Hindi novel Hisar e Ana chapter 16 part 3 by Elif Rose free ebook

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रात भर हुई बारिश के बाद सुबह मौसम साफ़ था लेकिन राहेमीन रियाज़ को अपने वजूद के गिर्द लिपटी धुंध अभी तक महसूस हो रही थी।
रात भर जाग कर अपने हालात पर आंसू बहाने के बाद वह फज़र की नमाज़ पढ़ कर सोई तो फ़िर रफाकत बी के दरवाज़ा बजाने पर ही उठी।
उठ कर बैठते हुए अपने कमर तक आते सिल्की बालों को समेट कर उसने वॉल क्लॉक पर नज़र डाली।
“नौ बज गए?” हड़बड़ा कर वह बेड से उठी क्यूंकि सबीहा उसके बग़ैर नाश्ता नहीं करती थीं।
सबसे पहले दरवाज़ा खोला और रफाकत बी को “10 मिनट में आती हूं।” कह कर बाथरूम का रुख़ किया।

कुछ देर बाद वह डायनिंग रूम में मौजूद थी।
अपने देर से उठने पर वह सबीहा को “आंख ही देर से लगी।” कह कर मुतमईन कर चुकी थी।
उनके बग़ल में बैठ कर बेदिली से सैंडविच खाते हुए उसने यूं ही पलकें उठा कर सामने देखा।
ब्लैक पैंट पर व्हाइट टी शर्ट पहने आंखें प्लेट पर मर्कोज़ किए ख़ामोशी नाश्ता करते हुए असफन्द मीर किसी सोच में गुम लग रहा था।
(आज मैं अम्मी को सब बता दूंगी। फिर…. फिर चाहे कुछ भी हो। कम से कम मैं इस दोगली ज़िन्दगी से तो बच जाऊंगी।) दिल में सोचते हुए राहेमीन को कुछ इतमिनान हुआ। उसने दोबारा तवज्जाह अपनी प्लेट पर कर ली।

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कुछ ही देर गुज़री थी जब नाश्ते के बाद असफन्द ने इलयास और सबीहा को मुश्तरका मुखातिब किया।
“मुझे आप लोग से कुछ बात करनी है।”
और सबीहा के बगल में बैठी राहेमीन को अपनी सांस गले में अटकती महसूस हुई।
उसने घबराकर दोबारा असफन्द को देखा जिसकी लाल पड़ती आंखें बेख्वाबी का पता दे रहीं थीं लेकिन वह उसे नहीं देख रहा था।
“हां बोलो, क्या बात है?” टिशू से हाथ पोंछते हुए इलयास साहब बोले जबकि सबीहा, जो उसे इग्नोर कर रहीं थीं, नागवारी से लिविंग रूम की तरफ बढ़ गईं।
उन लोग भी उधर ही आ गए।
अब वह लोग सोफे पर बैठ रहे थे लेकिन राहेमीन की हिम्मत नहीं हुई।
वह वहीं दहलीज पर खड़ी रही।

“मैं जो कहने जा रहा हूं, ऐन मुमकिन है वह बात सुन कर आप लोग को झटका लगे और नागवार भी लगे। लेकिन मेरी दरख्वास्त है कि एक बार……एक बार मुझे समझने की कोशिश ज़रूर करें।” असफन्द सिंगल सोफे पर बैठा दोनों हथेलियों को आपस में जोड़े दोनों को उम्मीद से देखते बोल रहा था।
इलयास और सबीहा दोनों ने पहलू बदला कि अपने तिएं दोनों ही असफन्द की राहेमीन के लिए पसंदीदगी से वाकिफ थे।

राहेमीन ने दरवाज़े पर लगे पर्दों को मजबूती से थाम रखा था।
उधर असफन्द बोल रहा था।
“मैं मोहब्बत के जज़्बे से उस उम्र में रोशनास हुआ था जब उसके सही मायने भी नहीं पता थे। एक लड़की थी, जो अचानक ही दिल में आ बसी, मुझे कुछ भी सोचने समझने का मौक़ा दिए बग़ैर। मैं जो हमेशा उससे खार खाता था, उसे तंग करता था, उसके आंसुओं ने मुझे तकलीफ़ देनी शुरू कर दी। मैं बेचैन सा उसे खुश करने की तदबीरें करने लगा। उसकी एक मुस्कुराहट मुझे अंदर तक सरशार कर देती।”

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सबीहा मीर बेचैनी से खड़ी हुईं।
“मुझे मार्केट जाना है, फिर कभी बात कर लेना असफन्द।” वह उस टॉपिक से बचना चाहती थीं लेकिन असफन्द ने अपनी बात ज़ारी रखी।
“मैं उसके साथ का मुतमनी होने लगा। वह इतनी अहम हो गई कि उसके बग़ैर ज़िन्दगी का तसव्वुर करता तो सांस घुटने लगती। इसके बावजूद अपने एहसासात मैं उससे छुपाए रखता कि दिल मुतमईन था। मगर मेरा यह इत्मिनान ही मुझ पर भारी पड़ गया।”
“असफन्द….” इलयास मीर ने उसे रोकना चाहा।
“मैं जो सोचता था कि सही वक़्त आने पर उसे ज़िन्दगी में शामिल कर लूंगा, उसे किसी और के नाम किया जा रहा था। मैं क्या इतना बेज़रर था कि एक बार सोचा भी न जाता मेरे बारे में?
हां, असफन्द मीर बेस्ट चॉइस नहीं था लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसे आसानी से नज़र अंदाज़ कर दिया जाए।”

सबीहा होंठ भींचे उसकी शिकवा करती आंखों को देख रही थीं। रफाकत बी भी किचन से आकर शल सी खड़ी राहेमीन के पीछे आ खड़ी हुईं थीं।
“मैंने एहतीजाज की कोशिश की लेकिन उसका कुछ असर नहीं हुआ। हां अलबत्ता मेरे आवाज़ उठाने के संगीन नताएज से ज़रूर आगाह किया गया।” इलयास साहब के गले में गिल्टी उभर के मादूम हुई थी।
“इसलिए मैंने………असफन्द मीर ने अपनी मोहब्बत छीनने का फ़ैसला कर लिया।”
सबीहा मीर से मज़ीद बर्दाश्त नहीं हुआ लिहाज़ा वह वहां से जाने के लिए मुड़ने लगीं थीं कि तभी असफन्द के आगे के अल्फ़ाज़ ने उनके कानों पर गोया बम फोड़ा।
“मैंने उससे निकाह कर लिया।”

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