Hisar e Ana chapter 9 part 2: The Siege of Ego by Elif Rose

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Hisar e Ana chapter 9 part 2

Hisar e Ana chapter 9 part 2

यह सिकंदर और इसरा का वही प्यारा घर था जहां हर वक़्त खुशियां अपने पर फैलाए रहा करती थीं।
जहां के मकीन अपनी हर छोटी बड़ी खुशियां मिल कर बांटते थे।
सिकंदर और इसरा ने यहां अपनी प्यारी सी दुनिया सजाई थी।
जहां एलिज़ा की मासूमियत, डेनिज़ के नखरे और महक की ज़िंदादिली रौनक का सबब थी।
आज इसी घर में गम का समा था।

हां
सिकंदर अब नहीं रहे थे।
एम्बुलेंस के आने से पहले ही वह यह दुनिया छोड़ कर जा चुके थे।
ग़म का पहाड़ सा था जो उन सब पर टूटा था।
उन्हें ब्रेन ट्यूमर था और यह बात डेढ़ महीने पहले ही पता चली थी जिसे उन्होंने और इसरा ने बच्चों से छुपाई थी।
वह बाई पास सर्जरी का सोच रहे थे, लेकिन उनका वक़्त पूरा हो चुका था।

इसरा का रो रो कर बुरा हाल था।
डेनिज़ और एलिज़ा अलग बिलक रहे थे।
और महक?

वह बेयकीनी से अपने पापा…. अपने जान से प्यारे पापा के बेजान वजूद को देख रही थी।
यह क्या हो गया था पल में?
उसे हंसना-बोलना, चलना सिखाने वाले, हमेशा ज़माने के सर्द गर्म से बचाने वाले उसके पापा यूं अचानक छोड़ कर चले गए।
वह भी रोना चाहती थी।
चीखना चिल्लाना चाहती थी।
लेकिन ज़ुबान उसका साथ नहीं दे रही थी।
जज़्बात जैसे बर्फ़ से हो गए थे।
कौन कब आया, उसे कुछ खबर नहीं।
वह बस अपने पापा के जनाज़े के पास बैठी उन्हें साकित नज़रों से देख रही थी।

Hisar e Ana chapter 9 part 2

अली को एलिज़ा ने कॉल पर रोते हुए यहां बुलाया था।
वह जो उस वक़्त अगले दिन होने वाले सेलिब्रेशन के लिए कुछ शॉपिंग करने निकला था, सब छोड़ कर वहां आया।
अपने शल होते ज़हन पर काबू पाते हुए उसने ही सारे इंतज़ाम संभाले।
उनके रिश्तेदार और जानने वालों को खबर दी।
अगर कुछ नहीं कर सका तो वह उस परिवार को ढारस देना था।

उस हंसते खेलते परिवार को यूं बिखरते देख उसे अपनी हिम्मत जवाब देती महसूस हो रही थी।
वह कैसे संभाले उन लोग को?
कहां से ऐसे अल्फ़ाज़ लाए कि जिससे उनकी तकलीफ़ कुछ कम हो?
ये रोते बिलखते लोग….. उसे बेबस कर रहे थे।

वह शिकस्ता सा महक के पास आ कर बैठा।
जिसकी आंखें, जहां हर वक़्त एक चमक सी रहा करती थी, आज उनमें वीरानी का डेरा था।
बिखरा सरापा, शिकस्ता वजूद।
अली को ज़िन्दगी से भरपूर इस लड़की के हाल ने शदीद तकलीफ़ से दोचार किया।
कितने जोश से वह अपने पापा की बर्थ डे पार्टी प्लान कर रही थी।

“महक।” बहुत हिम्मत कर के उसने पुकारा लेकिन वह तो जैसे पत्थर की हो चुकी थी।
पता नहीं सुन भी रही थी या नहीं।
उसने उसकी बेतास्सुर आंखों में देखा, जहां ज़रा सी नमी भी न थी।
“कभी कभी दिल का बोझ आंखों के ज़रिए हल्का कर लेने में कोई हर्ज नहीं है।”
उसकी बात पर महक की पलकों में जुंबिश तक ना हुई।
लब अब भी जामिद थे।
वह तो उसकी तरफ देख भी नहीं रही थी।
“प्लीज़ रिएक्ट महक, कुछ तो बोलो।”

कितनी ही देर वह उसके जवाब का मुंतजिर रहा लेकिन वह अब भी वैसे ही बैठी थी।
अली को हद दर्जा फ़िक्र ने आ घेरा।
आख़िर वह क्यूं इतनी बेहिस हो रही थी?
क्यूं रिएक्ट नहीं कर रही थी?
औरों की तरह रो और चीख चिल्ला नहीं रही थी।
उसने बेबसी से अपने बालों में हाथ फेरा।
उससे नहीं देखा जा रहा था उसका यह बिखरा हाल।
बहुत तकलीफ़ हो रही थी उसे।

