Novel Hisar e Ana chapter 16 part 2 by Elif Rose ebook

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वह किचन में जाने के बजाए लिविंग रूम में आई थी।
एलिज़ा की ड्रॉइंग देखते हुए अली ने चौंक कर महक को देखा जो सोफे पर बैठते हुए कुछ परेशान लग रही थी।
हां, वह आज भी अपने तास्सुरात छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही थी लेकिन अली एवान को पूरा यकीन था कि वह परेशान है।
निगाहों का तसादम होने पर उसने भौंवे उचका कर पूछा तो उसने नहीं में सर हिला दिया। फिर उसके साथ ही एलिज़ा की ड्रॉइंग देखने लगी।

कुछ देर बाद जब एलिज़ा और डेनिज़ की तवज्जाह उन पर से हटी तो अली ने उससे पूछा।
“Walk?”
महक ने चौंक कर सर उठाया।
“huh?….. okay.” वह सर हिलाते हुए उठी।
कुछ देर बाद वह दोनों Canada के फुटपाथ पर टहल रहे थे।
शहद रंग बालों का लापरवाही से जूड़ा बनाए महक उसके बग़ल में खामोशी से चल रही थी।
“ना जाने क्या सोचती रहती है यह लड़की।” उसे अफ़सोस से देखते हुए अली ज़ेर ए लब बड़बड़ाया।
यकीनन महक ने नहीं सुना था।

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“अन्ने कैसी हैं अब?” एक हाथ ब्लैक जींस की जेब में डाल कर चलते हुए उसने पूछा।
“बेहतर हैं…. आह ह।” रास्ते के पत्थर से ठोकर लगने पर वह गिरने ही वाली थी जब अली ने बाजू से पकड़ कर उसे संभाला।
“देख कर महक।”
वह ज़बरदस्ती मुस्कुराई।
“थैंक यू।”

अली ने उसका हाथ छोड़ कर रोड पर नज़र दौड़ाई।
वह लोग घर से कुछ ही फासले पर थे।
फिर उसे देखा जो दोबारा क़दम बढ़ा रही थी।
“What’s wrong Mahak?”
उसके सवाल पर महक के क़दम रुके थे।
एक पल को बग़ैर अली को देखे उसके सवाल का मतलब समझने की कोशिश की थी। फिर सर झटका।
“Nothing.” कह कर वह एक बार फिर आगे बढ़ने को थी जब अली उसके ऐन सामने आ खड़ा हुआ।

वह उससे लड़ते लड़ते बची।
नज़र उठा कर उसे देखा तो अली एवान की आंखों में शिकवा था।
“अब तुम मुझसे बातें छुपाओगी?” क्या नहीं था उसके लहज़े में।
“तुम क्या कह रहे हो, मुझे समझ नहीं आ रहा।” महक ने नज़रें चुराई।
“Enough Mahak, I am fed up of your strangerness. How long are you going to behave like this?” वह फट ही पड़ा आज। वह क्यों बन गई थी ऐसी।

महक के चहरे पर सख़्ती दर आई।
“I have lost my father and you are axpecting me to behave normal?”
अली ने ज़ब्त से आंखें बंद कर के खोली।
“क्या दुनिया में कोई ऐसा है जिसने कभी किसी अपने को नहीं खोया? वह क्या वहीं उस माज़ी में गुम हो जाते हैं? No Mahak……….. मूव ऑन करते हैं वह लोग। तुम अटलीस्ट कोशिश तो करो।”

“बाप को खो कर कौन मूव कर सकता है अली एवान?” महक इस्तहजाएया हंसी। “जब एक बाप जाता है ना दुनिया से, तो अपने साथ वह छायादार दरख़्त(tree) भी ले जाता है जिसके साए तले उसकी फैमिली रहा करती थी।” उसकी आंखों में पानी आया था। “मां और बाप, यह दो ऐसी हस्ती हैं कि जिनके महज़ होने से ही दिल को सुकून रहता है। चाहे वह दुनिया के किसी कोने में भी क्यूं ना हों। वह होते हैं तो औलाद तहफ्फुज़(safety) के एहसास में घिरी रहती है।” उसकी नम आंखों में कर्ब हिलकोरे ले रहा था।

