Hindi novel Hisar e Ana chapter 15 part 1 by Elif Rose

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“शौहर को बददुआ नहीं देते मिसेज़ असफन्द मीर।”
यह अल्फाज़ तीर को तरह चुभे थे राहेमीन को। उसने कर्ब से आंखें बंद कर के खोलीं।
“नहीं हैं आप मेरे शौहर।”
“अच्छा?” वह तंज़िया हंसा। “फिर मसला ही क्या है? जाओ कर लो शादी।” चैलेंज करते हुए दोनों हाथ सीने पर बांधे।
वह लाजवाब सी हो गई मगर फिर बोली तो लहज़ा भर्राया हुआ सा था।

“आपको ज़रा एहसास नहीं मेरी तकलीफों का। हमेशा अपना सोचा, अपने मन की की। कभी यह खयाल आया आपके ज़हन में कि किस अज़ीयत से गुज़र रही हूं मैं?
दो साल….दो साल से कितनी ही बार कोशिश की अम्मी को सच बताने की, लेकिन उनको देखते ही हिम्मत टूट जाती है। यह एहसास कि उनका मान तोड़ चुकी हूं…. रात को सो नहीं पाती मैं। आप ही बताइए मैं क्या करूं?”

“सिर्फ मेरा साथ दे दो।” असफन्द ने आगे बढ़कर अपनी दाईं हथेली उसके गाल पर रखी। राहेमीन की सांस अटकी थी उसके लम्स पर जबकि वह कह रहा था।
“मैं जानता हूं बहुत दुख दिए हैं तुम्हें मैंने…….एहसास है मुझे, लेकिन मैं क्या करूं? बेबस हो जाता हूं तुम्हारे मामले में। तुम्हें खोने का हौसला नहीं पाता मैं खुद में। तुम्हारी मोहब्बत ने मेरे दिल में जड़े इस क़दर मज़बूत कर ली हैं कि…… एक ख़्वाब से परेशान हो कर, सब छोड़ कर यहां चला आया। तुमसे ज़्यादा अहम नहीं था वह। मेरी वजह से तुम अज़ीयत में हो। मुझ पर भरोसा करो, मैं सारी अज़ीयतें दूर कर दूंगा। सिर्फ़ मेरा साथ देने का वादा कर लो।

प्लीज़ राहेमीन….. मैं कितना भी ख़ुद को मज़बूत ज़ाहिर कर लूं, कितनी भी कोशिश कर लूं, तुम्हारे साथ के बग़ैर कुछ नहीं कर सकता। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मेरा साथ दो। यकीन करो सब ठीक कर दूंगा मैं।” आंखों में आस के दीप जलाए वह उसके जवाब का मुंतज़िर था।

राहेमीन ने अपने गाल पर से उसका हाथ हटाया।
“अब कुछ ठीक नहीं हो सकता।” दो क़दम पीछे हुई। “और न मैं आपका साथ दूंगी।” हतमी अंदाज़ में कह कर वह वहां रुकी नहीं थी। असफन्द बेबसी से उसे जाता देखता रह गया था।

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अपने कमरे में आ कर वह थके हारे अंदाज़ में बेड पर बैठी।
मुस्तकबिल का खौफ सांप बन कर उसे डरा रहा था।
समझ नहीं आ रहा था क्या करे।
असफन्द सही समझता था।
वह वाकई बहुत डरपोक और बुज़दिल थी।
तभी तो आज तक इस निकाह का किसी को नहीं बता पाई।

वह अपने हालात पर आंसू बहाने पर मसरूफ़ थी कि तभी बेड पर पड़े मोबाइल पर रिंग हुई थी।
उसने चौंक कर गर्दन मोड़ी फिर हाथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया।
“Wahaj calling”
स्क्रीन पर यह नाम आब ओ ताब की तरह चमक रहा था।

वह कितने ही लम्हें खाली खाली नज़रों से स्क्रीन को देखे गई। यहां तक कि मोबाइल बज बज कर ख़ामोश हो गया।
शिकस्तगी के आलम में मोबाइल बेड पर रख कर वह बाथरूम में शॉवर लेने चली गई क्यूंकि वजूद पर बढ़ती घुटन उसे सांस नहीं लेने दे रही थी। पीछे मोबाइल फिर बजने लगा था। बाथरूम में होने की वजह से उसे नहीं पता चला।

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