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Hindi novel Hisar e Ana chapter 15 part 2 by Elif Rose

Hindi novel

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दिल्ली के एक जाने माने हॉस्पिटल के केबिन में ब्लैक पैंट पर व्हाइट कोट पहने कुर्सी पर बैठा वहाज हसन होंठ भींचे सुलगती नज़रों से अपने हाथ में पकड़े मोबाइल की स्क्रीन को देख रहा था।
आज फिर इस लड़की ने उसकी अना(ego) को चोट पहुंचाई थी।
गुस्से से उसने मोबाइल पटखने के अंदाज़ में टेबल पर रखा और उठ कर इधर से उधर टहलने लगा।
राहेमीन रियाज़ को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करने का फ़ैसला उसी का था।
दो साल पहले उसी की मर्ज़ी पर घरवालों ने यह रिश्ता तय किया था लेकिन इस गुज़रे अरसे में उसने हमेशा इस लड़की को ख़ुद से गुरेज़ा पाया था। उसका लिए दिए रहने वाला अंदाज़ वहाज हसन को अपनी तौहीन लगता था। आज भी राहेमीन का कॉल रिसीव न करना उसकी अना को कारी ज़र्ब लगा गया था।

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“तुम यह अच्छा नहीं कर रही हो।” बड़बड़ाते हुए उसने गुस्से से टेबल पर रखे स्टेथोस्कोप(stethoscope) के बगल में पड़े मोबाइल और कार की चाबी को उठाया और जाने के लिए मुड़ा ही था कि घबराती हुई नर्स केबिन में दाख़िल हुई।
“सर, वह रूम नंबर 58 के मरीज़ की हालत बिगड़ रही है।”
वहाज के माथे पर बल पड़े।
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बग़ैर नौक किए अंदर आने की?” उसकी दहाड़ पर नर्स गड़बड़ाई।
“स…सॉरी सर…. दरअसल उस मरीज़ की हालत…..।”
“जा कर दूसरे डॉक्टर को बताओ, मैं घर जा रहा हूं।”
“लेकिन सर, वह….”
“शट अप! मज़ीद बकवास नहीं।” उसका दिमाग़ वैसे ही ख़राब था और सामने खड़ी यह नर्स उसके गुस्से के गिराफ को और बढ़ा रही थी।

वह उसे मज़ीद कुछ कहने का मौक़ा दिए बग़ैर उसके बग़ल से निकलता चला गया।
नर्स की घबराहट वहाज के जाते ही कुछ कम हुई। उसने अफ़सोस से केबिन में एक किनारे लगे सोफे पर रखे उस घमंडी इंसान के सर्जिकल गाउन को देखा।
“लोग डॉक्टर तो बन जाते हैं लेकिन इस ओहदे (पद) का फर्ज़ कोई कोई ही निभा पाता है।” बड़बड़ाते हुए वह वहां से पलटी थी।
उसे मरीज़ के लिए दूसरे डॉक्टर को बुलाना था।

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घर में दाख़िल होते हुए भी उसका मूड ख़राब ही था।
देर रात की वजह से सब सो चुके थे सिवाए रुखसार बेगम के।
गेट उन्होंने ही खोला था। वह बग़ैर सलाम किए अंदर की तरफ बढ़ गया।
“वहाज।” रुखसार बेगम ने पीछे लिविंग रूम में आते हुए बेटे को पुकारा।
“जी?” वह पीछे मुड़ा।
“तुम्हारी तो आज नाइट ड्यूटी भी थी ना?”

“हां, लेकिन आज दिल नहीं किया इसलिए आ गया।”
“अच्छा, चलो तुम फ्रेश हो जाओ मैं खाना निकालती हूं।” उससे बोलती वह किचन की तरफ जाने लगीं तो वहाज ने उन्हें रोका।
“नहीं अम्मी, मैं बस सोऊंगा अब।”
“ठीक है।” उन्होंने समझते हुए सर हिलाया।
वहाज फिर कमरे की तरफ बढ़ने लगा तभी उन्हें कुछ याद आया।
“तुम्हारे पापा ने शादी की डेट फिक्स कर दी है।”

Hisar e Ana chapter 15 part 3

Hisar e Ana chapter 15 part 1

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