“हम बच्चे कितने बेफिक्र होते हैं। अपनी अपनी ज़िन्दगी में मगन। दुनिया जीतना चाहते हैं। नए नए ख़्वाब बुनते हैं। खुशियों की तलाश में घर से बाहर निकलते हैं। यह जाने बगैर कि हमारी सबसे बड़ी ख़ुशी, सबसे बड़ी नेमत तो घर में ही पैरेंट के रूप में मौजूद है। दुख की बात तो यह है कि हम में से ज़्यादातर लोगों को इसका एहसास तब ही होता है जब वक़्त हमारे हाथ से निकल जाता है। वह जब हमें छोड़ कर इस दुनिया से चले जाते हैं। फिर चाहे इंसान कितना भी मूव ऑन कर ले अली, लेकिन यह कसक कभी साथ नहीं छोड़ती।” वह थक कर चुप हुई थी और सर झुका कर धुंधली आंखों से यूं अपनी जूती देखने लगी जैसे अब बोलने को कुछ था ही नहीं।

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कब से ख़ामोश खड़े अली ने बहुत नर्मी से उस प्यारी लड़की का हाथ थामा और उसके ‘अरे अरे’ करने के बावजूद कुछ दूरी पर लगी बेंच पर बिठाया फिर उसके सामने ही ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा और उसकी नम आंखों में झांका।
“तुम बहुत अच्छी बेटी हो महक…… हमेशा से ही थी। तुम्हें किसी भी तरह के गिल्ट में घिरे रहने की जरूरत नहीं है।” वह बहुत यकीन से कह रहा था।

महक ने सर झटका।
“यह सिर्फ कहने की बातें हैं। अगर मैं अच्छी बेटी होती तो मुझे पता होता पापा की बीमारी का या वह लोग मुझे इस तरह अनजान नहीं रखते। मैं तो बड़ी बेटी थी घर की। पता होना चाहिए था मुझे।”
अली ने एक गहरी सांस ली।
“मां बाप ऐसे ही होते हैं। खुद बड़े बड़े पहाड़ सर करते हैं लेकिन बच्चों पर आंच भी नहीं आने देना चाहते और फिर तुम लोग के एग्ज़ाम करीब थे। हो सकता है उन्हें तुम्हारी पढ़ाई मुतास्सिर होने का डर हो। हर चीज़ को निगेटिव अंदाज़ में सोचना क्यों शुरू कर दिया है तुमने?”

महक ने उसके चहरे पर फैली सच्चाई से नज़रें चुराई।
“जो भी हो। मुझे ख़ुद ही पता होना चाहिए था।”
उसकी बात पर अली अफसोस से सर हिलाता हुआ खड़ा हुआ। “Mahak being Mahak!”
“क्या मतलब?” वह कन्फ्यूज़ हुई। गर्दन घुमा कर अपने बग़ल में देखा जहां वह अब बैठ रहा था।
“मतलब यह कि वह महक ही क्या जो किसी से कन्वेंस हो कर अपना ओपिनियन छोड़ दे।”

उसकी बात समझते ही महक ने मुंह बनाया और जाने के लिए उठने वाली थी कि अली ने रोका।
“बैठो अभी….. मेन बात तो रह ही गई।”
“अब क्या?” तड़ख कर पूछा।
“यह कि आज क्यों परेशान हो?” वह बगौर देखते हुए उससे पूछ रहा था।
महक थोड़ा सटपटाई।
“नहीं तो, मैं कहां परेशान हूं।”
लेकिन वह बज़िद हुआ। “कुछ तो है।”
“ऐसी कोई बात नहीं है मैं….”
“महक।” अली ने इस बार वाक़ई उसे घूरा।
वह ढीली हुई। इस शख्स को टालना कितना मुश्किल लग रहा था आज। उसने नज़र अपनी गोद में रखे दोनों हाथों पर टिका दी।
“मैं जॉब करना चाहती हूं।”

Hisar e ana chapter 16 part 3

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