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जनाज़ा ले जाने का वक़्त हो रहा था।
उसने अफसोस से इसरा के साथ रोते एलिज़ा और डेनिज़ को देखा।
लोग उन्हें चुप करा रहे थे जो अब सिकंदर के जनाज़े को जाता देख अब बेहाल हो रहे थे।
मय्यत को कंधा देते वक़्त उसकी अपनी आंखें भी नम हो गईं।
सिकंदर अंकल ने जो शफकत और मोहब्बत उस पर निछावर की थी, वह हरगिज़ भुलाए जाने लायक नहीं थी।

तभी महक के साकित वजूद में हरक़त सी हुई।
वह उठी थी।
बाप के जाते जनाज़े पर एक आख़री हसरत भरी अल्विदाई नज़र डाली।
फिर पीछे मुड़ी।
आहिस्ता से चलते हुए इसरा के पास आई।
उन्हें गले लगाया।
दूसरे हाथ से अपने भाई बहन को अपने साथ लगाया।
उन तीनों को चुप कराने लगी।

किसी एहसास के तहत अली ने पीछे मुड़कर देखा।
एक बेफ़िक्री की ज़िन्दगी जीने वाली।
खिलंदड़ सी लड़की।
आज अपना आप भुलाए,
अपने अज़ीज़ों के लिए एक मजबूत सहारा बनने की कोशिश कर रही थी।
उन्हें ढारस बंधा रही थी।
संभाल रही थी।
उनके आंसू पोंछ रही थी।
वह अपने परिवार को समेट रही थी।
बहुत मुश्किल से वह उस पर से नज़रें हटा पाया था।

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Flash back
असफन्द किसी मकनातीसी सहर के ज़ेर ए असर उसके पीछे बड़ा था।
अपनी कैफियत वह ख़ुद जानने से कास्सिर था।
लेकिन नीचे आखिरी सीढ़ी पर पहुंचने पर जब उसकी नज़र केक टेबल के साथ खड़े मेहमानों पर पड़ी तो वह ठिठका।
फसों टूट सा गया।

शाहज़र?
उसका दोस्त?
यहां?
उसे सही मायनों में धचका लगा।

यह लड़की क्या करती जा रही थी?
उसके सब अपनों को धीरे धीरे अपना गरवीदह कर रही थी?
उससे अलग कर रही थी?
पहले इस घर पर अपना हक जमाया।
फिर उसके डैड को छीना।
कैटी पर भी उसकी नज़र थी।
और अब?
अब वह उसके दोस्त को छीनना चाह रही थी?

बदगुमानी हद से ज़्यादा थी।
उसने एक शिकवा भरी नज़र अपने बाप पर डाली फिर अपने दोस्त को देखा जो उसकी दुश्मन से बात करते हुए किसी बात पर हंस रहा था। दूसरे मेहमान भी हंसी में उसका साथ दे रहे थे।
उसे लगा सब उस पर हंस रहे हैं… उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं।

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तभी इलयास मीर की नज़र आख़िरी सीढ़ी पर खड़े कैटी को हाथों में लिए अपने बेटे पर पड़ी।
“असफन्द?” खुशगवार हैरत से उन्होंने पुकारा।
बाकी सब भी उसकी तरफ मुतवज्जाह हुए।
“वहां क्यूं खड़े हो…… यहां आओ।”
उनके बुलाने पर वह बेतास्सुर चेहरे के साथ धीरे धीरे क़दम बढ़ाता मेज़ के पास आ कर रुक गया।

पहले सर उठा कर तायराना नज़रों से सारी सजावट देखी, फिर मेहमानों को देखा जो उसी की तरफ मुतवज्जाह थे।
फ़िर अपने दोस्त शाहज़र को देखते हुए रुख़ राहेमीन की तरफ मोड़ा।
वह बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी।
हाथ में चाकू पकड़े जैसे वह केक काटने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।
असफन्द ने मेज़ पर रखे 3 लेयर के खूबसूरत केक को देखा फिर पुर इसरारियत से मुस्कुराया और कब से अपने हाथ में लिए कैटी का सर सहलाया और राहेमीन को देखा।

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“हैप्पी बर्थ डे राहेमीन।”
कहते साथ ही कैटी को मेज़ पर छोड़ दिया।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, कैटी पैर मार कर केक मेज़ पर गिरा चुकी थी और अब उसमें मुंह भी डाल दी थी।
राहेमीन के हाथ से चाकू छूट कर ज़मीन पर गिरा।
इतनी नफ़रत?
इलयास और सबीहा सकते में आ गए।
डुबडुबाई नज़रों से केक का बुरा हाल देखती राहेमीन नीचे ज़मीन पर बैठ गई और खूब ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया।
असफन्द का काम हो गया था इसलिए रोती हुई राहेमीन पर एक नज़र डाल कर वह वहां से चला गया।
यह अलग बात कि दिल में अचानक होने वाली बेचैनी ने उसे रात भर सोने नहीं दिया था।
Flash back end

to be continued…

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