Hindi novel
मां की अचानक इत्तेला पर उसके बढ़ते क़दम थमे थे।
वह पीछे मुड़ा।
“मुझसे पूछे बगैर?” उसके माथे पर आई सिलवटों पर रुखसार बेगम ने मुंह बनाया।
“तुमसे क्या पूछते, तुम्हारी मर्ज़ी से ही तो रिश्ता तय हुआ था।” कहते हुए उन्होंने आज सबीहा के आने और उनसे हुई बातों का बताया।
वहाज ख़ामोशी से उन्हें सुनता गया।
“अगर तुम अभी शादी नहीं करना चाहते हो तो बताओ मैं बात करूं तुम्हारे पापा से।” आखिर में वह बोलीं थीं।
“नहीं ठीक है, मुझे कोई ऐतराज़ नहीं।” कहकर वह अपने कमरे में चला गया।
“बहुत अकड़ है न तुम में राहेमीन रियाज़? आओ एक बार मेरी दस्तरस में…… सारी अकड़ न निकाली तो मेरा नाम भी वहाज हसन नहीं।” अपने बेड पर लेटते हुए वह खयालों में उससे मुखातिब था।
आंखों का तास्सुर सर्द था।
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Canada की सड़कें वैसे ही थीं।
यहां की चहल पहल भी वैसे ही थी।
लेकिन अली एवान को यहां फैली फिज़ाओं में अब सोगवारी महसूस होने लगी थी।
इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में एक लड़की की मुस्कुराहट थमने से उसे अपनी ज़िन्दगी की रफ़्तार थमती महसूस होने लगी थी।
महक सिकंदर
वह जिससे दोस्ती से ज़्यादा उसकी लड़ाई हुआ करती थी।
वह जो कुछ मर्ज़ी के खिलाफ हो जाने पर शोर मचा दिया करती थी, अब ख़ामोश हो कर रह गई थी।
अली का दिल चाहता उसे झिंझोड़ कर पूछे “तुम क्यूं ऐसी हो गई हो। मुझे मेरी वही annoying दोस्त वापस करो।” लेकिन उसकी आंखों की बुझी जोत उसे ऐसा करने से रोक देती थी।
आज फिर वह उस घर के दरवाज़े पर बेल दे रहा था जहां कभी खुशियों जगमगाया करती थीं।
थोड़ी देर बाद किसी ने दरवाज़ा खोला।
दुख के एहसास में घिरते हुए अली एवान ने सामने खड़ी महक सिकंदर के मुरझाए चहरे को देखा था।