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Novel Hisar e Ana chapter 21 part 1 by Elif Rose novel book hindi

novel book hindi

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रात का अंधेरा पूरे शहर में फैला अपने होने का पता दे रहा था।
थक हार कर जब असफन्द मीर अपना कोट हाथ में लटकाए मीर मेंशन में दाखिल हुआ तो एक नई मुसीबत इंतज़ार में खड़ी थी।
सबीहा और राहेमीन यहां से जा चुके थे।
यह खबर उसे शल कर देने के लिए काफी थी।
वह सदमे से बाप को देख रहा था।
“आपने उन्हें जाने दिया?”
“किस मुंह से रोकता मैं?” इलयास मीर जो ग्लास वाल के पास लगी चेयर पर बैठे थे, उसके पूछते ही फट पड़े।
“इस सब के ज़िम्मेदार तुम हो असफन्द…. सब बिगाड़ दिया है तुमने। इस घर का चैन सुकून सब मिट्टी में मिल गया। मुझे बताओ कि आख़िर कैसे सब पहले की तरह करूं मैं?”
गुस्सा, तकलीफ़, इज़्तेराब क्या न था उनके लहज़े में?

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असफन्द कोट रख कर थके थके से अंदाज़ में उनके सामने ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा।
“आप भी मुझे ही मुजरिम समझ रहे हैं?”
“नहीं हो क्या?” इलयास मीर ने उल्टा उसे लाजवाब करना चाहा जिस पर उसकी आंखों में शिकवा आया।
“क्या मैं नहीं आया था आपके पास दरख़्वास्त लेकर? क्या आपने मुझे आंटी से बात करने के लिए मना नहीं किया था? क्या आप बचपन से मेरे मिजाज़ को नहीं जानते थे? किस के पास फिर मैं जाता अपनी फरियाद लेकर? और क्या करना चाहिए था मुझे उस वक़्त?”
इलयास मीर ने नाराज़गी से सर झटका।
“तुम्हारी कोई भी दलील जबरदस्ती किए गए निकाह को जस्टिफाई नहीं कर सकती।”
वह उठ कर अपनी कनपटी मसलते हुए इधर उधर टहलने लगे थे।

असफन्द ने सर उठा कर उन्हें देखा।
“माफी मांगी थी मैंने।”
“क्या माफी मांग लेने से सब ठीक हो जाता है?” इलयास मीर ने रुक कर बेटे से पूछा।
असफन्द उठ कर उनके सामने आ खड़ा हुआ।
“अगर अना(ego) के कैद से निकल कर देखा जाए, तो सब ठीक हो सकता है।”
लेकिन इलयास मीर उससे कायल नहीं हुए।
“सब कुछ तुम्हारे मन मुताबिक़ हो, यह ज़रूरी नहीं।”
और सर झटक दोबारा से इधर उधर चक्कर काटने लगे।

असफन्द कितने ही लम्हें उन्हें ख़ामोशी से देखता रहा।
फिर गले से टाई निकाल कर तैश में सोफे पर उछाला और जेब से मोबाइल निकाल कर राहेमीन का नंबर डायल करने लगा।
मोबाइल कान से लगाते वक़्त उसकी आंखें लाल हो रहीं थीं।
“मैं दस मिनट में लेने आ रहा हूं, तैयार रहना।”
कॉल रिसीव होते ही बग़ैर दूसरी तरफ से कुछ सुने वह बोला और कॉल काट के मोबाइल जेब में डाला।
फिर बग़ैर कुछ बोले बाहर की तरफ बढ़ गया।
इलयास मीर उसके जारहाना अंदाज़ पर फिक्रमंद से उसके पीछे लॉन तक आए।
लेकिन तब तक वह कार में बैठ कर गेट पार कर चुका था।
वह बेबसी से वहीं खड़े रह गए।

आगे का भाग पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करिए।
Hisar e ana chapter 21 part 2
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Hisar e ana chapter 1

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