Novel Hisar e Ana chapter 17 part 1 by Elif Rose Ebook Reader

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सबीहा मीर को अपने पैरों तले ज़मीन निकलती महसूस हुई। राहेमीन ने कर्ब से आंखें बंद की। जबकि इलयास मीर को अपना वजूद वहीं सोफे के धंसता महसूस हुआ। वह बेयकीनी से अपने बेटे को देख रहे थे जो अब महज अपनी बंद हथेलियों को देख रहा था।
“अ…. असफन्द?”
“मैंने दो साल पहले राहेमीन से निकाह कर लिया।”
“यह क…….क्या बकवास है यह?” सबीहा बमुश्किल कुछ बोलने के काबिल हुईं थीं। फिर राहेमीन पर नज़र पड़ी तो वह उसके पास आकर बाज़ू थाम गईं।
“राहेमीन…. बेटा यह झूठ है ना?…. बताओ मुझे….. बताओ असफन्द झूठ कह रहा है ना?”

आंसू लुड़क कर राहेमीन के गालों पर बहने लगे।
वह उनसे नज़र नहीं मिला पा रही थी।
और सबीहा मीर को अपना जवाब मिल गया।
वह बेयकीनी से उसके शर्मिंदा चहरे को देख रही थीं।
फिर उस बेयकीनी ने गुस्से का रूप धार लिया। तैश के आलम में उनका हाथ उठा था मगर इससे पहले कि वह राहेमीन के गाल पर पड़ता, असफन्द जो पहले ही उनके पास आ रहा था, उसने जल्दी से राहेमीन को उनसे दूर किया।

“राहेमीन की कोई गलती नहीं है आंटी।”
“मेरे रास्ते से हटो असफन्द….”
“मैंने उसे ब्लैकमेल किया था।” उसके ऐतराफ पर लिविंग रूम में एक बार फिर सन्नाटा छा गया।
असफन्द ने धीरे धीरे सब उन लोग को बताया।
अब उस खूबसूरती से सजे लिविंग रूम में घड़ी की टिक टिक के साथ सिर्फ राहेमीन की सिसकियों की आवाज़ आ रही थी।

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इलयास मीर उठकर असफन्द के सामने आए थे और एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके दाएं गाल पर मारा फिर दोनों हाथों से उसका कॉलर पकड़ा।
“शर्म आ रही है मुझे तुम्हें अपना बेटा कहते हुए।” एक बार फिर उनका हाथ उठा।
राहेमीन धुंधलाई नज़रों से उन्हें देख रही थी।
“सबीहा से शादी के वक़्त मैंने वादा किया था कि राहेमीन को हर मुमकिन तहफ्फुज़ दूंगा।…..नहीं पता था मुझे कि मेरा यह वादा मेरे अपने ही बेटे के हाथों टूटेगा। क्यों किया तुमने ऐसा? अपने ही घर की लड़की को डराने धमकाने से पहले ज़रा तो सोचते।”

“यह क्यों सोचेगा इलयास?”
सबीहा सर्द आवाज़ में गोया हुईं।
“अपनी मर्ज़ी, अपना मुफाद, अपनी ख्वाहिशें……इसके अलावा कभी कुछ सोचा है इसने?……इस ख़ुदग़र्ज़ इंसान से हम भलाई की उम्मीद भला कर भी कैसे सकते हैं? शुरू से ही…….शुरू से ही इसने मेरी बेटी पर ज़िन्दगी तंग कर रखी….और अब नज़र कर दिया अपने बेकार से एडवेंचर…..”
“राहेमीन एडवेंचर नहीं है।” इस बार असफन्द चुप नहीं रह सका। “मोहब्बत है यह मेरी।”
“हह” वह तंज़िया हंसी। “ऐसा करते हैं मोहब्बत में?”

“मेरा तरीका ग़लत था लेकिन एहसासात गलत नहीं हैं।”
“अरे भाड़ में जाएं तुम्हारे एहसासात।”
इलयास मीर अब सोफे पर सर हाथों में गिराए बैठे थे।
असफन्द ने उन्हें देखा।
“आपका गुस्सा जाएज़ है, आप तीनों ही जो सज़ा देंगे मुझे मंज़ूर होगी लेकिन प्लीज़….. एक्सेप्ट कर लें इस रिश्ते को। यकीन करिए, मैं बहुत खुश रखूंगा राहेमीन को। कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने दूंगा उसे। हमेशा संभाल के……”
“तुमसे तुम्हारे ख्वाब तो संभाले नहीं गए असफन्द मीर और दावे कर रहे हो मेरी बेटी को संभालने के?” एक एक लफ्ज़ चबा कर कहते हुए वह उसे M. Arch. का पेपर छोड़ने का ताना दे गई थीं।

असफन्द ने अपने होंठ भींचे।
“उस ख्वाब से भी मैं वक्ती तौर पर दस्तबरदार हुआ हूं। फिलहाल मेरे लिए राहेमीन अहम है।”
“मुझे तुम्हारी इन बड़ी बड़ी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है और बार बार मेरी बेटी का नाम अपने मुंह पर मत लाओ।”
“मनकूहा(बीवी) है वह मेरी।” वह सर्द हुआ।
“ज़बरदस्ती की।” उन्होंने भी जताया।
“व्हाट एवर।” उसने भी गोया नाक से मक्खी उड़ाई।
“निकाह तो हो चुका और पता है क्या?…..इस वक़्त मुझे अपना फैसला सही ही लग रहा है क्यूंकि आपके अंदाज़ से साफ ज़ाहिर है कि अगर मैं पहले आपके सामने दरख़्वास्त ले कर आता तो…आप तब भी राज़ी ना होती।” यह कह कर वह लिविंग रूम से क्या, घर से भी निकलता चला गया लेकिन जाने से पहले एक खफा सी नज़र राहेमीन पर डालना नहीं भूला था। वह भी सबकी तरह उससे बदगुमान थी।

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उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी लेकिन कुक(रसोइया) छुट्टी पर था और उसका खुद कुछ पकाने का दिल नहीं कर रहा था इसलिए पिज़्ज़ा ऑर्डर कर दिया।
अभी वह पिज़्ज़ा खा कर फारिग ही हुआ था जब बेल बजी।
“इस वक़्त कौन?” अली हाथ झाड़ कर खड़ा हुआ और जाकर दरवाज़ा खोला।

Hisar e ana chapter 17 part 2

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