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Hisar e Ana chapter 14 part 2: The Siege of Ego by Elif Rose

Hisar e Ana chapter 14 part 2

Hisar e Ana chapter 14 part 2

गाड़ी वापसी के सफ़र पर रवां दवां थी। असफन्द फुल स्पीड से कार ड्राइव कर रहा था।
बीच बीच में एक फिक्रमंद निग़ाह उस पर भी डाल रहा था जो सीट की बैक से टेक लगाए आंखें मूंदे बैठी थी।
पल भर में ज़िन्दगी बदल गई थी।
आगे क्या होगा यह उसे नहीं पता था, हां यह ज़रूर पता था कि वह असफन्द मीर को कभी माफ नहीं करेगी।

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मीर मेंशन में जब उसने शिकस्ता कदम रखे तो सन्नाटे को अपना मुंतज़िर पाया। वह चौंकी थी। चाबी उसे चौकीदार ने ही दी थी जिससे असफन्द कुछ देर बात करके यहां से गया था।

“कहां गए सब?”
“वह छोटी बीबी जी….. बड़े साहब और मैडम तो गुड़गांव गए हैं किसी फंक्शन में…… और रफाकत के पास कोई फोन आया था कि उसकी बहन का एक्सिडेंट हो गया है, तो वह वहां गई है।” चौकीदार ने अपनी बीवी का बताया।

“या अल्लाह!” इतना ही निकल सका उसके मुंह से। समझने में मुश्किल ज़रा भी नहीं हुई कि यह सब उस इंसान का किया धरा था। कितनी चालाकी से ट्रैप किया उसे। यकीनन उसने चौकीदार को भी उसके लेट आने का कोई ना कोई बहाना बता दिया होगा।
उफ़! उसे समझ नहीं आया कि बेवकूफ़ बनने पर किस तरह मातम करे।
जो भी था, आज जो भी हुआ उसके साथ…. उस सदमे से वह निकलना बहुत मुश्किल था।

उसने जा कर खुद को कमरे में बंद कर लिया। बेड पर बैठ कर वह फूट फूट कर रोने लगी थी।
इलयास और सबीहा दस पन्द्रह मिनट बाद ही घर आ गए थे। वह उस वक़्त किसी का भी सामना करने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए सबीहा के दरवाज़ा नाॅक करने पर भी नहीं खोला। तबियत खराबी का बहाना किसका नहीं चलता?

Hisar e Ana chapter 14 part 2

और फिर असफन्द मीर Canada चला गया। लेकिन जाने से पहले एक बार उससे मिलने ज़रूर आया था।
“अब क्या लेने आए हैं यहां?” वह बिस्तर से उठकर दबी आवाज़ में चीखी थी।

“राहेमीन!” वह बेचैन सा आगे बढ़ा। “यह अपना क्या हाल बना लिया है तुमने?”
कल वाले ही कपड़े में रो रो कर हकीक़त में वह अपनी तबियत ख़राब कर चुकी थी। ऐसा तो नहीं चाहा था उसने।

“यह खुद से पूछिए….. मुझे बर्बाद कर के इस हाल में पहुंचाने वाले आप ही हैं।”

“ऐसा नह…..”

“ऐसा ही है असफन्द मीर!” उसने बात काटी। “आप एक इंतेहाई ख़ुदगर्ज़ इंसान हैं, मेरा सुकून…. मेरी खुशियां बर्दाश्त नहीं होती आपसे।”

“किस ख़ुशी की बात कर रही हो हां?” उसका मीटर घूमते देर नहीं लगी। “यह….. यह जो अंगूठी है तुम्हारे हाथ में?” उसका हाथ पकड़ कर गुस्से से बोला। राहेमीन ने हाथ खींचना चाहा मगर उसकी पकड़ मज़बूत थी। उसने बेरहमी से उसकी उंगली से वह अंगूठी निकाली और तैश में दूूर फेंकी।
“इसे दोबारा पहना तो मुझसे बुरा कोई न होगा।”

“असफन्द……. असफन्द बेटा कहां हो?” डैड उसे आवाज़ें दे रहे थे।

असफन्द ने जाने से पहले नज़र भर कर उसके खौफज़दा चहरे को देखा। अपने रवैए पर उसे अफ़सोस हुआ लेकिन क्या करता, उसे किसी और के साथ सोचना भी उसे आग लगा देता था।
उसने बहुत मोहब्बत से राहेमीन का वही नाज़ुक हाथ अपने मज़बूत हाथ में लिया और उन शिकवा करती आंखों में झांका।
“अपना खयाल रखना।” आहिस्ता से कह कर वह चला गया।
पीछे राहेमीन थके हारे अंदाज़ में बेड पर बैठ कर रोने लगी थी।

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