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कितनी ही देर डायनिंग रूम में ख़ामोशी छाई रही।
किचन में मौजूद रफाकत बी ने अफसोस सर हिलाया।
“राहेमीन।” बहुत देर बाद सबीहा मीर ने पुकारा।
वह जो इतनी देर से दरवाज़े की तरफ देख रही थी, रुख़ मोड़ कर खाली खाली नज़रों से उन्हें देखा।
“बैग पैक करो अपना। हम आज ही भाई के घर जा रहे हैं।”
इलयास मीर ने बेयकीनी से उन्हें देखा।
वह तो अभी तक अपने बेटे के लिए उनके खयालात जान कर ही सकते में थे कि अब यह?
“सबीहा….यह सब करने की क्या ज़रूरत है?” वह हैरान थे।
“है ज़रूरत….अब हम इस घर में तब ही आएंगे जब आपका बेटा तलाक़ देगा राहेमीन को।” उनका लहज़ा अटल था।
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राहेमीन को लगा इससे ज़्यादा वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। वह आहिस्तगी से उठी और बिना कुछ बोले डाइनिंग रूम से निकल गई।
इलयास मीर ने दुख से उसे जाते देखा।
इस मामले में सबसे ज़्यादा राहेमीन को ही सफर करना पड़ रहा था।
वह वापस अपनी बीवी की तरफ मुड़े।
“इतना इंतहाई क़दम मत उठाओ सबीहा। प्लीज़ एक बार ठंडे दिमाग से सोचो। असफन्द जितना गलत कर चुका है, वह भुलाने लायक नहीं है लेकिन तलाक इस मसले का हल नहीं है। राहेमीन यहां हमारी नज़रों के सामने रहेगी। असफन्द अगर कभी चाहे भी तो उसे तकलीफ़ नहीं पहुंचा सकेगा। एक बार इस बारे में सोच कर तो देखो। वह मोहब्बत करता है राहेमीन से….।” अनजाने में वह बेटे की तरफदारी कर गए थे।
“मेरे सामने उसकी हिमायत मत करें आप।” सबीहा ने तलखी से उन्हें टोका। “जो उसने किया है, उसको भुगतना भी पड़ेगा।” कहकर वह भी वहां से उठ गईं।
“यह तुमने क्या किया असफन्द?” इलयास मीर ने टेबल पर सर दोनों हाथों में गिरा लिया।
कुछ ही देर में अपना बैग पैक करने के बाद सबीहा राहेमीन के कमरे में आईं।
“तुम अभी तैयार नहीं हुई?”
वह जो बेड पर अपने हालात पर आंसू बहाने में मसरुफ़ थी सबीहा मीर की आवाज़ चौंक कर उन्हें देखा।
वह उठ कर उनके पास आई।
“अम्मी।….इस तरह घर छोड़ना, यह …..”
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“मेरी बात सुनो राहेमीन!” उसकी बात सबीहा ने बीच में ही काट दी।
“यह सब जो मैं कर रही हूं इसी में तुम्हारी भलाई है। अपनी मां पर भरोसा करो। सब ठीक हो जाएगा।”
उसका गाल थपक कर वह खुद ही उसकी पैकिंग करने लगीं।
राहेमीन बेबसी से उन्हें देख कर रह गई।
यह तो नहीं चाहा था उसने।
गुज़रे एक घंटे में इलयास मीर सबीहा को समझा समझा कर थक गए लेकिन उन्होंने एक ना सुनी।
और फिर मीर मेंशन के मुलाजिमों(नौकरों) ने हैरत और अफसोस से अपनी बड़ी बेगम और राहेमीन को वहां से जाते देखा था।
जब रिश्तों के बीच ज़िद और अना (ego) आ जाए तब फासले आना मामूली बात हो जाती है।
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Hisar e ana chapter 20 part 4
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