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Hisar e Ana chapter 13 part 3: The Siege of Ego by Elif Rose

Hisar e Ana chapter 13 part 3

Hisar e Ana chapter 13 part 3

इसी शहर के एक इलाके में इलयास मीर का एक कॉटेज था।
मुख्तलिफ किस्म के पेड़ों से घिरा यह कॉटेज बहुत प्यारा था।
मूड होने पर कभी कभी वह दिन भर के लिए सबको लेकर वहां चले जाते थे ।

आज कॉलेज की छुट्टी पर ड्राइवर की जगह असफन्द को देख राहेमीन को हैरत का झटका लगा था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
“आप यहां?” कंधे पर लटके बैग की स्ट्रिप पकड़े उसने ताज्जुब से उसे देखा।
आंखों से ब्लैक गॉगल्स लगाए ड्राइविंग सीट पर बैठे असफन्द मीर ने वहीं से उसकी तरफ गर्दन मोड़ी।

“डैड और आंटी का अचानक ‘मीर कॉटेज’ जाने का प्लान बन गया। ड्राइवर को फीवर आ रहा था, इसलिए उन्होंने मुझे भेज दिया तुम्हें पिक करने।” उसने संजीदगी से इत्तेला दी।
“ओह…. लेकिन मुझे तो अम्मी ने नहीं बताया।” मायूसी से कहते राहेमीन ने मोबाइल निकालने के लिए बैग की ज़िप खोली।
“Hurry up Rahemeen, I am already getting late.”
असफन्द के मसरूफ़ से अंदाज़ में टोकने पर गड़बड़ा कर सीधी हुई।
“अच्छा चलिए।” उस पर यकीन कर के वह कार में बैठ गई और कंधे से ब्लैक कलर का बैग उतार कर बैक सीट पर रखा।

असफन्द ने कार स्टार्ट कर के एक नज़र उसे देखा जो बेफ़िक्री से विंड स्क्रीन के पार के मंज़र को देख रही थी। उसने आंखों से गॉगल उतारा। यह लड़की उसके दिल पर राज करती थी। उसकी वीरान ज़िन्दगी में खिलने वाला खुशनुमा फूल थी। उसके साथ की ख्वाहिश कम उम्र से ही उसके अंदर घर कर गई थी।
ऐसे में उसे किसी और के नाम कर दिया जाए?…. नहीं। ऐसा हरगिज़ नहीं होगा। वह उसकी है…. सिर्फ़ उसकी। वह उसे सबसे छीन लेगा। स्टीयरिंग व्हील पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए वह पुर अज़्म था।

क़रीब एक घंटे की ड्राइविंग के बाद मंज़िल आ गई थी।
मीर कॉटेज में दाख़िल होते हुए राहेमीन रियाज़ को ज़रा भी गुमान नहीं था कि आज क्या होने वाला है।
वह लिविंग रूम से होते हुए उस कमरे में गई, जहां का असफन्द ने उसे बताया था।
“कहां हैं अम्मी लोग?….. आपने तो कहा था वह यहां इंतज़ार कर रही हैं मेरा।” कमरे में किसी को ना पा कर राहेमीन ने उलझ कर अपने पीछे आते असफन्द को देखा।
“झूठ कहा था मैंने।” जेब से मोबाइल निकाल कर असफन्द ने सुकून से जवाब दिया था।

वह ठिठकी।
“लेकिन क्यों?”
“बात करनी थी कुछ।” किसी को मैसेज करके उसने संजीदगी से राहेमीन को देखा।
“ऐसी कौन सी बात है…..जिसके लिए आप मुझे झूठ बोल कर यहां ले आए हैं?” इधर उधर नज़र दौड़ाई। कुछ तो ग़लत था।
“बात ही ऐसी है…….तुम बैठो।” वह चलता हुआ ऐन उसके सामने खड़ा हुआ।
“नहीं… ऐसे ही बोलिए।” राहेमीन की छठी हिस उसे कुछ ग़लत होने का एहसास करा रही थी। असफन्द की आंखों का तास्सुर भी कुछ अलग सा था आज।

वह चौंकी थी जब असफन्द ने हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बिठा दिया था।
“आप…….”
“शशश…” उंगली उठा कर उसे चुप रहने का इशारा किया। फिर उसके सामने ही मेज़ पर बैठ कर कोहनियां अपने दोनों घुटनों पर टेक कर हथेलियों को आपस में जोड़ा, फिर उसे देखा जो अपनी कांच सी आंखों में हैरानी लिए उसे देख रही थी।
“मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है राहेमीन, अगर होता तो शायद कभी चीज़ें इस तरह ना होती जैसे आज होंगी। मैं जानता हूं यह सब तुम्हारे लिए गैर मुतवक्काह है लेकिन मैं……………… ख़ैर, टू द प्वॉइंट बात करते हैं।…… मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।”

राहेमीन झटके से खड़ी हुई।
“यह….. य.. यह आप क्या कह रहे हैं?” वह बेयकीन हुई।
“आप जानते हैं मैं इंगेज्ड हूं।”
“इसीलिए….. इसीलिए मैं आज यह सब करने पर मजबूर हुआ हूं।” वह भी खड़ा हो गया। “तुम सोच भी नहीं सकती कि मैं इस वक़्त किस तकलीफ में हूं। यह एहसास कि तुम्हारी उंगली में इस वक़्त किसी और के नाम की अंगूठी है, मैं…. अंदर तक जल रहा हूं इस एहसास से। ज़रा सी कोताही…. मेरी ज़रा सी कोताही ने यह दिन दिखाया मुझे। अपनी फीलिंग्स ख़ुद तक ही महदूद रखी। ज़रा भी अपने एहसासात तुम पर ज़ाहिर नहीं होने दिए। अगर पहले ही ज़ाहिर कर देता तो आज यूं किसी और से मंसूब ना होती तुम।”

राहेमीन ने बेबसी से उसे देखा।
यह सब उसके लिए नया था।
कब देखा था उसने असफन्द का यह रूप?
वह तो बहुत रिज़र्व्ड सा रहा था हमेशा।
हां, वह अब कभी उस पर गुस्सा नहीं करता था, लेकिन यह सब?
वह बग़ैर कुछ बोले दरवाज़े की तरफ बढ़ गई।
उसे घर जाना था जल्द से जल्द। क्यूंकि असफन्द से अब उसे डर लग रहा था।
लेकिन यह क्या?
दरवाज़ा लॉक था।

“यह…..कब लॉक किया आपने यह दरवाज़ा?”
पीछे पलटकर गुस्से से उसने असफन्द को देखा जो अब बेतास्सुर निग़ाहों से उसे देख रहा था।
“दरवाज़ा लॉक होना अहम नहीं है, अहम यह है कि यह तुम्हारे किए अनलॉक कब होगा?” वह चलता हुआ फिर उसके सामने आया।
“तुम्हें क्या लगा मैं सिर्फ बातें करने लाया हूं यहां?….. नहीं राहेमीन, बातें घर पर भी हो सकती थी लेकिन जिस चीज़ के लिए मैं तुम्हें यहां लाया हूं, वह घर पर नहीं हो सकती थी।”
“मुझे आपकी इन सब बातों से कोई सरोकार नहीं है, दरवाज़ा खोलिए मुझे घर जाना है।” वह हैंडल बार बार घुमाने लगी।

“आज हमारा निकाह है।” एक सर्द आवाज़ गूंजी थी।
और राहेमीन को लगा, उसके पैरों तले से किसी ने ज़मीन खींच ली हो। कई लम्हें तो वह कुछ बोल ही नहीं पाई।

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Hisar e Ana chapter 1

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