Hindi novel Hisar e Ana chapter 16 part 1 by Elif Rose

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Hindi novel Hisar e Ana

Hindi novel Hisar e Ana

“कैसी हो?” सलाम के बाद अली ने पूछा।
वह फीका सा मुस्कुराई।
“ठीक हूं।” कहते हुए उसने दरवाज़े से हाथ हटाया और पीछे मुड़ी।
वह महक के पीछे लिविंग रूम में आया।
“Helloooo buddies.”
सोफे पर बैठे डेनिज़ और एलिज़ा के मुरझाए चहरे यह आवाज़ सुनते ही खिले थे।
“आप आ गए।” इन गुज़रे दिनों में वह दोनों उसके काफ़ी करीब आ गए थे। अली उनके पास ही बैठ गया।
उन लोग को वहीं छोड़ महक किचन में आ गई क्यूंकि खाना बनाने की जिम्मेदारी अन्ने की आजकल चलती तबियत खराबी की वजह से उसने संभाल ली थी।

कॉफी बनाते हुए वह लिविंग रूम से आती बातों की आवाज़ भी सुन रही थी।
“ओह तो कल तुम्हारा रिज़ल्ट आ रहा है?” कुछ बातों के बाद एलिज़ा के बताने पर अली डेनिज से पूछ रहा था।
“यस।” वह एक बारगी सीरियस हुआ।
अली ने बगौर उसे देखा।
“आगे का क्या प्लान है?”
“पता नहीं, आई मीन अभी कुछ डिसाइड नहीं किया।” डेनिज़ के आहिस्ता से जवाब देने पर अली एक पल को चुप हुआ।
यह वही डेनिज़ था जो अपने कैरियर की प्लानिंग आगे तक करके रखता था। यह इंसेक्योरटी कहां से आ गई उन लोग में?

एक गहरी सांस लेकर उसने बात बदल दी तभी उसकी नज़र किचन की दहलीज़ पर खड़ी महक पर पड़ी जो कॉफी और स्नैक लिए ना जाने कब से वहां खड़ी थी। उसके देखने पर वह आगे बढ़ी।
“बैठो।” उसके ट्रे टेबल पर रखते ही अली बोला।
“नहीं, मैं ज़रा अन्ने को देख आऊं।” कह कर वह इसरा के बेडरूम की तरफ बढ़ गई।
अली को वह कुछ उलझी हुई लगी।
सर झटक कर वह दोबारा डेनिज़ और एलिज़ा की तरफ मुतवज्जाह हो गया।

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“सिकंदर ने तुम तीनों की पढ़ाई के लिए काफ़ी सेविंग कर रखी हैं सनेम, you don’t need to worry about it.”
महक के सवाल पर अन्ने बता रही थीं लेकिन वह गहरी सोच में गुम हो गई। सिकंदर ने उन लोग को हमेशा लगज़री लाइफ फराहम की थी।
उनके जाने के बाद महक के अंदर वैसा लाइफ स्टाइल जीने की अव्वल तो ख्वाहिश ही नहीं बची थी लेकिन जहां बात अपने भाई बहन और अन्ने की थी तो वह नहीं चाहती थी कि उन्हें किसी भी तरह का समझौता करना पड़े।
सिकंदर शाह अपने पीछे जो रकम छोड़ कर गए थे उससे उन लोग की पढ़ाई तो हो जाती लेकिन घर चलना मुश्किल होता। वह भी ऐसे हालात में जब अन्ने भी बीमार रहने लगी थीं।

“क्या हुआ?” अन्ने के उसका कंधा हिलाने पर वह सोचों से बाहर आई , फिर मां को देखा जो कुछ ही दिन में बरसों की बीमार लगने लगी थीं।
“कुछ नहीं,……. आपने मेडिसिन ली?”
“अ…नहीं, वह तो भूल गई मैं।”
“हद करती हैं आप अन्ने।” वह अफसोस से सर हिलाती उठी और वहीं टेबल पर से पानी और medicines उठाए।
उन्हें medicines खिला कर वह जाने के लिए उठी थी कि अन्ने की पुकार पर रुक कर पीछे मुड़ना पड़ा।
“तुम नाराज़ हो मुझसे?” बेटी को बग़ौर देखते हुए उन्होंने पूछा था। महक के चहरे पर एक साया सा गुज़रा।

“किस बात पर?” उसने लहज़े को नॉर्मल रखने की भरपूर कोशिश की। अन्ने एक पल को खुद जज़बज़ हुईं उसके सवाल पर।
“मैंने और सिकंदर ने….. तुम्हें अनजान रखा।” वह सिकंदर शाह की बीमारी की बात कर रहीं थीं।
महक बग़ैर कुछ बोले ख़ामोश नज़रों से उन्हें देखे गई फिर “मुझे किचन में कुछ काम है।” कह कर जल्दी से कमरे से निकल गई।
अन्ने ने थक कर बेड की बैक से सर टिका दिया।
वह उनकी बेटी थी।
रग रग से वाकिफ थीं वह उसके।
वह जताती या ना जताती।
वह जानती थीं कि वह नाराज़ है उनसे।

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