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‘धड़’ की आवाज़ के साथ उसकी बाइक सामने से आती ब्लैक कार से टकराई थी।
“अरे रे रे….…” संभालते संभालते भी वह बाइक समेत नीचे गिरा था। वह तो अच्छा हुआ कार चलाने वाले ने फौरन ब्रेक लगा दी थी लेकिन कार रुकते रुकते भी एक टक्कर लगा गई।
असफन्द मीर तेज़ी से कार से निकल कर उसके पास आया। “I am sorry. आपको चोट तो नहीं आई ?”
गलती सरासर दानियाल की थी।
हॉर्न बजाने पर भी वह सामने से नहीं हटा था।
फिर भी असफन्द परेशान सा मुआज़रत(sorry) करने लगा।
सबसे पहले ज़मीन से उठने में उसकी मदद की। फिर बाइक खड़ी की जिसकी हेडलाइट और हैंडल टूट चुके थे।
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बाइक का हाल देख दानियाल दिल पर हाथ रखते हुए चिल्लाया।
“मेरी बाइक।” आगे बढ़ कर उसके टूटे हैंडल पर हाथ फेरा फिर गुस्से से असफन्द की तरफ मुड़ा।
“अंधे होकर गाड़ी चला रहे थे क्या?”
मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
असफन्द ने उसकी सुरमई रंग की बाइक देखी जो पहले से ही खस्ता हाल लग रही थी।
नुक़सान तो बस हेडलाइट और हैंडल का हुआ था वह भी दानियाल की लापरवाही से।
असफन्द ने अफ़सोस से सर हिलाते हुए अपनी जेब से वॉलेट निकाला।
उसमें से हज़ार हज़ार के कई नोट निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ाए।
“आपके नुक़सान का मुझे अफसोस है। यह रख लीजिए…. I hope भरपाई हो जाएगी।”
दानियाल ने पहले उसे फिर उसके हाथ में नोटों को देखा फिर पलट कर ब्लैक चमचमाती कार को देखा।
(मतलब मोटी आसामी है।) उसके चहरे शातिर मुस्कुराहट आई ।
वह दानियाल ही क्या जो कोई मौका हाथ से जाने दे।
वह मिस्कीन सूरत बना कर उसकी तरफ मुड़ा।
“इन चंद नोटों से मेरा क्या भल…..मतलब मेरी बाइक का क्या भला होगा?” फिर सड़क पर आते जाते इक्का दुक्का लोगों को देखा।
(इस रोड पर कम रश रहता था। किसी ने इस छोटे एक्सिडेंट की तरफ ध्यान नहीं दिया था।)
“देखो भाई लोगों…..इस लड़के ने मुझ गरीब का कितना बड़ा नुक़सान कर दिया।” वह अचानक ज़ोर से बोला।
असफन्द ने हैरत से उस शख़्स को देखा जो बेचारा बन कर लोगों को इकट्ठा कर रहा था।
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“क्या हुआ भाई?” उसके पास आए लोगों में से एक ने सवाल किया।
दानियाल ने अपने लहज़े में दुख भरा।
“यह अमीर ज़ादे पहले तो खूब तेज़ गाड़ी चलाएंगे, फिर हज़ार, दो हज़ार दे कर मामला रफा दफा करेंगे…. यह कहां का इंसाफ है? देखिए मेरी बाइक का हाल। दो तीन महीने पहले ही ली थी। अब किसी काम की नहीं रही।”
असफन्द के माथे पर बल पड़े।
वही विक्टिमाइजेशन की कहानी शुरू हो गई थी।
लोग बग़ैर मामले की गहराई में जाए उसे बुरा भला कहना शुरू हो गए।
कोई उस पर केस करने को कह रहा था तो कोई हरजाना की मांग कर रहा था।
वह होंठ भींचे काफी देर उन सब की लान तान सुनता रहा।
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“आप लोग बोल चुके तो क्या मैं कुछ बोलूं?” उसकी एकबारगी तेज़ आवाज़ पर सब चुप हो कर उसको देखने लगे जो फिर दानियाल की तरफ मुड़ रहा था। “तो कितने पैसे देने चाहिए मुझे तुम्हें?”
“यही कोई एक देढ़ लाख। अब यह बाइक तो तुमने ख़राब कर दी। किसी काम की नहीं रही यह।” खबासत से कहते दानियाल का दिल जैसे ख़ुशी से उछल रहा था। प्लान जल्दी काम कर गया था।
उधर असफन्द ने सर हिलाते हुए जेब से मोबाइल निकाला। कुछ टाइप किया और फिर मोबाइल स्क्रीन दानियाल के सामने की।
“ये किसका नंबर है?”
दानियाल ने कन्फ्यूज़ होते हुए स्क्रीन देखी।
“Delhi police?”
“हां। मैं यहां कॉल करने जा रहा हूं।”
“इसकी क्या ज़रूरत है?” वह बदमज़ा हुआ।
“ज़रूरत यह है कि मैं तुम्हें देढ़ लाख क्या, 4-5 लाख भी देने को तैयार हूं अगर यह साबित हो जाए कि इस छोटे से एक्सिडेंट जिसको तुम बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहे हो, उसमें गलती मेरी है।”
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“तुम कहना क्या चाहते हो?” दानियाल सुलग ही तो गया था।
असफन्द तंजिया मुस्कुराया।
“यही कि कोई भी con game खेलने से पहले पक्की तैयारी करनी चाहिए। वर्ना बिसात उलटने में देर नहीं लगती।” कहते साथ ही वह भीड़ की तरफ मुतवज्जाह हुआ।
“भाई लोगों, हरजाना मेरे बजाए इनको देना चाहिए। यह आपके पीछे मेरी कार खड़ी है। आप लोग ने ध्यान नहीं दिया। इसका फ्रंट बम्पर डिफेक्ट हो गया है वह भी सिर्फ इस लिए कि यह साहब out of the rule ड्राइव कर रहे थे। मैं अपने root पर कार ड्राइव कर रहा था। यह सामने आए। मेरे बार बार हॉर्न बजाने पर भी सामने से नहीं हटे। वहां उस पिलर पर सीसीटीवी कैमरा लगा है। मामले की जांच हो जाए इसीलिए मैं पुलिस को कॉल करने जा रहा हूं।”
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दानियान का दिमाग़ जैसे भक से उड़ा था।
उसे असफन्द से इस हाज़िर दिमागी की उम्मीद नहीं थी।
वह सच कह रहा था और अब कॉल ही करने जा रहा था।
“अ…. एक मिनट रुको।” वह हड़बड़ाया।
असफन्द ने सवालिया अंदाज़ में आइब्रो उचकाई। आंखों का तास्सुर मज़ाक उड़ाने वाला था।
दानियाल को पल में एहसास हुआ कि उसने ग़लत आदमी से पंगा ले लिया था।
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