीवी को खुली छूट दे रखी थी। अब इस मामले में वह अपनी मर्ज़ी नहीं थोपना चाहते थे उन पर।
लिहाज़ा उन्होंने असफन्द को नामुराद लौटा दिया।
Hisar e Ana chapter 13
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