Novel Hisar e Ana chapter 18 part 2 by Elif Rose Hindi novel online

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कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर बंद कर लिया।
क्या कहती आखिर?
वह तो नज़र भी नहीं मिला पा रही थी।
“खाना….. खाना खा लीजिए आप लोग।” नाज़ुक उंगलियां आपस में चटकाती आखिरकार वह बोली।
दिन से किसी ने कुछ नहीं खाया था। इसीलिए हिम्मत करके वह यहां आई थी।
खाने का कह कर वह जाने के लिए मुड़ी जब इलयास मीर ने पुकारा।
“तुमने खाया?”
“हां।”
उसने झूठ बोला लेकिन यकीन नहीं किया गया।
“आओ बैठो…. साथ में खाते हैं।”
लेकिन वह यूं ही खड़ी रही तो इलयास साहब गहरी सांस लेकर उसके सामने आ खड़े हुए।

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“मेरा अल्लाह गवाह है कि मैंने कभी भी असफन्द और तुम में फर्क नहीं किया। दुनिया जो भी कहे लेकिन मेरे लिए तुम मेरी सगी औलाद रही हो। बचपन में असफन्द इसीलिए मुझसे बदगुमान रहता था लेकिन मैं क्या करता? तुम इस घर में आते साथ ही मुझे अज़ीज़ हो गई थी। सबीहा के साथ मैंने भी तुम्हारे रोशन मुस्तकबिल(future) के ख्वाब सजाए थे। वहाज मुझे भी तुम्हारे लिए परफेक्ट चॉइस लगा इसलिए असफन्द की ख्वाहिश को मैंने रद्द कर दिया था। बखुदा अगर मुझे ज़रा भी अंदाज़ा होता कि मेरे इनकार पर वह इतना शदीद रद्देअमल देगा तो कुछ भी करता लेकिन वह सब ना होने देता।
मैं तुम्हारी हिफाज़त नहीं कर सका, यह दुख मुझे खाए जा रहा है। सबीहा और तुमसे मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज़ तुम दोनों मुझे माफ़ ……”

“नहीं अंकल।” राहेमीन ने बेचैनी से उन्हें टोका।
“प्लीज़ ऐसा न कहें। आपकी कोई गलती नहीं है। मैंने….. मैंने मान तोड़ा है सबका।”
“मान तुमने नहीं असफन्द ने तोड़ा है बच्चे…… और इसके लिए मैं कभी उसे माफ नहीं करूंगा। तुम इस तरह खुद को कुसूर मत दो। आओ चलो खाना खाते हैं।”
कहने के साथ ही वह अपने साथ साथ सबीहा और राहेमीन की प्लेट में भी खाना निकालने लगे।
इस सारे अरसे में सबीहा लाताल्लुक़ बनी बस बेड की चादर को तक रही थीं।
राहेमीन की तरफ उन्होंने दोबारा नज़र नहीं की थी।
इलयास मीर के पुकारने पर बस खामोशी से खाना खाया।
इतनी बेरुखी पर राहेमीन का दिल कट सा गया।
वह ज़रा सा खा कर जल्द ही वहां से उठ आई।

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दानियाल (मुनीबा आपा का भाई) बहुत ख़राब मूड से बाइक चला रहा था। जिस दिन से उसे पता चला था कि राहेमीन इंगेज्ड है उस दिन से ही उसका दिमाग़ गरम था।
रोज़ दोनों बहन भाई बैठ कर प्लान बनाते और रोज़ ही उस प्लान के हल्के होने पर कैंसिल कर देते।
राहेमीन को उसने खुद देखा तो नहीं था लेकिन आपा के कहे मुताबिक़ वह बहुत खूबसूरत थी।
अगर न होती तब भी उसे ऐतराज़ नहीं था। उसका दौलतमंद होना ही काफ़ी था।
लेकिन मसला यह था कि आखिर उन लोगों को कैसे शीशे में उतारे।
क्या चाल चली जाए कि जिससे राहेमीन की शादी उससे हो जाए।
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आगे का भाग पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करिए।

Hisar e ana chapter 18 part 3

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Hisar e ana chapter 1

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