Novel Hisar e Ana chapter 21 part 2 by Elif Rose novel hindi story

0
novel hindi story

novel hindi story

वहाज के घर में कमरे में राहेमीन हक्का बक्का सी मोबाइल हाथ में लिए बैठी थी।
“किसकी कॉल थी?” बाथरूम से निकलती सबीहा उसकी उड़ी रंगत देख उसके पास आईं।
“अ…..असफन्द की।” राहेमीन की निगाह अभी भी हाथ में पकड़े मोबाइल स्क्रीन पर थी।
सबीहा के माथे पर शिकने पड़ीं। “क्या कह रहा था?”
राहेमीन ने नज़र उठा कर उन्हें देखा।
“वह यहां आ रहे हैं अम्मी।” आवाज़ में लरजिश थी।
“क्या मतलब…इस वक़्त?” सबीहा चौंकी।
जवाब में उसने हां में सर हिलाया।
माथे पर हल्का पसीना आने लगा था।
क्या अभी और शर्मिंदगी उठानी थी उसे?

“अम्मी!” उसने सबीहा का हाथ थामा।
“क्या यह बेहतर नहीं है कि हम वापस चलें?” उम्मीद से उन्हें देखा।
वह मज़ीद तमाशा नहीं बनवाना चाहती थी।
मगर सबीहा ने उसकी बात सुनी ही नहीं।
वह किसी और सोच में गुम थी।
“तुम असफन्द के सामने नहीं आओगी।”
कुछ देर बाद वह फैसलाकुन अंदाज़ में बोलीं तो राहेमीन की कांच सी आंखों में हैरत उभरी।
“जी?”
सबीहा ने उसके नर्म-नाज़ुक हाथ पर दबाव डाला।
“राहेमीन तुम यहीं रहना। चाहे कुछ भी हो जाए। तुम्हें उसके सामने नहीं आना है। सुन रही हो ना? जो होगा, मैं देख लूंगी।”
“लेकिन…”
“तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा?”
अबकी ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा तो राहेमीन के सारे अल्फाज़ लबों पर आने से पहले ही दम तोड़ गए।
उसकी ख़ामोशी को रजामंदी समझ कर वह कमरे से निकलीं थीं।

###########

बीस मिनट का सफर रैश ड्राइविंग से दस मिनट में तय करके असफन्द मीर इस वक़्त वहाज हसन के घर के बाहर बिल्कुल पुर ऐतमाद अंदाज़ में खड़ा था।
आंखें अलबत्ता अभी भी ज़ब्त से सुर्ख हो रही थीं।
बेल बजाते हुए उसने हाथ में बंधी घड़ी देखी।
रात के 10 बज रहे थे।
दरवाज़ा वहाज ने खोला।
“तो मिस्टर असफन्द मीर ने आज यहां का रुख़ कर ही लिया?”
तंज़िया आवाज़…….यकीनन उसे खबर हो चुकी थी।
असफन्द ने उस पर अपनी नज़रें टिकाई।
आज पूरे ढाई साल बाद वह दोनों आमने सामने खड़े थे।
“अंदर आने को नहीं कहोगे?”
“Why not… come.”
वहाज ने रास्ते से हट कर एक हाथ से अंदर जाने का इशारा किया।
होंठो पर दिल जलाने वाली मुस्कुराहट थी।

novel hindi story

उसे जांचती नज़रों से देखते असफन्द बगल से निकलता अंदर आया तो सामने सबीहा मीर दोनों हाथ सीने पर बांधे खड़ी थीं।
वह मज़बूत क़दमों से चलता उनके सामने आ खड़ा हुआ।
“घर चलिए आंटी। मैं लेने आया हूं आप दोनों को।” सीधा मुद्दे पर आया।
वहाज दरवाज़े के साथ टेक लगा कर दोनों हाथ सीने पर बांधे आरामदेह सा खड़ा हो गया और वहीं से अपनी फुफ्फो को देखा जो आंखों में नफ़रत की चिंगारी लिए असफन्द मीर को देख रहीं थीं।

उस असफन्द मीर को, जो करोड़ों की जायदाद का इकलौता वारिस था। ख़ूबसूरत था और शानदार शख्सियत रखता था। कितनी ही लड़कियां उसके साथ की ख्वाहिशमंद थीं। कितनी माएं उसे अपनी बेटी के नसीब में देखना चाहती थीं लेकिन सबीहा मीर?…. उनके नज़दीक अपनी बेटी के लिए दुनिया में बचने वाला अगर वह आख़िरी शख़्स भी होता, तब भी वह उसे धुतकारना पसंद करती।
वह सबीहा मीर थीं….एक बार कोई दिल ओ नज़र से उतर गया तो उतर गया।
“तुम्हें यह खुशफहमी क्यों हो गई कि हम तैयार भी हो जाएंगे तुम्हारे साथ चलने को?” वह अपने फैसले पर अटल थीं।
असफन्द ने तहम्मुल का मुज़ाहिरा किया।

आगे का भाग पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करिए।
Hisar e ana chapter 21 part 3
नोट – इस कहानी को चुराने या किसी भी प्रकार से कॉपी करने वाले पर क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी।

facebook page Elif Rose novels

instagram page @elifrosenovels

Hisar e ana chapter 1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *