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सुबह ऑफिस के लिए जल्दी निकलना और रात देर से घर आना। इतने दिनों से असफन्द मीर की यही रूटीन थी।
ऐसा नहीं था की उसने मीर मेंशन में दोबारा किसी को मनाने की कोशिश नहीं की थी, की थी कोशिश। लेकिन तब कोई भी उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था।
वह जानता था की जो झटका उसने उन लोग को दिया है ,वह हरगिज़ भी छोटा नहीं है।
हकीकत क़ुबूल करना बहुत मुश्किल था।
इसलिए उसने सब को कुछ वक़्त देने का फैसला किया।
आज सुबह भी वह तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकलने वाला था की डाइनिंग रूम में उन लोगों की मौजूदगी महसूस कर के रुका।
एक पल को वहीँ खड़े रह कर कुछ सोचा। फिर अपने कदमो का रुख डाइनिंग रूम की तरफ कर लिया।
जहाँ वह तीनों ख़ामोशी से बैठे नाश्ता कर रहे थे।
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“अस्सलाम ओ अलैकुम।”
आवाज़ पर सबीहा मीर ने नागवारी से उसे देखा। जबकि चौंकने के बावजूद राहेमीन और इलयास मीर सर झुकाए नाश्ता करते रहे।
असफन्द मीर ने एक गहरी सांस ली और मज़बूत कदम बढ़ता आगे आया और राहेमीन के सामने वाली कुर्सी खींच कर बैठा।
बारी बारी तीनों को देखा जो ला ताल्लुकी का भरपूर मुज़ाहिरा कर रहे थे।
खासतौर से सामने बैठी वह लड़की जिसे उसने दिल में एक बहुत ख़ास मुकाम पर बिठाया था।
ऐसा बेहिस भी कोई होता है ?
वह हाथ बढ़ा कर अपने लिए ग्लास में जूस निकालने लगा।
“अब इतना बुरा हो गया हूं कि आप लोग सलामती भी नहीं चाहते मेरी?”
उसके शिकवे पर राहेमीन का चम्मच मुंह तक ले जाता हाथ एक लम्हें को रुका था।
सिर्फ….एक लम्हें को।
जबकि इलयास मीर ने बेटे को घूरा जो कई दिन बाद आज यूं साथ में खाने आया था।
यह चैप्टर यहीं ख़त्म होता है। अगला चैप्टर जल्द लाने की कोशिश करुँगी।
लेकिन यह तो बताइये की review क्यों नहीं देते आप लोग?
मुझे पता कैसे चलेगा की आपको चैप्टर पसंद आया भी या नहीं ?
प्लीज़ जिस तरह प्रतिलिपि पर reviews दिया करते थे वैसे मेरे फेसबुक पेज पर भी दिया करिये।
शुक्रिया।
नोट – इस कहानी को चुराने या किसी भी प्रकार से कॉपी करने वाले पर क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी।
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