Hisar e Ana chapter 9 part 3: The Siege of Ego by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 9 part 3

Hisar e Ana chapter 9 part 3

“आज तो बहुत थकावट हो गई।” सबीहा बिस्तर सेट करते हुए बोली थीं।
आज वह लोग किसी शादी के फंक्शन से हो कर आए थे।
“हां…..अब तो मैं सोच रहा हूं कि हर फ़र्ज़ से अदा हो कर हज को चलूं…. क्या खयाल है तुम्हारा?”
“ह्मम मैं भी यही सोच रही हूं, वहाज का हॉस्पिटल भी बन कर तैयार हो गया है और अब भाभी भी जल्द ही उसकी शादी करना चाहती हैं। आज फंक्शन में मुलाकात पर भी वह अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर कर रही थीं।” मुस्कुरा कर कहते हुए सामने सोफे पर बैठे इलयास मीर को देखा।
“हम्मम यह तो अच्छी बात है।” वह खुश हुए, फिर किसी सोच के तहत बोले।
“और असफन्द?”
“मतलब?” वह उलझीं।

इलयास मीर फीका सा मुस्कुराए क्यूंकि सबीहा असफन्द के मामले से ज़्यादातर दूर रहती थीं। फिर भी गोया हुए।
“असफन्द की भी तो शादी करनी है। माशा अल्लाह बिज़नेस संभाल लिया है उसने। कोई लड़की है तुम्हारी नज़र में?”
सबीहा एक लम्हें को चुप हुई।
“अ…. हैं तो कई लड़कियां… समरा बाजी की बेटी हानिया भी बहुत प्यारी है।
उनकी बातों से भी लगता है कि उनकी मर्ज़ी यहां हैं।”
“यह तो बहुत अच्छी बात है।” इलयास मीर पुरजोश हुए।
उन्हें अपनी भांजी असफन्द के लिए सही लगी।
“जी लेकिन।” सबीहा रुकीं।
“कोई भी फैसला लेने से पहले असफन्द से ज़रूर पूछ लीजिएगा। मेरा मतलब है…” वह कुछ झिझकीं।
“उसका मिजाज़ तो आप जानते हैं… तो…” बात अधूरी छोड़ दी।
इलयास मीर ने कुछ सोचते हुए ‘”ह्म्म” कहा।

Hisar e Ana chapter 9 part 3

कुछ दिन बाद उन्होंने इस सिलसिले में बात भी की असफन्द से लेकिन उसने सख़्ती से इनकार कर उन्हें उदास कर दिया।
“लेकिन क्यूं बच्चे?” वह दोनों इस वक़्त छत पर बैठे थे।
“यह आप मुझसे पूछ रहे हैं?” असफन्द ने उल्टा शिकवा किया।
“हानिया अच्छी पढ़ी लिखी लड़की…”
“प्लीज़ डैड।” वह झुंझलाया। “आप कब तक मेरी बात नज़र अंदाज़ करते रहेंगे?”
इलयास मीर ख़ामोश हुए फ़िर अतराफ में एहतियातन देखा।
“सराब के पीछे भागना फ़िज़ूल है असफन्द।” उन्हें समझ नहीं आ रहा था कैसे समझाएं उसे।
वह थोड़ा आगे हुआ। “असफन्द मीर सराब को हकीक़त में बदलने के लिए अपना जी जान लगा देगा।”

“ख़ुशफहमियां मत पालो, जो तुम चाहते हो वह मुमकिन नहीं है?” उनके माथे पर बल डले।
असफन्द ने एक गहरी सांस ली।
“मेरी ज़िन्दगी के दायरे में बहुत कम लोग हैं डैड , उनमें से किसी एक पर भी मैं समझौता नहीं कर सकता फिर वह तो मेरी ज़िन्दगी है, उसकी ख्वाहिश कैसे तर्क कर दूं?”
“दिमाग़ ख़राब हो गया है तुम्हारा।” इलयास मीर झल्लाते हुए खड़े हुए।
“याद रखना इस मामले में मेरा साथ तुम्हें कभी नहीं मिलेगा।”
उसे वार्न करते हुए वह वहां से चले गए।
उनका इरादा अब जल्द से जल्द उसके लिए कोई रिश्ता तलाशने का था।

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और यह उससे एक हफ्ते बाद की ही बात है जब सबीहा रफाकत बी से असफन्द का कमरा साफ करवा रही थीं। (वैसे वह अपनी मौजूदगी में ही साफ करवाता था।)
वह सोफे पर बैठीं तो नज़र बेड पर तकिए पर गई।
उसके नीचे कुछ दबा था।
फितरी तजस्सुस में घिर कर वह उठीं थीं लेकिन तकिया हटाते ही चौंक गईं।
“यह….यह तो…” वह रहेमीन का नीला दुपट्टा था।
“यह यहां क्या कर रहा है?” वह दुपट्टा हाथ में लिए हैरत से बड़बड़ाई थीं।
कुछ समझ नहीं आ रहा था।
उन्होंने रुख़ मोड़ कर रफाकत बी को देखा।
वह इस तरफ मुतवज्जाह नहीं थीं, कॉर्नर टेबल पर फाइल दुरुस्त करके रख रहीं थीं।

Hisar e Ana chapter 9 part 3

“रफाकत बी।”
“जी?”
“आप… ज़रा गेस्ट रूम की डस्टिंग कर दीजिए। यहां का बाकी काम मैं देख लूंगी।”
वह दुपट्टा अपने पीछे छुपाते हुए उनसे बोलीं और फिर रफाकत बी के वहां से जाते ही असफन्द के कमरे की तलाशी लेने लगीं।
पहले वार्डरोब चेक की लेकिन वह लॉक्ड थी।
कमरे से अटैच स्टडी रूम में भी चेक किया लेकिन वहां भी कोई काबिल ए तवज्जाह चीज़ नहीं मिली।
फिर जब कमरे में आ कर बेड साइड टेबल का ड्रावर चेक किया तो वहां एक ज्वेलरी बॉक्स रखा था।

हाथ बढ़ाकर उसे उठा कर खोला तो हकीकत में ठीठकी थीं।
वह एक बेहद ख़ूबसूरत, नफ़ीस सा डायमंड ब्रेसलेट था।
परेशानी से उन्होंने अपने सर पर हाथ फेरा।
अगर कुछ देर पहले उन्हें इस कमरे से राहेमीन का दुपट्टा ना मिलता तो उन्हें कोई फिक्र न होती।
लेकिन अब यह सब किस तरफ इशारा कर रहा था?
इत्तेफ़ाक तो नहीं हो सकता यह।
“मुझे कभी एहसास क्यूं नहीं हुआ?”
वह जितना सोचती जा रही थीं उतना उनका ज़हन माऊफ़ होता जा रहा था।

to be continued…

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